गुरुवार, 4 मई 2017

सुर-२०१७-१२२ : “महिला सशक्तिकरण की प्रणेता : देवी सीता !!!”

साथियों... नमस्कार...


यूँ तो ‘सिया’ एक आध्यात्मिक पात्र हैं जिसे हम देवी मानकर पूजते और पुराणों के अनुसार उन्हें माता ‘लक्ष्मी’ का अवतार माना गया हैं जिन्होंने ‘त्रेता युग’ में जनम लिया लेकिन उनका ये जन्म भी उनकी ही तरह असाधारण था कि उन्होंने सीधे धरती माँ की कोख से पैदाइश लेकर सबको अचंभित कर दिया विदेह जनक मानो उन्हें पाकर धन्य हो गये जीवन में जो भी कमी थी वो पूरी हुई और मिथिला नरेश को उनकी संतान यूँ प्राप्त हुई इस तरह उन्होंने अपने जन्म से लेकर वापस भूमि में समाने तक के बीच में जो भी किया सब कुछ उनके व्यक्तित्व की तरह ही पहेली बना रहा कि उनके जन्म से कई मिथक जोड़ दिये गये जहाँ सबने उनका भूमिजा होना तो स्वीकार किया लेकिन उनके वास्तविक माता-पिता के रूप में मंदोदरी और रावण का उल्लेख किया जिसकी वजह से हमारे देश कई गाँव में ऐसी लोकगीत प्रचलित जिनका भावार्थ ये निकलता माँ सीता कहती हैं कि, “कैसे दूँ मैं श्राप कि रावण-मंदोदरी मेरे पिता-मात’ शायद, इसलिये रावण के इतने अत्याचार और जुल्म सहने के बाद भी वो उसे अभिशाप नहीं देती खैर, ये सत्य हो या नहीं इससे उनके चरित्र पर कोई आंच नहीं आती कि वे अपनी समर्थ से स्वयं प्रकट हुई इसलिये हम यदि धरती माता को ही उनकी माँ का दर्जा दे या फिर उन्हें पालने वाले राजा जनक और माता सुनयना को ये उनके पहेलीनुमा व्यक्तित्व को और भी अधिक रोचक बनाता और हम आश्चर्य से उनकी कथा पढ़ते या सुनते जाते कि किस तरह एक ‘स्त्री’ ने वसुधा को केवल माँ कहलाने ही नहीं बल्कि उसे महसूस करने का भी अभूतपूर्व अवसर दिया उनके गर्भ में खुद को स्थापित किया तो धरती भी उनकी इस कृपा से निहाल हो गयी और उन्होंने अपनी वो प्रिय संतान राजा जनक के हवाले कर दी कि उनके निसंतान होने का दुःख दूर हो जाये तो इस तरह जनक की पुत्री ‘जानकी’ या विदेहराज की बेटी ‘वैदेही’ की उत्पत्ति आज ही के दिन वैसाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुई हम सब राम नवमी तो बड़े धूम-धाम से मनाते लेकिन उनकी जयंती को बिसरा देते और वो तो हैं ही क्षमाशील तो हमारी इस गलती पर भी कभी ध्यान नहीं देती भले हम रोज उनकी पूजा न कर पाये लेकिन यदि हम उन्हें आज के दिन याद करे और जन्मदिन की बधाइयाँ दे तो क्या उन्हें भी ख़ुशी न होगी कि कलयुग में भी लोग उनसे प्रेरणा प्राप्त कर रहे क्योंकि स्त्री सशक्तिकरण की जैसी मिसाल उन्होंने दी वो तो आज भी देखने में नहीं आती...

एक बेटी और बहन के रूप में तो उन्होंने सुख के सिवाय कुछ न पाया लेकिन जब पत्नी बनी तब उनके जीवन का नया अध्याय ही नहीं शुरू हुआ बल्कि कहे कि उन्हें अपनी भूमिका निभाने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ कि फूलों की शय्या पर सोने वाली और मखमली जमीनी पर चलने वाली उस कोमलांगी कन्या को अपने हर भोगे गये सुख के विपरीत जाकर वो अँधियारा पक्ष भी न सिर्फ देखना पीडीए बल्कि उसे भोगना भी पड़ा जिसने उन्हें बेटी, नभन, पत्नी, माँ के दर्जे से भी ऊंचा ‘देवी’ का दर्जा दिलवाया कि उन्होंने इन विपरीत परिस्थितयों में न तो हार मानी और न ही पलायनवादी रवैया अपनाया और न ही कर्तव्य पथ से विमुख होने वाले विकल्पों को चुना जो उन्हें उपलब्ध थे उन्होंने हर एक सुख-सुविधा को ठुकराकर वो चुना जिसने उन्हें निखारा उन्होंने हर परीक्षा को चुनौती की तरह स्वीकार किया इसलिये राजमहल छोड़ वन जाने का निर्णय लिया जबकि सबने उन्हें रोका परंतु वे जानती थी कि यदि उनके अर्धांग वन में नंगे पांव घूमेंगे राक्षसों का सामना करेंगे तो वे मखमली शैया पर एक पल न सो पायेगी तो तुरंत राजसी वैभव, परिधान, जेवर सबको एक क्षण में त्याग भगवा चोला पहनकर राम के पीछे चल पड़ी और पर्णकुटी में रहकर रुखा-सुखा खाने से परहेज न किया बल्कि जंगली जानवरों और दानवों से भी न घबराई और जब रावन बलात अपहरण कर ले गया तो वहां भी उसके किसी अत्याचार से घुटने न टेके और अग्निपरीक्षा की स्थिति बनने पर भी न तो किसी को कोसा न कोई सवाल किया कि जब बात चरित्र की हो तो उसे शब्दों से नहीं कर्म से सत्य सिद्ध किया जाता तो बेझिझक प्रचंड आग में बैठ गयी और जब राम ने गर्भवती अवस्था में बिना बताये त्याग दिया तब भी अविचलित रही और एकाकी ही न केवल सन्तान को जनम दिया बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार दिए न कि पिता के खिलाफ हथियार बनाया और इस तरह एकल पालक की वो पहली मिसाल बनी जो अनुकरणीय कि दोषारोपण किये बिना उन्होंने अपने जीवन को जिया लेकिन अंत में जब पुनः खुद को सिद्ध करने की बात आई तो उन्होंने फिर एक पल भी उस जगह या उन लोगों के मध्य रुकना गंवारा न किया और अपनी माँ को आवाज़ लगे तो धरती ने उनके लिये पट खोल दिए जिसमें वे समा तो गयी लेकिन अपने दृढ चरित्र से महिलाओं को स्वाभिमान से जीने के बेमिसाल मंत्र दे गयी...

ऐसी अद्भुत सशक्त नारी भूमिपुत्री जनकनंदिनी माँ सीता को प्रणाम और जयंती की सभी मित्रगनों को अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!
                   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०४ मई २०१७

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