शनिवार, 19 मार्च 2016

सुर-४४४ : "“किसी भी ‘कवि’ के अल्फाज़... जरूरी नहीं हो उसके जज्बात...!!!”


दोस्तों...

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जैसे ही ‘राबिया’ को ये खबर मिली कि उसकी प्रिय सहेली ‘दिया’ जिसने महज़ चंद महीनों पहले ही अपने परिजनों के खिलाफ जाकर अपनी मर्जी से अपने कॉलेज के लोकप्रिय रूमानी कविता लिखने वाले कवि ‘सागर’ से प्रेम विवाह किया था आज आत्महत्या कर ली.. तो उसे ये सुनकर उतना आश्चर्य नहीं हुआ कि कहीं उसे ये इल्म था कि ऐसा कुछ हो सकता हैं क्योंकि शादी के बाद ‘दिया’ ने जो महसूस किया वो सब कुछ उससे साँझा किया था जिसका सार ये था कि जिन कविताओं से आकर्षित हो उसने ये निर्णय लिया वो गलत था उसके भीतर प्रेम का वो बहता सागर नहीं था जो उसकी लेखनी में बहता रहता था... और इस अप्रत्याशित हकीकत ने उस भावुक लडकी को बुरी तरह से तोड़ दिया था फिर भी उसे लगता था कि शायद, एक दिन वो इस सच्चाई को स्वीकार कर लेगी कि कलम से निकले अल्फाज़ और मन के भीतर अंगड़ाई लेते जज्बात जरूरी नहीं कि एक समान हो... मगर, जब ये सच जाना तो अपनी प्यारी सखी के प्रति उसकी शब्दांजली कुछ यूँ अभिव्यक्त हुई---
   
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पढ़-पढ़ कर
कवि की प्रेम रस सनी
प्रेमिल कवितायें
वो उन आखरों से प्रीत कर बैठी
और उसकी ख़ातिर
सबसे बगावत भी कर बैठी
पर, जब बनी उसकी संगिनी तो
जाना कि उसकी कलम से
पन्नों पर उभरे शब्दों
और उसके मन के भावों में
कोई साम्य न था
प्रेम सिर्फ कविताओं में था
दिल तो निरा खाली था
समझ न पाई कि
बिना अहसास के भला
कोई लिख कैसे सकता हैं
और जो लिखे इतने
नाज़ुक हृदयस्पर्शी जज्बात
वो भावहीन कैसे हो सकता हैं ???

मगर,
ये कठोर सच्चाई थी
कवि की कविता और
वास्तविक ज़िंदगी के बीच
ख़्वाब और हक़ीक़त समान
एक अदृश्य दीवार थी
जिसे केवल वही देख सकती थी
दुनिया उसे प्रेमकवि मान पूजती थी
और वो प्रेम को तरसती
एकाकी रोती तड़पती रहती थी ।।
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जब इस पीड़ा को सहन नहीं कर पाई तो ये कठोर निर्णय ले लिया लेकिन वही जानती थी कि उसकी जिंदादिल, हंसमुख और खुशमिजाज सहेली ने किन परिस्थितियों में आकर ये जानलेवा कदम उठाया होगा... काश, वो इतनी संवेदनशील न होकर कुछ व्यवहारिक होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता मगर, उसके लिये उस विरोधाभासी माहौल में साँस लेना और उस पति के साथ जीना जिसके पास उसे छोड़कर सबके लिये समय था कितना मुश्किल होगा ये आज उसकी इस आत्मघातक हरकत ने साबित कर दिया... इसलिये अब लडकियों को ये जानना भी जरूरी कि जो भी कलमकार लिखता वो सदैव उसके अंतर का अहसास हो ये जरूरी तो नहीं इसलिये उसकी लेखनी नहीं बल्कि उसके व्यक्तित्व को जानकर ही उससे कोई रिश्ता कायम करे वरना, भविष्य में इस तरह की अनहोनी की आशंका हो सकती हैं... जिसे सहन करना बड़ा कठिन... :( :( :( !!!    
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१८ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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