सोमवार, 21 मार्च 2016

सुर-४४६ : "विश्व कविता दिवस... लिखे कविता हर दिवस...!!!"

दोस्तों...

___//\\___

आसान नहीं
‘कवि’ / ‘कवयित्री’ होना
कि पराये दर्द को
अपने भीतर महसूसना पड़ता
दूसरों की जिंदगी को
खुद जीकर देखना पड़ता
तब जाकर कहीं
एक सार्थक सृजन होता
जो पढ़ने वाले के हृदय को
अपना सा लगता
तो ‘विश्व कविता दिवस’ पर
उन सब कलमकारों को बहुत-बहुत बधाई
जिनकी कलम ने धूम मचाई
पाठक के दिलों में अपनी जगह बनाई  
----------------------------------------------●●●

वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान।
निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान

हिंदी साहित्य के शीर्षस्थ कलमकार जिन्हें कि प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता था ‘सुमित्रानंदन पंतजी’ ने ‘कवि’ और ‘कविता’ के बारे में जो ये अद्भुत अभिव्यक्ति बयाँ की हैं वो स्वयं ही अपने आप में उन दोनों के बारे में एक बहुत ही बड़ी सच्चाई बताती हैं... वाकई, जैसा कि हम सभी जानते हैं और जो धर्मग्रंथों में भी वर्णित कि आदिकवि ‘वाल्मिकी’ के जीवन में एक ऐसी घटना घटित हुई जिससे उनके भीतर से स्वतः ही कविता ने जनम लिया जिसे कि प्रथम कविता और इस अभिव्यक्ति की वजह से उनको प्रथम कवि होने का गौरव हासिल हुआ ।

एक बार की बात हैं कि ‘महर्षि वाल्मिकी’ शाम के समय तमसा नदी के किनारे विचरण कर रहे थे कि तभी उनकी नजर क्रोंच पक्षी के एक जोड़े पर गयी जो आपस में श्रृंगार रत थे तो उनकी चुहल देखकर उनका मन उस रमणीक वातावरण में रम गया लेकिन तभी कहीं से तेजी से एक तीर किसी खलनायक की तरह उस मनमोहक दृश्य में चला आया जिसने उस जोड़े में से नर पक्षी के हृदय के साथ-साथ उनके कोमल मन को भी बेध दिया और बस, तुरंत ही उनके अधरों पर आहत हुये मानस की विगलित संवेदनायें कुछ इस तरह से अभिव्यक्त हुई---

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥'

---अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी ।

इस तरह से सृष्टि में पहली ‘कविता’ और पहले ‘कवि’ ने जनम लिया जिसकी वजह बना किसी भी नाजुक अंतस को द्रवित करने वाला वो दारुण दृश्य जो ये बताता कि ‘कविता’ तो अंतर्मन की अभिव्यक्ति या हृदय की पुकार हैं जो कभी भी किसी भी जगह किसी भी दृश्य या चीज़ को देखकर उमड़ सकती और वही सबके हृदय को भी छूती क्योंकि हर मनोभावना जो किसी क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरुप निकलती उसमें हर संवेदनशील मन को स्पर्श करने का स्वाभाविक गुण समाहित होता ।

हिंदी साहित्य के बागी कवि ‘सुदामा प्रसाद पाण्डेय धूमिल जी’ ने भी बड़ी प्यारी बात कही हैं कविता के संबंध में कि , “कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है” सचमुच कोई भी इंसान तब ही सही मायनों में मानव कहलाता जबकि वो पराई पीड़ा को न सिर्फ़ महसूस कर पाता बल्कि उसे व्यक्त करने की भी समझ रखता तो उस तरह से वो ‘कवि’ के रूप में पहचाना जाता जो अपने आस-पास जो भी मंजर या घटना देखता उसको शब्द देकर कविता में ढाल देता और इस तरह जनमानस के भीतर उमड़ते-घुमड़ते विचारों को उजागर करने का माध्यम बनता तो इस तरह से एक ‘कवि’ जनता की मनोभावनाओं को ज़ाहिर करने वाला प्रतिनिधि भी होता तभी तो उसके लिखे पर सबका हक होता इसलिये तो हर कोई उसे अपनी जरूरत मुताबिक जब जी चाहे वहां इस्तेमाल करता हालांकि उस पर वास्तविक अधिकार उस रचनाकार का ही होता लेकिन पाठक को वो अपना ही सृजन लगता कि जो वो कहना चाहता था उसे उसके प्रिय कवि . कवयित्री ने सटीक शब्दों में वर्णित कर दिया ।

कविता की इसी अनिवार्यता को मद्देनजर रखते हुये ही ‘यूनेस्को’ ने १९९९ से आज के दिन याने कि २१ मार्च को ‘विश्व कविता दिवस’ घोषित किया ताकि उसके प्रति गंभीरता का माहौल बनाया जा सके और जो भी लोगों के दर्द को महसूस करते वो अपने कर्म के प्रति जागरूक हो सके कि काव्य सृजन एक वरदान जो सबको तो नहीं मिलता पर, जिन्हें मिला वो तो अपने इस हुनर का बखूबी प्रयोग कर सके जिससे समाज के साथ-साथ साहित्य जगत को भी नूतन रचनाकार और कृतित्व मिल सके तो सभी कवियों / कवियत्रियों को आज के दिवस की अनंत शुभकामनायें कि वे इसी तरह से अपने लेखन कर्म में रत रहकर सार्थक लिखते रहे जो देश-दुनिया में बदलाव की बयार लाने का ठोस कारण बने... :) :) :) !!!               
------------------------------------------------------------------------------------         
२१ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: