शनिवार, 6 मई 2017

सुर-२०१७-१२६ : ‘कुलभूषण जाधव’ तुम मरो, हम फिल्म बनायेंगे तुम्हारी शहादत को सब मिलकर श्रद्दांजली देंगे...!!!

साथियों... नमस्कार...


ज्यादा दिन नहीं हुये अभी १० अप्रैल २०१७ की ही बात हैं जब भारतीय नागरिक ‘कुलभूषण जाधव’ को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने मौत की सजा सुनाई जिसका विरोध या प्रतिक्रिया हमारे देश में उतनी तीखी नहीं दिखाई दी जितनी कि किसी पाकिस्तानी कलाकार को बैन करने या फिर फिर किसी आतंकी को फांसी की सजा दिये जाने पर होता कि लोग संविधान से मिले अपने नागरिक अधिकारों या मानवाधिकार की दुहाई देते हुये उसके पक्ष में खड़े हो जाते यूँ लगता कि मानो इन्होने ‘राहत फ़तेह अली खान’ या ‘अतिफ़ असलम’ के गाने और ‘गुलाम अली’ की गाई गजलें न सुनी या फिर वहां के अभिनेता या अभिनेत्रियों को फिल्मों में न देखा तो उनका जन्म बेकार हो जायेगा यदि हमारे कानून के अनुसार किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को जिसका कि गुनाह भी सिद्ध हो चुका हैं यदि सज़ा-ए-मौत दी गयी तो देश से मानवता ही खत्म हो जायेगी तो इंसानियत के सारे ठेकेदार केंडल्स लेकर निकल पड़ते उस पर भी उन्हें लगता कि वे अपनी बात को सरकार तक पहुंचा नहीं पा रहे तो दया याचिका लगा उसकी फांसी को रोकने जुट जाते फिर भले ही रात को भी अदालत को खोलने पड़े तो कोई बात नहीं लेकिन किसी पाकिस्तानी की मौत न हो जाये इस बात की इतनी फिकर रहती कि हर हद पार कर देते चाहे फिर अपने ही देश के कानून को कोसना हो या अपनी ही सरकार पर तोहमतें लगाना हो या फिर अपनों की ही कमियों को उजागर करना हो मतलब कि हर हथकंडे अपनाकर ये कोशिश की जाती कि जो कुछ भी वे चाहते उसे मान लिया जाये

यही वजह कि पकिस्तान की अपनी हरकतों से बाज न आने के बावजूद भी यहाँ के लोगों का उनके कलाकारों के प्रति मोहभंग नहीं हुआ आये दिन कई लोगों को पढ़ती रहती जो कि कभी ‘सूफ़ी संगीत’ तो कभी ‘गुलाम अली’ की मखमली आवज़ तो कभी ‘राहत फ़तेह अली खान’ या ‘अतिफ असलम’ के गानों को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बताते और उनके अभिनेता या अभिनेत्रियों की अदाकारी की हिमायत करते कि उन पर पाबंदी लगाना कला का अपमान हैं या कलाकारों को राजनीती से अलग रखा जाये और भी कई तरह के कु-तर्क उनके तरकश में होती जिसे वे आये दिन छोड़ते रहते उस वक़्त उनके जेहन में महज़ अपना इंद्रिय सुख या अपनी ख़ुशी ही सर्वोपरि होती देश या देशभक्ति उनके उस कला प्रेम के आगे तिरोहित हो जाते कि यदि उन्होंने सूफी संगीत या उनके फनकारों का न सुना तो शायद, उनकी सांसें ही न चलेंगी तो कई तरह के कुतर्कों की आड़ लेकर वे अपने मन की बात कहते इसके लिये यदि उन्हें ‘राष्ट्रद्रोही’ भी कहलाना पड़े या अपने तिरंगे का अपमान भी सहना पड़े तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके लिये वो ज्यादा जरुरी लेकिन हमारा तो ये सोचना कि बात जब देश की हो तो फिर पकिस्तान में अमृत भी बाँट रहा हो तो हमारे लिये विष समान हैं कि हमने बचपन से ही पढ़ा कि “आवत ही हरषे नहीं, नैनन नहीं सनेह, तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह” तो फिर उनकी आयातित वस्तुओं से इतना प्रेम क्यों ? ये कैसा मानवाधिकार ?? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ??

जिससे अपने ही वतन को हम आहत करें और अपनों को ही चोट पहुंचाये ऐसी जगह तो हमें सीना ठोककर कहना चाहिये कि कोई फर्क नहीं पड़ेगा यदि हम ‘गुलाम अली’ को न सुने या ‘राहत’ और ‘अतिफ’ यहाँ गाने नहीं आये वैसे भी उनकी वजह से हमारे प्रतिभाशाली गायक/गायिकाओं को काम नहीं मिलता तो इस तरह हम अपने देश की प्रतिभा को ही नुकसान पहंचाते याने कि इस तरह की बयानबाजी या हरकतों से पाकिस्तान को तो वाह-वाही मिलती पर, हमारी भारतमाता का सीना जरूरी छलनी हो जाता हमारे तिरंगे को तुम्हें पनाह देने में जरुर शर्म आती और ये धरती माता भी ऐसे गद्दारों को झेलने पर शर्मिंदा होती फिर भी माँ हैं तो सह ही लेती लेकिन ये गुस्ताख बच्चे अपनी नाफरमाबरदारी से बाज नहीं आते क्योंकि उन्हें तो खुद को बड़ा दरियादिल बताना या वो क्या बोलते सेक्युलर कहलाना पसंद तो जब भी ऐसा कोई मामला सामने आये आप उनका पलड़ा पाकिस्तानियों की तरफ ही झुकते देखेंगे तभी तो उनके द्वारा दिये गये ६० दिन को यदि गिना जाये तो १० अप्रैल से आज ६ मई तक २६ दिन हो गये लेकिन सब ख़ामोश जबकि वहां तो फांसी की सजा ही नहीं दिवस भी निर्धारित कर दिये गये जिसमें से २६ तो निकल ही गये जो बचे वो भी गुज़र ही जायेंगे क्योंकि वहां हमारी तरह कोई वकील थोड़े जो रातों को कोर्ट खुलवाये और न ही ऐसे स्टूडेंट्स जो पाकिस्तान तेरे टुकड़े होने इंशाल्लाह... इंसाअल्लाह... चिल्लाये और न ही ऐसे मानवाधिकार संगठन जो मानवता की दुहाई दे ये केवल यही संभव उसके बाद भी लोग इसे अ-सहिंष्णु कहते क्यों न कहे क्योंकि वो इनकी बदतमीजी पर इन्हें सज़ा देने की बजाय सिर्फ नसीहत ही देता जबकि वहां तो साफ़ निर्देश दिये गये कि जो भी वकील उसके पक्ष में लड़ेगा उसे बर्खास्त कर दिया जायेगा उसकी बार सदस्यता समाप्त कर दी जायेगी और यहाँ तो ऐसे वकील सेलेब्रिटी बन जाते जो आतंकियों का केस लड़ते

भारत में तो जघन्य अपराध करने पर तमाम सुबूतों के मद्देनजर फांसी की सजा दिये जाने पर भी लोगों के दिल पिघल जाते और वहां अपराधी सहित सुबूत भी नकली बना सजा दी जाती तब भी किसी की मज़ाल नहीं कि अपने देश या कानून का विरोध कर सके न ही ऐसे ही समाज सेवी संगठन जिनके कलेजे में दर्द हो क्योंकि बात जब ‘भारत’ की हो तो उनके यहाँ सब एकमत हो जाते इसलिये तो वे इतनी बर्बरता से हमारे सैनिकों के सर काटकर ले जाते या हमारे देश के बारे में जो चाहे कहते जबकि हमारे यहाँ अपनी ढपली, अपने राग शुरू हो जाते क्योंकि धर्मनिरपेक्षता, कौमी एकता का ठेका इन्होने ही तो ले रखा यदि ये चाहे तो जिस सोशल मीडिया से ये उनके पक्ष में पुरजोर गुहार लगाते उसी से अपने देश के लिये भी तो अपील कर सकते पर, वहां उन्हें मामला सिर्फ और सिर्फ सरकार का लगता कि वही जाने जो करना । लेकिन आप किसी पाकिस्तानी कलाकार को प्रतिबंधित कर के तो देखो ये भूल जायेंगे कि ये इसी मिटटी की सन्तान ऐसी-ऐसी बातें अपनी सरकार व देश के खिलाफ़ लिखेंगे कि उस वक़्त उनको ये भी याद न रहेगा कि ये अपने आपको ही नीचा दिखा रहे क्योंकि इनके शब्दकोश में देश, देशप्रेम, कर्तव्य सब इनके अनुसार ही परिभाषित जो भारतीय संविधान से मेल नहीं खाता उस पर तुर्रा ये कि कोई इन्हें आईना न दिखाये वरना उसे तो फोड़ेंगे ही दिखाने वाले को भी कहीं का न छोड़ेंगे यकीन न हो तो सोशल मीडिया पर ऐसे किसी तथाकथित मानवतावादी को छेड़कर तो देखें दुम दबाकर न भागे तो कहना कि देश में अमन इनकी ही वजह से तो कायम ।                     
  
ये सब ‘कुलभूषण जाधव’ के बारे में तब आवाज़ उठायेंगे जब उनको फांसी दे दी जाये क्योंकि सरकार के खिलाफ कुछ कहने या लिखने का कोई भी मौका ये नहीं गंवाते और मीडिया भी चुप कि वो तो लोगों की स्मृति से परिचित ही कि कितनी कमजोर याददाश्त हमारी तो वो भी दूसरी बातो को हाईलाइट कर रहे ऐसे में वो दिन दूर नहीं जबकि अनहोनी हो जाये वैसे तो एक शंका ये भी व्यक्त की जा रही कि ‘कुलभूषण’ जीवित ही नहीं तो सच तो सामने आने से रहा जब तक कि उधर से कोई खबर न आये और वे तो झूठे प्रमाणों के जरिये उन्हें जासूस ही नहीं ‘रेम्बो’ साबित कर ही चुके तो फिर उनको मनमानी से रोकने की जितनी भी कोशिशें की जाये वे न टलेंगे जबकि पर्दे के पीछे की सच्चाई ये कि बलूचिस्तान का भारत की तरफ झुकाव देखते हुये ही ये झूठा प्रकरण बनाया गया और ३ मार्च २०१६ की गिरफतारी के बाद आनन-फ़ानन में १० अप्रैल को ही उनके केस का फैसला कर दिया गया और यहाँ तो सालों-साल आतंकियों को पाला जाता उसके बाद भी बहुत एहतियात बरतते हुये फांसी दी जाती कि उन्हें पता उनके अपने लोग उनके विरुद्ध जबकि वो सीना ठोककर गलत काम करते और इस बार भी ये आशंका कि ‘सरबजीत’ की ही तरह उनका अंजाम होगा और हम लोग उन पर फिल्म बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे कि ये ज्यादा आसान... दुखद हो या कष्टपूर्ण लेकिन एक सच हैं ये भी... :( :( :( !!!      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०६ मई २०१७

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