बुधवार, 24 मई 2017

सुर-२०१७-१४४ : आज का सच : “बेड़ियाँ तोड़ती औरत” !!!


केतकीको उसकी गलती न होने पर भी जिस तरह से केवल शक के आधार उसके पति के द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था उससे वो तंग आ गयी थी और आज तो हद हो गयी जब उसका पति अपनी मनमानी करने कोई दूसरी औरत को साथ लेकर घर आया तब वो जान गयी कि वास्तव में उसे यही करना था जिसके लिये वो पिछले कई दिनों से भूमिका बना रहा था तो सच्चाई का अहसास होते ही उसने पहले खुद को इस स्थिति से लड़ने तैयार किया...
 
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कसकर दबोच ली उसने
वो सारी नलिकायें दिल की
जो जाती थी दिमाग तक
और पहुंचाती थी उनको लहू
नहीं सुनना चाहती थी
अब वो अपने मगज की बकबक

घोंटकर गला अपनी अंतरात्मा का
फेंक दिया था उसे
देह के कुंए में सदा के लिये
हमेशा रोकती-टोकती जो रहती थी वो उसको

जला डाली सारी किताबें
और वो सब पुर्जें
जो यदा-कदा देते थे उपदेश
और बघारते थे नैतिकता का ज्ञान
उड़-उड़कर दिखाते थे
उसे धर्म-अधर्म का नैतिक ज्ञान
अब नहीं उसके पास कोई भी ऐसी चीज़
कि जिसमें दर्ज हो मानवता का संदेश ।।
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फिर उसने अपने पर लगाये लांछनों का जवाब देते हुये कहा, जिस तरह सदियों से परंपराओं के नाम पर औरतों को घर की चारदीवारी में कैद कर के रखा हैं अब वो अब उसकी हकीकत जान गयी हैं भले ये कारागार नहीं लेकिन उससे इतर भी नहीं हैं, जहाँ उसे तरह-तरह के प्रलोभन देकर, धर्म का पाठ पढ़ाकर और जिम्मेदारियों के बोझ से लादकर इस तरह से बंधक बनाया जाता लेकिन अब उसने ये रहस्य जान लिया हैं तो इससे आज़ाद होने वो अपने ही हाथों इन एकतरफा रीति-रिवाजों और परम्पराओं की बेड़ियाँ काट रही हैं फिर चाहे उसे कितना भी अपमान सहना पड़े पर, वो इन पुरातन वेद-शास्त्रों के तर्कों के हवाले से रुकने वाली नहीं क्योंकि मर्दों के लिखे हुये ये पुराण उसके जीवन की गति निर्धारित नहीं कर सकते अपने लिये वो खुद अपने नियम गढ़ेगी जिसकी तरफ ये पहला कदम हैं और सारे धर्मग्रंथों को आग़ के हवाले कर वो घर की दहलीज़ लांघते हुये स्वाभिमान से सर उठाकर बाहर निकल गयी  जहाँ उसे किसी धार्मिक या जज्बाती तर्क के आधार पर वापस लाने का कोई भी प्रयास अब काम नहीं आने वाला था हर जंजीर से खुद को आज़ाद कर ही उसने यहाँ से निकलने का ठोस निर्णय लिया था ।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२४ मई २०१७

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