दोस्तों...
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आज सुबह से ही मन उदास था बहुत ज्यादा रोना आ रहा था इससे पहले कि आंसू डबडबा
जाये आँखें नम होकर हृदय की पीड़ा का भेद खोल दे तो जल्दी से प्याज काटना शुरु कर दिया
मगर, तभी जेहन में ये विचार
आया कि----
.....
हर बार
आंसुओं का दोष
बेचारी बेकुसूर 'प्याज' को तो
नहीं दिया जा सकता
न ही उन्हें बारिश में भींगकर
छुपाया जा सकता हैं
कभी तो ये मानना ही पड़ता
कि इन रोती हुई आँखों के पीछे
कोई और वजह छिपी हैं
जिसे न तो बताया जा सकता हैं
न ही सहा जा सकता हैं
जिनसे हमारा दूर-दूर तक
कोई नाता नहीं होता
अक्सर वो ही दिल में बेचैनी बन
उसको कसमसाता और
जब दर्द सीमा से पार होता तो
तोड़ के बाँध आंसुओं का
नयनों से बह जाता...
.
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.
.
.
दोष
'प्यार' का
इल्ज़ाम
'प्याज' को
सच, बहुत नाइंसाफी हैं... :’( !!!
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वाकई... सिर्फ एक
अक्षर के फर्क से ‘प्यार’ का रूमानी अहसास ‘प्याज’ के रोतल दर्द में परिणित हो
जाता और एक का गुनाह दूसरे की सजा बन जाता कहने को भले ही इनका आपस में कोई नाता
नहीं लेकिन ये भी तय हैं कि एक के बिना जी तो दूसरे के बिना सब्जी में कोई स्वाद
नहीं आता...तो अगली दफा जब भी किसी को ज़ालिम ‘प्यार’ के कारण रोना आये तो वो
बेचारी ‘प्याज’ को गुनाहगार न बताये जो कि उन तकलीफदायक क्षणों में आपकी हमदर्द बन
उस पीड़ा को बाँटने के ही काम आती... :) :) :) !!!
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१५ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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