गुरुवार, 11 मई 2017

सुर-२०१७-१३० : परमाणु बम का सफल परीक्षण... ‘राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी दिवस’ का शुभारंभ...!!!


१८ मई १९७४ वो तारीख हैं जिसे भारत ने ‘पोखरण’ में अपने प्रथम परमाणु परीक्षण के लिये चुना और उसने अपनी वर्षों की मेहनत से निर्मित ‘परमाणु हथियार’ मानवीयता की सुरक्षा व अमन स्थापना को समर्पित किया चूँकि उसका ये विध्वंशक बम यूँ तो संपूर्ण विश्व के लिये घातक था परंतु इसे निर्मित करने के पीछे उसकी भावना पवित्र एवं उद्देश्य नेक था इसलिए करुणा व शांति के अवतार ‘गौतम बुद्ध’ की जयंती को इसके लिये उपयुक्त समझा तो यही दिन उसे इस कार्य के लिये एकदम सटीक लगा जिसके सफल परिक्षण के लिये कोडवर्ड ‘बुद्ध मुस्कुरा रहे हैं’ रखा गया और इस पहले परीक्षण की ख़ास बात यह थी कि परिक्षण स्थल पर DRDO के प्रतिनिधि की हैसियत से डॉ ऐ.पी.जे.अब्दुल कलाम भी उपस्थित थे और जबकि इस पूरे प्रोजेक्ट के चेयरमैन श्री होमी सेथना थे जिन्होंने परीक्षण पूर्ण होने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की फोन कर सिर्फ इतना कहा की बुद्ध मुस्करा रहे है । इसके बाद ११ मई १९९८ को ‘बुद्ध दुबारा मुस्कुराये’ जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने पुनः इस परीक्षण हेतु अनुमति प्रदान की और संयोग देखिये कि इस बार डॉ कलाम साहब DRDO के हेड बन चुके थे और वाजपेयी जी ने उन्हें अपना वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त किया था तथा इस प्रोजेक्ट का गुप्त कोड ‘शक्ति’ रखा गया वैसे तो इन परीक्षणों को 1995 में ही किया जाना था लेकिन जब अमरीकी खुफिया उपग्रहो ने पोखरण की कुछ तस्वीरें प्रेस में दे दी तो अमरीकी राष्ट्पति बिल क्लिंटन के दबाव में प्रधानमंत्री नरसिहं राव  को परिक्षण असमय ही स्थगित करना पड़ा जो फिर वाजपेयी जी के कार्यकाल में संपन्न हुआ लेकिन ये सब इतना आसान न था क्योंकि पोखरण में रेगिस्तान होने के कारण किसी भी गतिविधि को अमरीकी सेटेलाइट के छुपा कर रखना असंभव था तो ऐसी स्थिति में परमाणु परिक्षण की सारी गतिविधियों को अमरीकी सैटेलाइट से गुप्त रखने की जिम्मेदारी भारतीय सेना की 58 सैन्य इंजिनीरिंग कमांड को सौंपी गयी जिसके कमांडर गोपाल कौशिक थे तथा परीक्षण के लिये आवश्यक साजो-सामान रेत के बड़े बड़े टीलो में छुपाया गया, जरूरी काम जैसे कि खुदाई इत्यादि रात के अंधेरे में बड़े-बड़े टेंट के अंदर निपटाया गया यहाँ तक की जो भी वैज्ञानिक परिक्षण स्थल पर जाते थे उन्हें फौजी यूनिफार्म पहननी पड़ती थी ।

इतनी सावधानियों के साथ किये गये इस प्रोजेक्ट की भनक अंतिम क्षणों तक पाकिस्तान और उसके आका अमेरिका को तक नहीं लगी अतः अमेरिका इन झटको को भूकंप के झटके समझ कई घंटो तक इन भूकंपो का केंद्र ही ढूंढ़ता रहा और फिर जब वाजपेयी जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये घोषणा की कि आज भारत ने पांच सफल परमाणु परिक्षण किये हैं तब जाकर दुनिया को ये बात पता चली इस तरह आज के दिन डंके की चोट पर भारत ने अपने परमाणु शक्ति संपन्न होने की घोषणा की जो हम सबके लिये भी गर्व और हर्ष के पल हैं कि तमाम असुविधाओं और कमियों के बाद भी हमारे वैज्ञानिकों ने हार न मानकर हर विषम परिस्थिति का डटकर सामना किया और जो भी मुश्किल हालात या परेशानियाँ उनके मिशन में बाधक बनी उनसे हारने की बजाय उन्होंने उसका समाधान निकालने का प्रयत्न किया जिसकी वजह से ये असंभव लगने वाला दुरूह कार्य भी सहजता से संपन्न हो गया जिसने पूरी दुनिया के सामने ये साबित कर दिया कि भारत किसी भी मामले में किसी से कम नहीं एवं उसके पास संसाधनों या योग्यता की कोई कमी नहीं केवल अवसरों की हैं लेकिन वे भी जब उपलब्ध करवाये जाये तो फिर यहाँ के वीर, यहाँ की युवा शक्ति किसी भी दुश्मन या कैसी भी कठिनाई से टक्कर ले सकती हैं कि उसे अपने बाहुबल और बौद्धिक सामर्थ्य पर भरोसा होता हैं जिसके दम पर ही वो किसी से नहीं डरता इसलिये अंततः उसे विजय हासिल ही होती हैं इस तरह ११ मई को हम तकनीक और अपने वैज्ञानिकों की हिम्मत के बल पर परमाणु संपन्न देश का ख़िताब हासिल कर सके जबकि हमसे पहले अमरीका की सहायता के कारण पाकिस्तान इस जीत को अपने खाते में डाल चुका था पर, देर से ही सही हमने ये सिद्ध किया कि हम बगैर किसी की सहायता के भी ये काम कर सकते हैं और कोई भी देश परमाणु बम के नाम से हमें डरा नहीं सकता कि यदि उसके पास ये ताकत हों तो हम भी ये क्षमता रखते हैं लेकिन शांति के पैरोकार हम पहली प्राथमिकता उसे ही देते हैं परंतु यदि अगला फिर भी न माने या हमसे जंग ही करना चाहे तो फिर उसे उसकी ही जुबान में समझाना भी जानते हैं चाहे फिर वो भाषा लातों-जूतों, पत्थरों-हथियारों या बम की हो हम हर एक दांव-पेंच में माहिर

कहने को यूँ तो इंसानियत के रक्षक मगर, दुश्मनों के लिये भक्षक भी बन सकते हैं अगर, उसे युद्ध ही एकमात्र विकल्प लगता हो और फिर अब तो तकनीक व प्रोद्योगिकी का साथ भी हमें मिला तो हमारी सेना के पास अस्त्र-शस्त्र ही नहीं बमों व गेजेट्स की भी भरमार इसलिये कोई हमें अपने से कम न आंके वरना, उसे पड़ेंगे अगल-बगल झांकना... गौतम बुद्ध के अनुयायी हम वैसे तो युद्ध को नापसंद करते परन्तु यदि शत्रु चढ़ाई कर ही दे तो फिर परशुराम की तरह कदम पीछे न हटाते चाहे फिर सामने कोई भी हो... शायद, यही वजह कि आज पूरी दुनिया ने ‘भारत’ को पहचाना हैं, उससे रिश्ता बनाया हैं आखिर कभी हम विश्वगुरु थे और दुबारा वही बनने को अग्रसर और जल्द ही दुबारा उस आसन पर विराजमान हो इस आशा के साथ सभी को विश्व प्रोद्योगिकी दिवस की अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!    

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ मई २०१७

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