सोमवार, 7 मार्च 2016

सुर-४३१ : "हर रूप में लगे तू प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी...!!!"

दोस्तों...

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न हो कोई
बस, मिल जाये
एक सच्ची सखी तो
फिर न होती जीवन में
गम की परछाई
वो तो बना देती महफ़िल
चाहे हो कैसी तन्हाई
साथ हो उसका तो 
फिर न होती फिकर
किसी बात की
कि हर समस्या उसने तो
चुटकियों में सुलझाई
साथ न रहकर भी
नहीं लगती वो जुदा कभी 
कि दिल में धड़कन की तरह समाई
जब हो उसकी जरूरत
दिल ने दिल को आवाज़ लगाई
और वो बिन बुलाये ही दौड़ी चली आई
थी जो अंजान कभी इक दूजे से
दोस्ती की पक्की डोरी उनको पास लाई
एक अटूट रिश्ते में बाँध
बेगाने और बिना लहू से जुड़े रिश्ते की
अद्भुत मिसाल बनाई    
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‘दोस्ती’ तो आप किसे से भी कर सकते लेकिन एक सच्चा और इमानदार मित्र तो मुश्किल से मिलता लेकिन जब मिल जाये कोई एक ऐसा जिसके साथ मिज़ाज ही नहीं पसंद-नापसंद जैसी बातों के साथ-साथ हर तरह की बातों पर भी बढ़िया तालमेल बैठ जाये और जो हमें हमसे भी बेहतर जान ले तो फिर ये रिश्ता जो न तो रक्त और न ही किसी पारिवारिक रिश्ते से जुड़ा होता हर रिश्ते पर भारी पड़ जाता क्योंकि ‘दोस्ती’ का संबंध समझे तो ईश्वर का वरदान हैं बल्कि ये तो उनकी तरफ से दिया गया ‘बोनस’ हैं बोले तो हमारे वजूद का अतिरिक्त विस्तार कि सारे रिश्ते तो हमें पैदाइश के साथ मिल जाते लेकिन ये जिंदगी के सफ़र में अचानक किसी डगर में मिल जाता फिर यूँ लगता कि उसके बिना हम अधूरे और जब तक उससे अपने दिल की हर बात न साँझा कर ले मन ही नहीं मानता कि सखी तो हमारा जीवन का वो हिस्सा होती जिससे हम वो सारी बातें भी कर सकते जो किसी अपने से कहने में हिचकते याने कि हमारे सभी राज़ जिसके पास होते वो अक्सर कोई रक्त संबंधी रिश्तों की बजाय कोई गैर ही होता लेकिन अपनों से भी बढ़कर कि उससे तो कोई पर्दा नहीं होता और न ही कोई हिचक या भय तो बस, जो भी हम महसूस करते या दिन भर में जो कुछ भी हमारे साथ होता उसे उससे बताये बिना चैन न मिलता क्योंकि हमें विश्वास होता कि यहाँ हमारे सभी भेद सदा सुरक्षित रहेंगे इस तरह वो तो हमारे लिये किसी ‘लाकर’ की तरह विश्वसनीय हो जाता जहाँ हम अपनी गुप्त बातों को रख एकदम निश्चिंत होकर सोते और ये लाकर तो ऐसा कि जिसकी कोई चाबी भी नहीं कि चोरी की डर बना रहे बल्कि ये तो इतने ज्यादा महफूज़ रहते कि अंतिम साँस तक कोई भी उस राज को नहीं जान पाता इतना ज्यादा भरोसे का रिश्ता होता दो सहेलियों के मध्य कि एक के दिल की कही या अनकही बात भी दूजे को पता होती और केवल चेहरे को देख ही उसकी मनोस्थिति का भी पता चल जाता तो फिर उसके अनुरूप ही काम कर नाजुक स्थितियों को भी संभाल लिया जाता  

नारी ‘सहेली’ के रूप में अपने पुरे उफान पर होती क्योंकि इसमें किसी भी तरह की कोई मर्यादा या सीमा या औपचारिकता का बंधन नहीं होता जबकि हर रिश्ते में कोई न कोई न कोई बंदिश होती जिसकी वजह से उसे उसी तरह से निभाना पड़ता लेकिन ‘दोस्ती’ तो हर तरह के नियमों और प्रतिबंधों से परे एकदम आज़ाद रहकर खुली हवा में साँस लेती और बिलकुल बिंदास रहकर अपनी अभिव्यक्ति देती इसलिये इसे सबसे उपर रखा जाता जहाँ बिना लाग-लपेट के अपना मत रखा जाता इसलिये तो हर मित्र को हर तरह की परिस्थिति में सबसे पहले अपने उस ख़ास दोस्त की राय की जरूरत होती जिसे वो अपना सबसे करीबी मानता फिर चाहे कितनी भी छोटी-सी बात हो यदि वो उससे सलाह लिये बिना करे तो मन पर बोझ बना रहता तभी तो चाहे कपड़े खरीदना हो या पहनना या फिर अपना कैरियर तय करना या किसी चीज़ को लेना हो जब तक सहेली की प्रतिक्रिया का पता न चले उस पर अमल करने से पहले सोचना पड़ता कि वो सही या गलत लेकिन जैसे ही दोस्त ने अपनी मुहर लगाई मन से संदेह या अनिश्चय की सभी परतें एकाएक मिट जाती और सब कुछ साफ़ नजर आने लगता तो इस तरह एक सहेली सिर्फ हंसी-मजाक ही नहीं करती बल्कि जीवन के गंभीर मसलों पर भी अपनी सखी की सहायक बनती कभी उसे समर्थन की जरूरत तो वो साथ देती और यदि उसे निर्णय लेने में दिक्कत हो तो हाज़िर या फिर उस पर कोई मुसीबत आ जाये तो उसे हल करने जुट जाती और यदि कहीं मदद की जरूरत तो बिन कहे ही बगल में आकर उसका मनोबल बढाने खड़ी हो जाती इस तरह जीवन के हर ख़ास औ आम पलों की वो साक्षी एवं भागीदार होती ऐसे में यदि किसी वजह से वो बिछड़ जाये तो भी अपने उस रिश्ते को टूटने नहीं देती बल्कि जुदाई की आंच में तपकर तो वो कुंदन बन जाता और दोनों के बीच प्यार का अहसास भी तो गहराता जाता तो ऐसे में जब भी मिलना हो तो फिर तो देखों जो समां बंधता खाना-पीना भूल दिन-रात का भी पता न चलता जब एक बार उनकी बातें शुरू होती तो फिर तो घड़ी की टिक-टिक और उनकी जुबान बस, आगे बढ़ती ही जाती

‘सहेली’ का मिलना सौभाग्य तो उसे सहेजना भी कोई आसान नहीं कि अक्सर गलतफहमी या किसी तीसरे के द्वारा उनके बीच दरार बनाने का काम कर दिया जाता अतः जब भी किसी से कोई भी रिश्ता बनाये तो उसे विश्वास की गोंद से इतना मजबूत जोड़े कि फिर वो किसी की लाख़ कोशिशों के बाद भी न तो कमजोर पड़े और न ही टूटने की कगार तक पहुंचे क्योंकि अच्छे दोस्त जब दुश्मन बनते तो वो भी पक्के वाले ही बनते क्योंकि एक-दूसरे को बड़ी नजदीक से जो जान लेते है इसलिये ये ध्यान रखे कि रिश्ता खून का हो या दिल का वो तभी आजीवन चलेगा जबकि उसके एक पलड़े पर स्नेह, ममता, प्रेम, तकरार, समझाईश के साथ-साथ दूसरे पलड़े पर भरोसे का वजन भी उतना ही होगा और यदि आपने ये संतुलन साध लिया तो फिर फ़िक्र न करे क्योंकि असंतुलन का काँटा तभी किसी एक पलड़े को गिरायेगा जबकि आपका झुकाव किसी एक ही तरफ हो जायेगा याने कि हर चीज़ जरूरी केवल किसी एक से काम न चलने वाला क्योंकि इन सब अहसासों का मिश्रण ही तो ‘दोस्ती’ और दोस्ती की इस तुला को साधने वाली कहलाती ‘सहेली’ तो आज उसी के नाम हैं ‘हर रूप में लगे तू प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी...’ की ये कड़ी... न रही मैं फिर अधूरी... जब मिली तू सहेली... पाकर तुझे जिंदगी मिली.... :) :) :) !!!           
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०६ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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