दोस्तों...
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संपूर्ण
‘विश्व’ ही
एक रंगमंच हैं
फिर भी
मनाते हम सब
‘विश्व रंगमंच दिवस’
जो समर्पित
उन कलाकारों के
प्रति
जो करते अभिनय
मान ‘अभिनय’ को कला
न कि उनके लिये
जो नित रचते नूतन
स्वांग
करने पूरा अपना
स्वार्थ ॥
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आदिकाल से ही मानव अपने मनोरंजन
के लिये नये-नये साधन ढूंढता रहा हैं जिससे कि उसे अपनी अंदर छूपी प्रतिभा के
अलावा नई-नई कलाओं का भी ज्ञान होता हैं और फिर शुरू होती हैं कवायद उसे निखारने
की इसी क्रम में ‘आदमी’ की जिज्ञासु प्रवृति ने उसे अपनी मानवीय भाव-भंगिमा को ही
एक विधा के रूप में विकसित करने का विचार दिया जिससे कि ‘अभिनय’ कला का जन्म हुआ
और ‘भरत मुनि’ ने अपने ग्रंथ में इसकी बारीकियों का उल्लेख करते हुये गहन प्रकाश
डाला जिससे कि आने वाली पीढियां भी इसमें महारत हासिल कर सके और अदाकारी की उस
विधा को सम्मान देने हेतु ‘इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट’ ने १९६१ में ‘अंतर्राष्ट्रीय
रंगमंच दिवस’ की नींव रखी ताकि सिर्फ़ अदाकारी ही नहीं बल्कि अदाकारों को भी उनका
वास्तविक स्थान प्राप्त हो सके जिससे कि वे अपने इस कला क्षेत्र पर गर्व कर सके और
नये लोग भी अपनी नई ऊर्जा एवं विचार के साथ इस क्षेत्र में आकर इसे नई ऊंचाइयों पर
पहुंचा सके इस पावन उद्देश्य से ही इस दिन की शिला रखी गयी और तब से आज तक इसे
मनाने की परंपरा का विधिवत निर्वहन किया जा रहा हैं जिसने अपने शैशवकाल से शुरू कर
आज पूर्ण परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर लिया हैं परंतु, बढती तकनीक एवं मनोरंजन के
नवीनतम साधनों ने इसे पार्श्व में धकेल दिया हैं लेकिन फिर भी अभिनय की दुनिया में
आने के लिये आज भी कलाकार इसे ही सर्वश्रेष्ठ माध्यम और रास्ता समझते हैं जहाँ न
वे केवल अपने अंदर की काबिलियत को तराशते हैं बल्कि संतुष्टि का अहसास भी पाते जो उनको
कहीं और न मिलता तभी तो आज जितने भी सर्वश्रेष्ठ फनकार हैं उनका आगाज़ इसी पटल से
हुआ हैं और आज भी वे इसके प्रति पूर्ण समर्पण भाव से अपने कर्तव्य का पालन कर रहे
जिसकी वजह से उनसे प्रभावित होकर नवोदित फ़नकार भी इसे अपना कार्यक्षेत्र बनाने आगे
आ इसे भविष्य में भी जीवित बनाये रखने के लिये अपने आपको होम कर इतिहास लिखते हैं ।
‘रंगमंच’ समस्त अदाकारों के लिये मंदिर के समान एक पवित्र स्थान होता जहाँ कला
की देवी ‘सरस्वती’ स्वयं विराजमान होकर उनको आशीष देती और उनके वरदहस्त के तले वे
अपनी अदाकारी के पुष्प उनके चरणों में अर्पित कर देश व समाज को जागरूक करने का
सन्देश देने इस तरह की कहानियों का चयन करते जिससे कि मनोरंजन के साथ-साथ दर्शकों
का ज्ञानवर्धन भी हो और साथ ही साथ वो देश में फ़ैली हुई कुरीतियों व अंधविश्वासों
को दूर करने में भी सहायक हो जो कि किसी भी ‘नाटक’ का मुख्य उद्देश्य होता हैं ।
इसलिये आज भले ही इसका स्थान कहीं थोडा नीचे चला गया हो लेकिन इस क्षेत्र में काम
करने वालों के उत्साह में कोई कमी नहीं वे तो इसे फिर से पहले जैसा मुकाम प्रदान
करना चाहते जिससे कि इसमें प्रवेश करने वाले को अपने भविष्य के बारे में कोई
अनिश्चितता न हो जिसके कारण आज ये क्षेत्र पिछड़ता जा रहा क्योंकि केवल अदाकारी से
तो जीवन चलाया नहीं जा सकता उसके साथ जीविका होना भी जरूरी तो इसे व्यवसायिक दर्जा
दिलाने इसका व्यवसायीकरण भी किया जा रहा जिसने इसके प्रति प्रशिक्षु कलाकारों का रुझान
बढ़ाया हैं तो आज के दिन सभी वास्तविक एवं रंगमंच के कलाकारों को बहुत-बहुत बधाई...
जिन्होंने हमारी महफ़िल ही नहीं तन्हाई भी सजाई... :) :) :) !!!
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२७ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’
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