मंगलवार, 29 मार्च 2016

सुर-४५४ : "अभिनय ईश्वर प्रदत्त... बाँट गये 'उत्पल दत्त'...!!!"


दोस्तों...

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कभी हंसाया
तो कभी रुलाया
और कभी डराया भी
लिया रूप कोई भी    
पर, दर्शको को रिझाया
कुछ यूँ उतर गये
हर किरदार के भीतर तक
कि देखने वालों को फिर
‘उत्पल दत्त’ नजर न आया
अंतिम साँस तक
दर्शकों का मनोरंजन किया
तो प्रशंसको ने भी प्यार लुटाया
आज ‘जन्मदिन’ पर याद कर उनको
हमने भी अपना फर्ज़ निभाया
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कोई चाहे फिल्मों का दीवाना हो या नहीं या फिर उसे फ़िल्में देखने का शौक हो या नहीं लेकिन कुछ फिल्मों ने इस तरह से कीर्तिमान बनाया कि हिंदी सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर बन नाम ही नहीं कमाया बल्कि दर्शकों के दिलों पर भी अपना मुकाम यूँ बनाया कि बीत गये साल दर साल लेकिन उनका प्रभाव अब तक भी जरा-सा कम न हो पाया कुछ ऐसा ही जादुई असर हैं ‘गोलमाल’ मूवी का जो आज भी यदि किसी चैनल पर आ जाये तो फिर उंगलिया ‘रिमोट’ पर थमकर रह जाती हैं, जिसमें काम करने वाले हर एक अदाकार की सहजता-सरलता और भूमिका ने देखने वालों को अपना मुरीद बना लिया फिर भी ‘उत्पल दत्त’ और उनके इश्श्श्श कहने की अदा और मूंछों के प्रति लगाव को कोई भूल न पाया और यहाँ तक कि 'अच्छाआ....' बोलने की उनकी अपनी शैली ने तो उन्हें भीड़ में अलग खड़ा कर दिया जब-जब वे पर्दे पर आये उनके चेहरे की भाव-भंगिमा ने बिना बोले भी अपना काम कर दिया क्योंकि ‘उत्पल दत्त’ कोई बनावटी कलाकार नहीं बल्कि ‘मेथड स्कूल’ के सच्चे अभिनेता थे जो किसी भी भूमिका को महज़ खानापूर्ति न समझते थे बल्कि उसको पूरे दिल से निभाते थे बल्कि अपना काम पूर्ण समर्पण से इस तरह करते थे कि जो भी चरित्र उनको निबाहने को दिया जाता पूरी तरह से उसमें समा जाते थे तभी तो देखने वालों को भी वे ‘उत्पल दत्त’ नहीं बल्कि वही किरदार नजर आते थे

यदि आज की पीढ़ी उनको उनके असल नाम से न भी पहचानती हो तो निसंदेह ‘गोलमाल’ के उनके काल्पनिक नाम ‘भवानी शंकर’ के रूप से आज भी बखूबी जानती हैं और एक अभिनेता के लिये इससे बड़ी उपलब्धी भला और क्या होगी कि सिनेमा हॉल से निकलने वाले दर्शक उसकी भूमिका को उसके अभिनय, उसके अंदाज़, उसके संवाद और उसकी अदायगी को विस्मृत न कर पाता हो उसकी नकल उतारकर उसको बार-बार दुहराकर उसके अहसास में डूब जाता हो कुछ ऐसा ही प्रभाव पैदा किया था ‘उत्पल दत्त’ ने अपनी हर एक भूमिका से जो उनकी अभिनीत हर एक फिल्म के साथ एक यादगार बन चुकी हैं और फिल्म जगत में आने वाले अभिनय के इच्छुक लोगों को प्रेरणा देने के अलावा उनसे कुछ अलहदा सीखने का अवसर भी देती हैं क्योंकि ये उस समय के ऐसे कलाकार हैं जबकि अभिनय को सीखने के लिये आज की तरह कोई संस्थान नहीं होते थे, न ही तकनीक ही इतनी सक्षम थी तब कलाकार स्वयं की प्रेरणा से या अपने भीतर के अनुभवों से ही किसी भी किरदार को रजत पर्दे पर जीवंत करते थे तभी तो उस साधनहीन, अनुभवहीन, गैर-तकनीक दौर के लोगों ने जो भी किया वो आज भी अमर-अमिट हैं और उसका गुणगान किया जाता हैं कि कम संसाधनों और तकनीक की अनुपलब्धता के बावजूद भी वे हर एक कल्पना, हर एक सपने को हूबहू सिनेमा के सेल्युलाइड स्क्रीन पर उतार पाने में कामयाब हो सके जो आज भी फ़िल्मी दुनिया में आने वाले प्रशिक्षुओं के पाठ्यक्रम ही नहीं बल्कि सिनमा के मुरीदों को भी आश्चर्यचकित करता हैं

उनके द्वारा ‘भुवन शोम’ में अभिनीत नायक की भूमिका ने जहाँ उनको अभिनय का ‘राष्ट्रीय सम्मान’ दिलवाया तो वही एक ही निर्देशक ‘ऋषिकेश मुखर्जी’ के निर्देशन में तीन बार सर्वश्रेष्ठ  हास्य अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार हासिल किया ‘गोलमाल’, ‘नरम-गरम’ और ‘रंग-बिरंगी’ फिल्म के लिये जो आज भी अपनी ताजगी बरकरार रखे हुए हैं क्योंकि कोई कितना भी प्रयास कर ले लेकिन उनकी मिमक्री करना या उनकी ज्यों की त्यों नकल कर पाना किसी के वश की बात नहीं हैं । यूँ तो उन्होंने अपने जीवन काल में कम ही फ़िल्में की लेकिन हर एक फिल्म और भूमिका में उन्होंने अपनी विशेष छाप छोड़ी जिसके बलबूते वे इतनी बड़ी फिल्म इंडस्ट्री में अपना एक अलहदा स्थान बना पाये जिसे आज तक उनसे कोई भी छीन नहीं पाया कि वो सादगी और अभिनय की सहजता जो प्राकृतिक थी उसे कोई भी कॉपी नहीं कर पाया इसलिये फ़िल्मी इतिहास में उनकी भूमिकाओं का अपना ही एक अलग अध्याय हैं अंग्रेजी रंगमंच से शुरुआत कर उन्होंने जिस तरह से बंगला एवं हिंदी फिल्मों में अपनी जगह बनाई उसकी मिसाल नहीं । 
      
उन्होंने केवल ‘हिंदी’ ही नहीं ‘बंगला’ फिल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखाया और हर तरह की भूमिकाओं को बड़ी कुशलता से परदे पर साकार किया फिर चाहे वो ‘नायक’ हो या ‘सह-नायक’ या ‘हास्य कलाकार’ या नकारात्मकता भरा ‘खलनायक’ या फिर कोई चरित्र भूमिका उन्होने सबके साथ पूरी तरह से न्याय किया यही वजह कि उनको किसी विशेष दायरे में बांधकर उनका आकलन नहीं किया जा सकता फिर भी जिस तरह से उन्होंने हल्की-फुल्की मजाकिया फिल्मों में अपने भूमिका को अभिनीत किया वो लाजवाब हैं । अधिकतर लोग मसखरे के रोल के लिये विविध स्वांग रचते और तरह-तरह के गेटअप धारण करते और आजकल तो अश्लील संवादों, फूहड़ आवरण व गलत इशारों से कॉमेडी करते फिर भी बेबाक हंसी की वो लहर पैदा नहीं कर पाते जो ‘उत्पल दत्त साहब’ केवल अपने बोलने या अपनी मुखमुद्रा से ही कर देते थे यहाँ तक कि अपनी गोल-गोल आँखों का इस्तेमाल भी वो कुछ इस तरह से करते कि देखने वाला मुस्कुराये बिना न रह पाता था याने कि बिना किसी उपरी आवरण या अश्लीलता का सहारा लिये वो सहज ढंग से ही देखने वालों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते थे ।                   

आज उसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वाभाविक अभिनय में प्रवीण अदाकार, एक दक्ष नाटककार, सम-सामयिक विषयों पर सृजन करने वाले जारुक लेखक और कुशल निर्देशक को उनके जन्मदिवस पर अनेकानेक शुभकामनायें कि भले ही वो आज अपने दैहिक स्वरुप में हमारे बीच मौज़ूद नहीं हैं लेकिन अपने अभिनीत किरदारों के रूप में वे सदैव हमारा मनोरंजन करते रहेंगे, हमें गुदगुदाते रहेंगे... तो हमें ये अनमोल सौगात देने के लिये उनका बहुत-बहुत आभार और प्यार... :) :) :) !!! 
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२९ मार्च २०१६
© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री
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