मंगलवार, 9 मई 2017

सुर-२०१७-१२९ : भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की आस्था का प्रमाण... जगत पालक भगवान् का सौम्य-रौद्र नृसिंह अवतार...!!!

साथियों... नमस्कार...

आज फिर आसुरी शक्तियाँ प्रबल हो गयी हैं जो आये दिन भगवान के अस्तित्व पर ऊँगली उठाती हैं, उनके नाम पर कुप्रचार करती हैं, उनकी स्थापित मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास करती हैं, यहाँ तक कि उनके कथाओं को गलत ढंग से प्रस्तुत कर उनके मनमाने अर्थ निकालती हैं और इस पर अहंकार इतना कि खुद को ही सही मानती हैं क्योंकि कुछ ज्ञान तो कुछ विज्ञान उस पर खुद को सर्वज्ञाता समझने का अभिमान ये सब मिलकर उनको दानवों की भांति अपने आप से इतर देखने नहीं देता ऐसे में यदि कोई इन्हें समझाये तो उस पर कुतर्कों का ऐसा वार करती हैं कि फिर वे इस तरह की दुष्ट शक्तियों की छाया से भी दूर रहना ही पसंद करते हैं इस तरह की हरकतें यही साबित करती कि वाकई ये कलयुग का आगाज़ हैं जहाँ इंसान अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी नहीं देखता कि उसकी पूजा-पाठ, साधना-उपासना जैसे पुण्य कर्मों से दूरी बढ़ जाती साथ ही पवित्र संस्कारों व विचारों से मन हट जाता और आये दिन होने वाली हिंसक घटनायें, पापपूर्ण व्यवहार, चारों तरफ का अश्लीलता भरा माहौल उसके मस्तिष्क पर वासनाओं का ऐसा आवरण डाल देता जिससे कि उसके हाव-भाव, धारणायें, संकल्प, इच्छायें, आत्मबल सब समय के अनुसार परिवर्तित हो जाते जो उसे सही लगते लेकिन दिव्य आत्माओं को उनके भीतर छिपी राक्षसी प्रवृतियां नजर आ जाती क्योंकि वे जानते कि यदि इनका साम्राज्य स्थापित हो गया तो दुनिया का पतन हो जायेगा इसलिये वे ईश्वर का आह्वान करते कि वे धरती पर आकर निर्दोषों मानव जाति को इनसे बचाये, धर्म की स्थापना करें नहीं तो अधर्म का बोलबाला हो जायेगा

हर कथा के मूल में आपको यही सार्वभौमिक सत्य मिलेगा जहाँ शुरुआत में भले ही दैत्यों का राज दिखाई दे लेकिन अंततः देवता आकर इनका अंत कर ही देते भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की कहानी जो हम सभी बचपन से सुनते आये में भी यही दर्शाया गया कि किस तरह उसके पिता ‘हिरण्यकश्यप’ को जगतपालक विष्णु से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिये ब्रम्हा प्रदत्त एक अद्भुत वरदान के कारण ये घमंड हो गया कि वो कभी मर नहीं सकता तो इस भ्रम ने उसे निरंकुश बना दिया और प्रजा पर उसके अत्याचारों की सीमा न रही यहाँ तक कि उसने तो खुद को ही भगवान घोषित कर सभी देवताओं की पूजा को अपने राज्य में प्रतिबंधित कर दिया लेकिन जिस तरह अमावास की घोर काली रात में भी सितारें टिमटिमाते हैं सर्वत्र बिखरे उसे अँधेरे को मुंह चिढ़ाते हैं कुछ वैसे ही एक नन्हे बालक ने अपने ही जन्मदाता से विरोध करने का अदम्य साहस दिखाया जिसके लिये उसे कितने भी कष्ट सहन करने पड़े उसने हिम्मत न हारी कि उसकी आंतरिक पवित्रता से उसे बल मिलता जो किसी भी जुल्म-सितम के आगे उसे झुकने न देता वो प्रह्लाद जो कहने को राक्षस वंश की संतान था लेकिन उसके बावजूद भी वो अपनी स्वाभाविक राक्षसी प्रवृतियों से एकदम विपरीत स्वाभाव का शांत, धीर-गंभीर, प्रकृति और ईश्वर का उपासक व मानवता प्रेमी था तो भगवान के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और निष्कपट आस्था के बल पर उसने वो कर दिखाया जो नितांत असंभव प्रतीत हो रहा तो उनकी ये कथा हमें प्रेरणा देती कि किस तरह अपने आस-पास फैली हुई गंदगी में भी खुद को बचाकर साफ़-सुथरा रखा जा सकता न कि उस दलदल में पैर डालकर उसे ही कोसे कि उसकी वजह से हम आगे नहीं बढ़ पा रहे, कुछ कर नहीं पा रहे मतलब अपनी अकर्मण्यता का दोष वातावरण के सर मढ़ दे जैसा कि आज के नवयुवक / युवतियां करते नजर आते जबकि एक छोटा-सा बच्चा आसुरी शक्तियों से घिरा होने पर अविचलित अनवरत अपने पथ पर आगे बढ़ता रहा

उसने भी हम सबकी तरह कभी ईश्वर को नहीं देखा लेकिन बिल्ली के बच्चों को आग़ से बचते देखा था तो उसे उस सत्ता पर स्वाभाविक भक्ति जागृत हो गयी जबकि हम न जाने कितने ऐसे आध्यात्मिक अनुभवों से गुजरकर पर भी उतने दृढ ईश्वर भक्त नहीं हो पाते कि ‘हिरण्यकश्यप’ की तरह मद से चूर पर, उस भक्त को तो अपने भगवान पर भरोसा था तो उसने हर परीक्षा को उसका नाम लेकर उत्तीर्ण किया और जब उसके इस अडिग भरोसे को उसके पिता ने देखा तो जिस भगवान के अस्तित्व पर उसे शंका थी जैसे कि आज के अधिकांश लोगों को अपनी नासमझी के कारण हैं कि उन्होंने किताबें तो पढ़ ली लेकिन अपनी मासूमियत, सहजता-सरलता, भोली-भाली निष्ठा से कट गये तो फिर ईश्वर नजर कैसे आये जबकि उसके पिता द्वारा उसका खड्ग से वध करते समय ये प्रश्न करने पर कि, ‘क्या ईश्वर इस खड्ग में भी हैं’ तो उसने निर्भीक होकर जवाब दिया, ‘हाँ’, फिर उसने समीप बने खंबे की तरफ इशारा करते हुये कहा, ‘क्या इसमें भी’ ? तब भी उसने निडरता से वही कहा ‘हाँ’, इसमें भी... तो बस, यह सुनकर उसे उसी तरह क्रोध आ गया जैसे आजकल लोगों को ‘राम’ का नाम सुनते ही आ जाता कि ऐसा तो कोई कभी हुआ ही नहीं लोग बेकार ही एक ग्रंथ की पूजा करते तो उसने कहा, ‘ठीक हैं, दिखाओ तुम्हारा भगवान’ तो उसने सच्चे मन से उनका स्मरण किया और तभी चमत्कार हुआ स्तंभ फोड़कर ‘नर’ और ‘सिंह’ का मिला-जुला स्वरुप ‘नृसिंह अवतार’ प्रकट हुआ जिसने वरदान को अक्षरशः सत्य प्रमाणित करते हुये उस दानवराज से प्रताड़ित जन-जन को मुक्त किया...

ये सब कुछ आज ही के दिन वैसाख चतुर्दशी को घटित हुआ तो इसे ‘नरसिम्हा जयंती’ के रूप में मनाया जाता और भगवान विष्णु के इस सौम्य-रौद्र मिले-जुले रूप का पूजन किया जाता तो आप सभी को भक्त शिरोमणि ‘प्रह्लाद’ की अनन्य आस्था के प्रमाण नृसिंह अवतार के प्राकट्योत्सव की श्रद्धापूर्ण अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!
                                
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०९ मई २०१७

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