दोस्तों...
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जैसे ही मैं रजनी के घर पहुंची तो देखा उसकी षोडशी बिटिया ‘मितिका’ सामने गार्डन में बैठी
मुस्कुरा रही हैं चूँकि हमारे बीच दोस्ताना सम्बन्ध भी तो मुझसे रहा न गया पूछ ही
लिया--- ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रही
हो... क्या बात हैं जिसको छुपा रही हो’ तो उसने जवाब दिया, ‘कुछ नहीं मौसी गेंद उनके पाले में हैं और फ़िलहाल हम फुर्सत
में हैं तो बस, उसे ही एन्जॉय कर रहे हैं’ ।
हमें कुछ समझ न आया तो माथे पर शिकन लाते हुये हमने कहा, ‘मैडम आप न तो मुझे कुछ
खेलते दिख रही हैं और न ही सामने ही कोई नजर आ रहा और जहाँ तक मैं सही देख रही हूँ
तो ये खेल का मैदान भी नहीं हैं’ ।
मौसी जी, आपने कभी ये गेम खेला
नहीं वरना, हमारी बात का मर्म समझती
फिर आँख मटकाते हुये आगे जोड़ा ‘ये तो इनबॉक्स...
का गेम हैं’ जो मोबाइल पर खेला जाता
और जिसे केवल खेलने वाले ही देखते हैं ।
हमने कुछ भी न समझने जैसा मुंह बनाते हुये उसकी तरफ देखा और बोला, हमें कुछ समझ नहीं आया
जरा बताओ न प्लीज़... तो उसने कहा, अरे, कुछ नहीं वही जो आजकल सब
लोग खेल रहे ‘मेसेज-मेसेज’ और क्या...???
हमने तुरंत कहा, वो तो हम भी भेजते पर, इसमें ‘गेम’ जैसा तो कुछ नहीं... तो
उसने तुरंत रिप्लाई दिया, वही तो मैं कहना
चाह रही कि ये तो अपने पर निर्भर करता कि हम उसे किस तरह से लेते... तो हम ठहरे ‘स्पोर्ट पर्सन’ तो भई, हम तो उसे गेम समझ ही
खेलते... कभी वो हमें तो कभी हम उनको छकाते, छिप-छिप कर मजे लेते तो कभी ‘बॉल’ वापस ही नहीं
देते सच, बड़ा मजा आता, लेकिन इस बार अभी गेंद
उनके पास हैं तो हम चार दिनों से उसकी वापिसी का इंतजार करते-करते कुछ नई गेंदे भी
डाल दी पर, वो वापस ही नहीं कर रहे
तो सोचा, इस समय को अपने साथ
बिताये तो यहाँ बैठे ।
ओह, समझ गयी पर, ये तो बताओ इसके नियम
क्या और हार-जीत का फ़ैसला कैसे लेती हो???
‘नियम’ बोल वो जोर से हंसी...
फिर बोली, कुछ नहीं वो तो हम पर ही
निर्भर करता कोई लिखित नियम नहीं पर, ये तय कि सुबह, दोपहर, शाम और रात को ‘गुड’ बनाने एक मेसेज तो करना
ही पड़ता उसके अलावा जब भी कोई एक मेसेज करे तो अगले को जवाब देना ही हैं वरना, अतिरिक्त समय का फ़ाईन
लगता और रही ‘हार-जीत’ वो तो हम पर निर्भर करती
जिसे चाहे जीता दे तो जिसे चाहे हरा दे और खिलखिला कर हंस पड़ी ।
मैंने अंतिम जिज्ञासा प्रकट की, यदि उसने गेंद वापस ही नहीं की तो... ???
तो क्या मौसी, यहीं थोड़े न बैठे रहेंगे... पाला बदल लेंगे आँख मारकर उसने
बड़ी निश्चिंतता से अपनी बात कही ।
मैं उसकी सोच सुन हैरान थी लेकिन ये केवल उसकी नहीं आज के लगभग हर युवा की सोच
लगती जिनके हर चीज़ के प्रति कांसेप्ट तो बड़े क्लियर पर, ये मोबाइल में सर घुसाये
सर उठाकर चलना ही भूल गये और कुछ समझाओ तो आपको ही लेक्चर सुना देते इन्होने तो
संदेश भेजने को भी ‘गेम’ बना दिया और ऐसे में जब
कोई बात हो जाती तो दुसरे के सर ठीकरा फोड़ अलग खड़े हो जाते ।
एक वो जमाना था कि संदेश पाने-भेजने का ठिकाना नहीं था और आज बच्चों ने इसे
खेल बना दिया... उफ्फ्फ... :( :( :( !!!
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२४ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह
“इन्दुश्री”
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