रविवार, 14 मई 2017

सुर-२०१७-१३४ : कैसी ये समाज की रीति... माँ मांगे माँ से मिलने की अनुमति...!!



जैसे ही ‘मानवी’ को होश आया और उसे ये पता चला कि वो एक प्यारे से बच्चे की माँ बन गयी हैं उसे लगा माना अब तक वो सिर्फ ‘मानवी’ थी जिसके साथ कहने को कई रिश्ते जुड़े थे लेकिन जो उसे पूर्णता का अहसास कराये, उसके मातृत्व को सार्थकता दिलाये वो तो अब जन्मा हैं जिसके पैदा होते ही उसने भी तो माँ का जनम लिया हैं कि इससे पहले तो वो सिर्फ़ किसी की बेटी थी लेकिन आज अपनी माँ की तरह उसने भी वो दर्जा पा लिया जिसे पाने की ख्वाहिश उसके मन में अपनी माँ को देखकर कभी न जगी कि वो तो सिर्फ किसी की पत्नी या किसी की माँ थी जिनके पास अपना कोई अधिकार या अपनी कोई मर्जी नहीं थी उन्हें तो बस, अपने पति और घर की ही चिंता रहती इसलिये उनका सारा ध्यान वहीँ केंद्रित रहता उस चारदीवारी के पीछे की दुनिया देखने की न तो उसे कोई ख्वाहिश थी और न ही कोई उत्साह क्योंकि उसने तो अपने बच्चों को ही अपनी दुनिया समझ रखा था लेकिन कितने भी सुखों में रहे या दुखों में कोई भी बेटी अपनी माँ को नहीं भूल सकती तो उनके मन में भी दूसरी सामान्य औरतों की तरह साल में एक बार ही सही अपने मायके जाने की इच्छा मचलती रहती थी अतः उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता लेकिन उस दिन का चुनाव उनके अपने हाथों में न था अपने जन्मदाताओं से मिलने जाने की अनुमति उसे उस व्यक्ति से लेनी होती थी जिसे उसके सुखद भविष्य के लिए उसके माता-पिता ने स्वयं चुना था लेकिन उसे यूँ लगता जैसे किसी मूक पशु की भांति उसकी डोर किसी और के हाथों में देते ही उसके मालिक बदल गये हो और उसे कहीं भी जाने के लिए उनसे इजाज़त लेना आवश्यक हैं तो इस टीस से उसे बड़ी तकलीफ होती फिर भी मन मारकर वो उनसे पूछती और हमेशा की तरह वे गुस्से में चिल्ला पड़ते हर साल तो जाती हो यदि एक बार न गयी तो कौन-सी आफत आ जायेगी तो यह सुनकर वो चुपचाप सर झुकाये अंदर चली जाती और बड़ी आज़माइश के बाद वो उसे अनुमति तो देते मगर, केवल दो-चार दिन की उस पर भी कभी-कभी तो उन्हें उतने दिन पुरे होने के पहले ही वापस आना पड़ता कि उन पर अब उनके माता-पिता का नहीं पति का हक हो गया हैं

माँ की इस दुखी हालत और पापा के सख्त रवैये ने ‘मानवी’ को बचपन से ही थोड़ा जिद्दी और विद्रोही बना दिया और उसने ठान लिया कि वो ऐसे व्यक्ति से शादी करेगी जो उसे समय-समय पर खुद ही मायके ले जाये या जब उसकी मर्जी हो वो आ-जा सके वो भी बिन किसी अनुमति के तो जब ऐसा शख्स मिला उसने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर स्वयं उससे रिश्ता जोड़ लिया तो उसकी माँ ने उससे यही कहा, कि बेटी माँ बनकर ही जानोगी कि क्यों तुम्हारी माँ पढ़ी-लिखी होने के बाद भी ऐसी जिंदगी जीती रही माना कि जीवन हमारा उस पर हक़ भी हमारा लेकिन सिर्फ अपने लिये जीना तो हद्द दर्जे की खुदगर्जी हैं और मैं चाहती तो कभी भी तेरे पापा को छोडकर जा सकती थी लेकिन उनके बाद क्या होता ? माना कहीं नौकरी भी मिल जाती लेकिन इस तरह अपने स्वाभिमान की दुहाई देकर यदि सब अपने रिश्ते तोड़ने लगे तो फिर कोई रिश्ता ही न बचेगा इसलिये मैंने उस सरल रास्ते की जगह इस चुनौती को स्वीकार करते हुये यही रहना ठीक समझा जो सही था या गलत इसका निर्णय तुम करना मैंने तो अपना फर्ज़ निभा दिया आज माँ बनकर उसने महसूस किया कि माँ बनना सिर्फ एक प्रक्रिया मात्र नहीं बहुत बड़ा बदलाव हैं जिसके बाद सब कुछ बदल जारा हैं लेकिन फिर भी उसने ये ठान लिया कि जिस तरह वो अपनी माँ से एक कदम आगे बढ़कर उस सोच के बदलने की दिशा में थोड़ी ही सही आगे बढ़ी थी अब अपनी बेटी को भी वही शिक्षा देकर उसे भी एक कदम आगे बढने की शिक्षा देगी और इस तरह यदि हर पीढ़ी एक-एक कदम आगे बढ़ेगी तो निश्चित ही उन पुरानी रवायतो को बदला पायेगी कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था या ऐसी पुरातन विचारधारा सतत प्रयासों से ही अनुकूल बनाई जा सकती हैं उसने अपने हिस्से का काम किया अपने फैसले खुद लिये जिसे उसकी बेटी आगे बढ़ाएगी और इस तरह धीरे-धीरे वो दिन आयेगा जब किसी माँ को अपनी माँ से मिलने जाने के लिये किसी की अनुमति की जरूरत न रहेगी और केवल यही नहीं समाज की अन्य मानसिकताओं में परिवर्तन लाने भी सबको यूँ ही पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसी कदम उठाने होंगे

इस समाज में माँ को भगवान का दर्जा देना उसकी पूजा करना उसे सब तीर्थ-धाम समझना जैसे बातें प्रचलित लेकिन उनका अनुशरण नाममात्र का होता इसलिये अब ऐसे रीति-रिवाज़ बनाये जाए कि किसी भी बेटी को अपनी माँ से मिलने जाने या अपने निर्णय स्वयं करने का अधिकार हो तब जाकर मातृ दिवस को मायने मिलेंगे अन्यथा वो भी किसी विशेष दिन की तरह आकर चला जायेगा और माँ अपनी ही जगह रहेगी... केवल माँ... माँ.. कहने से तस्वीर न बदलेगी उसे हमें ही बोले तो माँ को ही बदलना होगा... ऐसी सोच के साथ सभी माँ और बच्चों को मातृ दिवस की शुभकामनाएं... :) :) :) !!!           

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ मई २०१७

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