बुधवार, 23 मार्च 2016

सुर-४४८ : "भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव... याद रहेंगे सदैव...!!!"


नौजवानी
हो गयी शहीद
छोड़कर अपनी यादें
जलाकर मशाल क्रांति की
बुझने न देगी इसे भारत भूमि
जिसके कण-कण में लिखी हुई हैं
कहानियां अमर शहादत की
जर्रे-जर्रे में छिटका लहू
अब भी चीखकर सुनाता वो दास्ताँ
जिसे स्याही से नहीं उकेरा गया खून से ॥
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मित्रों...,

२३ मार्च १९३१ का दिन जब एकाएक ही अंग्रेज सरकार ने तीन नौजवानों 'भगत सिंह', 'राजगुरु' एवं 'सुखदेव' जो कि गुलाम देश के उग्र युवा क्रांतिकारी थे को ११ घंटे पूर्व ही फांसी देने का निर्णय लिया वो भी एक सीक्रेट प्लानबनाकर जिसकी खबर भी उन तीनों को ऐन वक़्त पर ही गई तो उनका ये कदम ही साबित करता हैं कि वो इन तीनों के विद्रोह से किस कदर खौफज़दा थी जिन्होंने जेल के अंदर भी इंकलाब की मशाल रोशन कर दी थी जिसकी वजह से सरकार को उनके अनशन के आगे झुककर उनके पक्ष में फ़ैसला देना पड़ा जो अपने आप में ये ज़ाहिर करता हैं कि उनको ये अहसास हो चुका था कि यदि उन्होंने तयशुदा समय पर ये काम किया तो सारे देश में क्रोध का लावा फूट जायेगा और यदि ऐसा नहीं किया तो ये लोग जेल में रहते हुये ही इंकलाब की ऐसी आंधी लायेंगे कि सब कुछ खत्म हो जायेगा जबकि उसके एक दिन पूर्व ही ये तीनों 'गर्वनर' को पत्र लिखकर उनसे ये अपील कर चुके थे कि उन लोगों को फांसी देने के स्थान पर गोली से उड़ा दिया जाये क्योंकि उनके वकील प्राणनाथ मेहताका सोचना था कि यदि वे लोग गर्वनर से क्षमायाचना से करें तो उनकी मृत्युदंड की सजा को माफ़ किया जा सकता हैं इसलिये वो एक माफीनामे का एक मसौदा लेकर उनके पास पहुंचे लेकिन उन लोगों के स्वाभिमान को ये मंजूर नहीं था तो उन तीनों ने मिलकर अपनी तरफ से ये पत्र लिखकर भेजा था---

आदरणीय महोदय,

सेवा में सविनय निवेदन है कि भारत में ब्रिटिश सरकार के सर्वोच्च अधिकारी-वायसराय ने एक विशेष अध्यादेश जारी करके लाहौर षड्यंत्र केस की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायाधिकारण की स्थापना की थी, जिसने अक्टूबर १९३० को हमें फांसी की सजा सुना दी हैं । हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा अभियोग यह लगाया गया है कि हमने सम्राट पंचम के विरुद्ध युद्ध किया है न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं पहली यह कि अंग्रेज जाति और भारतीय जनता के बीच युद्ध चल रहा है दूसरी यह कि हमने नियमित रूप से उस युद्ध में हिस्सा लिया है ।

अत: हम राजकीय युद्धबंदी हैं यद्यपि इसकी व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिश्योक्ति से काम लिया गया है, तथापि हम यह कहे बिना नहीं रह सकते हैं कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया है । निकट भविष्य में यह युद्ध अंतिम रूप से लड़ा जाएगा, तब यह निर्णायक युद्ध होगा साम्राज्यवाद और पूंजीवाद कुछ समय के मेहमान हैं । इसी युद्ध में हमने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया है हमें इस कारण अपने पर गर्व है इस युद्ध को न तो हमने शुरू किया और न ही यह हमारे जीवन के साथ समाप्त हो जायेगा । हमारी ये सेवा इतिहास के उस अध्याय के लिए मानी जाएंगी जिसे यतींद्रनाथ दास और भगवती चरण के बलिदानों ने विशेष रूप से उजागर कर दिया इनके बलिदान महान हैं । इस स्थिति में हम युद्धबंदी हैं और इसी आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाये और हमें फांसी देने की बजाय गोली से उड़ा दिया जाये । अब यह सिद्ध करना आपका काम है कि आपको अपनी न्यायालय के निर्णय में कितना विश्वास है अपनी कार्रवाई द्वारा आप इस बात का प्रमाण दीजिए हम आपसे सविनय अनुरोध करते हैं कि अपने सेना विभाग को आदेश दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए सैनिकों की एक टोली भेजी जाये ।

भवदीय
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव
 
ये तीनों न सिर्फ युवा थे बल्कि हमउम्र भी और जंगे आज़ादी के सिपाही भी जो जल्द-से-जल्द भारत माताको अंग्रेजो की गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करना चाहते थे इसलिये तो २३ साल की नाज़ुक उम्र में भी उनको ये इल्म था कि वो क्या कर रहे हैं और उसका नतीजा क्या होगा तभी तो इन जुल्मों-सितम को उन सबने हंसी-हंसी बड़ी निडरता से कुबूल किया और अपने लिये फांसी की जगह गोली मार देने का सुझाव भी खुद ही दिया... हमारे देश की युवाशक्ति को इस त्रयी से इस बात का ही सबक लेना चाहिये कि वो अपने जोशे जुनून को फ़िज़ूल के कामों में बर्बाद करने के स्थान पर अपना लक्ष्य निर्धारित कर उस कर्तव्य पथ पर अथक चलते रहे क्योंकि भले ही अब हम आज़ाद हैं लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं कि अब इस देश में करने को कुछ बचा ही नहीं... ये और बात हैं कि लोगों को अपनी मस्ती के आगे कुछ दिखाई देता नहीं और न ही वो कुछ करना चाहते हैं वरना जिस स्वतंत्रता के लिये हमारे वीरों ने अपने प्राणों की आहुतियाँ दे दी हम उसे यूँ बिसारकर या एक दिन उनकी स्मृति में कार्यक्रम कर बाकी दिन उनको विस्मृत करने के स्थान पर इस देश को विश्व मंच पर अग्रणी स्थान दिलवाने के लिये प्रयत्न करते न कि सिर्फ अपने लिये जीते... इन शहीद दिवस की सार्थकता यही हैं कि जब-जब भी इस देश के किसी बलिदानी सपूत की कुर्बानी का दिन आये तो हम भी अपनी रगों में वही जोश भरकर फिर से नई ऊर्जा के साथ अपने कर्मपथ पर पूरी ईमानदारी और जोश के साथ बढ़ते चले... इंकलाब जिंदाबादया वंदे मातरमकेवल ऐसे समय में बोले जाने जुमले नहीं बल्कि अपने में बड़े गहन अर्थ छुपाये हुये हैं जिनको अपनी जबान से बोलते समय भी हम उसकी गहराई तक नहीं पहुँच पाते तभी तो अगले दिन से फिर उसी दिनचर्या में गुम हो जाते हैं.. तो अब यही संकल्प ले कि अपने देश के इन शहीदों के आत्मोत्सर्ग को व्यर्थ न जाने देंगे और जो अनमोल आज़ादी वो हमें देकर गये हैं हम उसके दम पर हम उनके सपनों का भारत बनाने अपना योगदान देंगे... यही होगी उन सभी क्रांतिकारियों को दी गई हमारी सच्ची श्रद्धांजलि... मन से नमन... हर एक बलिदानी को... कोटि-कोटि प्रणाम... जय-हिंद... :) :) :) !!!
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२३ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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