रविवार, 28 मई 2017

सुर-२०१८-१४८ : 'आरक्षण... !!!'




सुबह-सुबह...
भ्रमण को जा रहे थे हम
तभी सड़क किनारे से किसी के
कराहने का स्वर उभरा
नजर उठाई तो देखा
कोई बेबस तोड़ रहा था दम
जाकर करीब उसके
मुंह पर पानी जो छिड़का
आँख खोल उसने हमको देखा
पूछा कि क्यों यहां इस तरह पड़ी हो ?
क्या नाम हैं तुम्हारा,
किसने हैं तुमको मारा ?
मुश्किल से जोर लगा
उसने ये कहा कि
नाम हैं मेरा 'योग्यता' और
'आरक्षण' नाम के गुंडे ने हैं
मुझको बेदर्दी से पीटा
लड़ते-लड़ते उससे
आखिर मैं पिछड़ गयी
होकर के बेदम यहां पर हूँ पड़ी
अब तुम बताओ तुम कौन हो ?
जिसने हैं मुझको बचाया
मुस्कुरा मैं ये बोली
नाम हैं मेरा 'आशा' जिस पर
ये धरती टिकी हुई हैं
भूखे पेट भी लोगों की
हिम्मत बनी हुई हैं
फल की न इच्छा कर दुनिया
काम में जुटी हुई हैं
तुम तो हो इतनी काबिल
फिर क्यों निराश हो रही हो ?
क्यों दूसरे की ख़ातिर
जान तुम अपनी दे रही हो ?
चलो उठो... खड़ी हो...
नई उम्मीदों के साथ कर्मरत हो
न यूँ होकर उदासीन
जीवन से मुंह मोड़ो तुम
मिलेगी तुम्हे सफलता
न यूँ हारकर तकलीफों से
दुनिया को तुम छोड़ों
पाकर साथ 'आशा' का
'योग्यता' फिर से जी उठी
होकर खड़ी वो अपने पैरों पर
हंसती-मुस्कुराती खिलखिलाती
पूर्ण आत्मविश्वास के साथ
'आशा' संग आगे बढ़ चली ।।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ मई २०१७

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