गुरुवार, 3 मार्च 2016

सुर-४२८ : "हर रुपे में लगे प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी...!!!"

दोस्तों...

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बेटे की सूरत तो
आँख खोलते ही दिख जाती
मगर, ‘बहु’ देखने तो
सालों-साल आँखें तरस जाती
फिर भी उसके प्रति
उतनी ममता न दिखाई जाती
कि वही तो जो...
घर और रिश्तों को संभालती
सब पर स्नेह लुटाती
अग्निसाक्षी मान जो दिये
उन सातों वचनों को निभाती
खुद को स्वाहा कर
कर्तव्यों के भभकते यज्ञ में
वो शमां सी जलती जाती
इतनी सारी खूबियाँ
रहती शामिल उसमें कि  
सारी की सारी बयाँ न हो पाती
‘बहु’ ही तो वो जो
चारदीवारी के मकान को घर बनाती   
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‘बहु’ बोलते से ही मन में एक सजी-धजी सर पर आंचल लिये दुल्हन का प्यारा सा मनभावन चेहरा घुमने लगता जो सूरज के साथ जागती और सबके सोने के बाद पता नहीं कब सोती मगर, हर सुबह नई ऊर्जा के साथ फिर मुस्कुराते हुये रोजमर्रा के उन्हीं सारे कामों में जुट जाती और घर में रहने वाले एक-एक सदस्य की जरूरतों के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य, उसकी मनोस्थिति का भी ध्यान रखती और भले ही खुद की हर इच्छा को मारना पड़े मगर, किसी की छोटी-सी ख्वहिश पूरी करने भी सदा तत्पर रहती वो जो कहने को तो पराये घर से आई और सदा पराई ही कहलाई मगर, सोचो तो लगता कि उसमें कितनी जिजिविषा कि जहाँ एक पेड़ भी यदि जड़ से उखाड़ कर नये स्थान पर लगा दिया जाये तो जीने का सारा सामान मुहैया करवाने पर भी अपने आप को मुरझाने से बचा नहीं पाता वही ‘बहु’ जो कहीं और पैदा होती पलती-बढ़ती वो जब विवाह संस्कार के बाद अपने जन्मस्थान, अपने घर, अपने माता-पिता और सभी रिश्तों-नातों को पीछे छोड़कर किसी दूसरे परिवार के नितांत अजनबियों के बीच किसी दूसरी ही जगह में रहने आती तो न सिर्फ अपनी जड़ें जमा लेती बल्कि अपना ही परिवार बना लेती और भूल जाती कि कभी ये घर और इसमें रहने वाले सभी लोग उसके लिये एकदम अपरिचित थे और आज यही उसके अपने हैं जिन्हें अकेला छोडकर वो अपने मायके भी नहीं जाना चाहती कि उसने पूरे मन से इस नये संबंध को अपनाया तो फिर इनका सुख-दुःख इनकी सारी जिम्मेदारियां भी अपनी ही समझी जिसकी ख़ातिर यदि अपनी ख्वाहिशों अपने सपनों का गला भी घोटना पड़ा तो फिर न ही हिचकी और न ही पीछे हटी कि वो ये जान चुकी कि अब यही उसका अंतिम ठिकाना जहाँ से वो मरकर ही बाहर जायेगी कुछ ऐसी ही विचारधारा के साथ पहले लड़की को पाला एवं उसकी शादी की जाती थी कि जिस घर में उसकी डोली जाये, उसी घर से उसकी अर्थी निकलनी चाहिये तो जिस बात को घुट्टी की तरह रात-दिन सुना हो उसे भला, किस तरह से भूला दे तो वो भी इस मंत्र को आत्मसात कर उसी जगह जिसे पिया का घर भी कहते में आजीवन बिना किसी गिले-शिकवे के अपना जीवन गुज़ार देती क्योंकि उसे इल्म होता कि यही उसका असली ठिकाना जहाँ उसे आजीवन रहना हैं और आने वाले कल में उसकी छत बन सबको आश्रय देना हैं

वैसे भी पुत्र की कामना करने वाले ये भूल जाते कि बेटे की शक्ल तो वो पैदा होते ही देख लेते लेकिन ‘बहू’ वो तो भविष्य के परतों में दबी पड़ी रहती बड़ी मुश्किल से उसका रोशन चेहरा दिखाई देता और किसी-किसी को तो ढूँढने और लाख मन्नतें करने पर भी वो नसीब न होता फिर भी उसी ‘बहु’ को अक्सर लोग उतना मान-सम्मान नहीं देते जितना कि अपनी सन्तान को देते जिसका कारण ये कि वो लोग पूर्व प्रचलित धारणाओं व समाज के नियमानुसार ‘बहु’ की एक गलत छवि अपने मन में बसा लेते और उसी के अनुसार अपनी ‘बहु’ के साथ व्यवहार करते जबकि शिक्षित होने का यही मतलब कि लोग गहराई से असलियत को समझने की कोशिश करें कि वही सास जो कभी खुद बहु की तरह उस घर में आई थी और अपनी सास के अनुसार चलती रही अब जब उसी घर की मालकिन बन गयी तो फिर उसने ममता का दामन क्यों छोड़ दिया, जो किसी से भेदभाव न करती थी अचानक बहू-बेटे को अलग-अलग नजरों से किस तरह देखने लगी सिर्फ इसलिये कि जो आई वो अपने परिजनों एवं अपने आशियाने को पूरी तरह से छोड़ कर आई वापसी के सारे रस्ते अपने ही हाथों से बंद कर के कि फिर चाहे किसी भी तरह की परिस्थिति या किसी तरह के हालात आये उसे हर हाल में इसी जगह को अपने आत्मविश्वास से अपना आश्रय बना सदा अच्छा व्यवहार करना हैं तभी तो वो तन-मन से पूरी तरह से अपने आपको इस परिवार को समर्पित कर देती और पता न चलता कब उसका ध्यान रखते-रखते वो परिवार जो कभी उसके लिये एकदम अजनबी था उसका अपना बन गया और वो जो कभी ‘बहु’ थी एकाएक सास की भूमिका में आ फिर उसी गलती की पुनरावृति करती जब उसके घर कोई अजनबी दुल्हन आ जाती अतः हर बहु को अपनी सास की प्रिय बनने का प्रयास करना चाहिये जिसे कर पाना कोई दुष्कर कार्य नहीं केवल पूर्ण समर्पण, लग्न से केवल अपने परिवार का ध्यान रखना चाहिये ।

जिस पराई ‘बहू’ से सारा अपना परिवार बनता उसी को ‘हर रूप में लगे प्यारी... सलाम तुझे ऐ नारी’ श्रृंखला की तीसरी कड़ी समर्पित कि उसके बिना तो परिवार ही नहीं बनता... फिर भी पता नहीं क्यों समाज उसे पराई कहता... :) :) :) !!!                  
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०३ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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