शुक्रवार, 12 मई 2017

सुर-२०१७-१३१ : नारद मुनि और फ्लोरेंस नाइटिंगेल... एक आसमानी संवाददाता तो दूसरी धरा परिचारिका मगर, दोनों ही ईश्वर के एजेंट...!!!


जिस तरह धरती पर एक दुनिया बसी हुई हैं बिल्कुल उसी तरह उपर आसमान में भी एक जहान बसा हुआ हैं अंतर केवल इतना हैं कि नीचे इंसानों की बस्ती हैं तो ऊपर भगवानों का बसेरा हैं इस तरह दोनों ने मिलकर इस पृथ्वी का संतुलन बनाया हुआ हैं क्योंकि इसे अपनी जगह पर स्थिर बनाये रखने धरा के नीचे पाताल लोक बना हुआ जो दानवों का निवास स्थल माना जाता और इन तीनों के अलावा जल में भी एक अलग संसार समाया हुआ तो जल-थल-आकाश और वायु सभी जगह अलग-अलग प्रकृति व प्रवृति के जीवों ने अपना साम्राज्य बसाया हुआ हैं जिसमें सभी आपस में एक-दूसरे से परस्पर संवाद स्थापित करने किसी न किसी तरह की तरकीब अपनाते चाहे वो भिन्न-भिन्न कोड या आवाज़ हो या स्वर या फिर भाषा जिसके माध्यम से संकेतों का आदान-प्रदान किया जाता समय के साथ इसमें परिवर्तन हुआ तो कई अन्य साधनों का प्रयोग भी किया जाने लगा जैसे पत्र, अख़बार और कोई वस्तु जिसे प्रतीक के रूप में भेजा जाता तो इस तरह से इस कला का विकास होने लगा जिससे कि कम समय और आसानी से किसी भी सुचना को कहीं पर भी भेजा जा सके इसका परिणाम जिस रूप में हमारे सामने हैं उसे बताने की जरूरत नहीं लेकिन कभी जब इसे स्वयं ही यहाँ से वहां पहुँचाया जाता था तब इसे बड़ा दुष्कर कार्य माना जाता था परंतु ब्रम्हा जी के मानस पुत्र ‘नारद जी’ ने अपनी अद्भुत प्रतिभा एवं तपोबल के सामर्थ्य से इसमें इतनी महारत हासिल कर ली कि महज़ मन की गति से ससकल जगत में कहीं भी पहुंचना उनके लिये असंभव न रहा और इस प्रकार वे एक जगह से सूचनाएं एकत्रित कर उसे दूसरी जगह प्रेषित कर वहां से नवीनतम जानकारियां एकत्रित कर आगे बढ़ जाते जिससे कि उनके पास सब तरह की सूचनाओं का भंडार एकत्रित हो जाता जिसे वो लोगों की आवश्यकतानुसार प्रदान किये करते जिससे कि उनका सदुपयोग हो सके तो इस तरह नारद मुनि पहले संवाददाता या पत्रकार माने जाते जो अपनी इच्छाशक्ति मात्र से चुटकियों में कहीं भी पहुँच जाते फिर वहां काम समाप्त कर पुनः आगे बढ़ जाते और इस तरह वे किसी डाकिये की तरह बिना झोले या लिफ़ाफ़े के ही लोगों तक उनके प्रतिउत्तर पहुंचाते जिसमें कभी-कभी अपनी तरफ से भी कुछ मजेदार बातें जोड़ देते कि सुनने वाले का जायका बढ़ जाए उनकी इस काबिलियत की वजह से उन्हें अलग-अलग नामों से भी पुकारा जाता जिनमें से ज्यादातर नकारात्मक जो उनकी गलत छवि प्रस्तुत करते जबकि वे निःस्वार्थ रूप से केवल समाज हित में ही लगे रहते और उनके द्वारा दूसरों का भला ही होता बस, इस मीठे फल तक पहुँचने हेतु कभी-कभी उनके द्वारा दी गयी सीख प्रारंभ में कड़वी प्रतीत होती लेकिन जो उसे बिना किसी शंका के अपना लेता उसके वारे-न्यारे हो जाते कि उनका आशीष और वचन सदैव फलदायी होते

इसी तरह नीचे जमीन पर ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ भी एक ऐसी मानवी थी जो हाथ में चिराग लेकर घूम-घूम पीड़ितों को ढूंढती जिससे कि उनके दुःख-दर्द व तकलीफों पर अपने प्रेम का मरहम लगा सके इस तरह वे भी नारद मुनि की भांति किसी भी प्रतिफल की आशा किये बिना तरह समाज सेवा के कार्य में सतत संग्लन रहती कि कोई भी उनकी नजर से चूक न जाए जिसे कि उनकी सेवा की जरूरत हो तो इस तरह दर्द से तड़फते मरीजों को वे ढूंढ-ढूंढ कर उनका इलाज करती और जब भी उन्हें ये खबर लगे कि कहीं युद्ध या किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से इंसान की जिंदगी नर्क से बदतर हो रही हैं तो वे वहां जाकर उन्हें स्वर्गिक आनंद की अनुभूति करवाती कि उन्होंने देवर्षि नारद की तरह अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा-सुश्रूषा के लिये समर्पित कर दिया अंतर केवल इतना उन दोनों में कि नारद मुनि जहाँ बादलों के बीच बसी दुनिया में विचरण करते और संवाद को गंतव्य तक पहुंचा बेचैन, परेशान, व्यथित आत्मा को सुकून भरा मरहम लगाते जो उसे तनाव रहित बनाकर उसके लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होता । फ्लोरेंसे यही काम जमीन पर अलग तरह से कर रही थी क्योंकि वो एक परिचारिका जिसका धर्म केवल अपने पास आने वाले रोगी की सेवा कर उसे स्वस्थ बनाना हैं जबकि वे तो स्वयं मरीज के पास जाती फिर उसे रोगमुक्त करती वो भी ऐसे समय में जबकि सब कुछ सुविधाजनक न था और न ही इतनी शक्तिशाली दवाइयां ही मौजूद थी लेकिन जिसने अपने प्रेम भरे व्यवहार व स्नेह रूपी मरहम से ही किसी भी रोगी को ठीक करने का संकल्प लिया हो उसे फिर किसी भी तरह के अन्य साधनों की आवश्यकता नहीं होती वे तो महज़ अपनी ममतामयी दृष्टि और कोमल मुस्कान से सामने वाले के सभी दुःख हर लेते जिसमें फ्लोरेंस को महारत हासिल थी तो उन्होंने अपनी निःस्वार्थ सेवा भावना से नर्स के पेशे को भी इतना सम्मानजनक बना दिया कि भले घर की लडकियाँ भी इसे ख़ुशी-ख़ुशी अपनाने लगी और आज बहुत-सी प्रशिक्षित नर्स विभिन्न अस्पातलों में अपनी सेवायें दे रही यहाँ तक कि सिर्फ महिलायें ही नहीं पुरुष भी इस व्यवसाय को अपना के खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं कि किसी भी दुखी इंसान के होंठों पर खिलखिलाती हंसी लाना या निराशा से भरी आँखों में उम्मीद की चमक पैदा करना किसी भी साधारण आदमी के बस की बात नहीं जिसमें वही सफल होते जो स्वेच्छा से इस व्यवसाय को अपनाते और दूसरों को भी इसमें आने को प्रेरित करते हैं ।

आज १२ मई को एक विचित्र संयोग आ गया जब  नारद मुनि की जयंती एवं फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती एक साथ पड़ गयी तो आप सभी को इनका आशीष और ये शुभकामना कि सभी इनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को इस तरह से परिवर्तित करने की कोशिश करें कि उनसे दूसरों को भी लाभ मिले... आप सबको नारद जयंती व नर्स दिवस की अनंत शुभ-कामनायें... :) :) :) !!!                     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ मई २०१७

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