शुक्रवार, 26 मई 2017

सुर-२०१७-१४६ : ‘बलात्कारी’ !!!


ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब अख़बार की सुर्ख़ियों या न्यूज़ चैनल की हेड लाइन में दुष्कर्म या यौन शोषण की किसी घटना का उल्लेख न हो और अब तो इन्तेहाँ ये हो गयी कि शिकारी इस कृत्य को अंजाम देते वक़्त न तो ‘स्त्री‘ की जात, न उम्र और न ही उसकी अवस्था देखता भले ही समाज में वो इसी के आधार पर हर कार्य करता हो लेकिन, ऐसे समय वो केवल देह देखकर उस पर हमला करता क्योंकि उसका मकसद केवल अपनी देह की संतुष्टि होती ऐसे में ‘शिकार’ कोई भी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि उसके इस वहशीपन के बाद एक अच्छी-खासी, जीती-जागती, आने वाली जिंदगी के सपने सजाने वाली ‘लड़की’ महज़, पीड़िता बनाकर रह जाती जिसका तन-मन-आत्मा सब कुछ घायल होकर बेजान-सी हो जाती जबकि अमूमन उसके साथ ये घिनोनी हरकत करने वाला एक सामान्य जीवन गुज़ारता फिर भी ये तय हैं कि...       

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वो भले ही ज़िस्म को
लहू-लूहान और टुकड़े टुकड़े कर दे
पर, कभी भी रूह पे काबिज़ हो नहीं सकता ।

पहन ले कितने ही ताबीज़
बाँध ले हाथों में मन्नत के धागे
पर, वो कभी भी ख़ुदा का बंदा हो नहीं सकता ।

बचा ले ख़ुद को भले ही कानून से
हवालात की कालकोठरी और फांसी के फंदे से
पर, भगवान की बेआवाज़ लाठी की मार सह नहीं सकता ।

सोच ले भले कि स्वर्ग-नर्क किस्से हैं
हम तो अपनी जिंदगी अपने ही दम से जीते हैं
पर, दोजख़ की आग़ में जलने से बच नहीं सकता ।

ज़िस्म को समझता हो महज़ खिलौना
किसी की जान लेना बन सकती हैं, उसकी फ़ितरत
पर, अपनी जिंदगी की खैर किसी तरह मना नहीं सकता ।
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ऐसे दरिंदे के लिये दुनिया में हर सज़ा कम हैं, मौत भी उसके गुनाह को धो नहीं सकती कि उसने सिर्फ एक लड़की नहीं अनंत संभावनाओं को पूरा होने से पहले ही मिटा दिया तो ऐसे लोगों को बद्दुआ दो या गालियाँ सब बेअसर हैं...
   
#बाराबंकी_रेप_कांड
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२६ मई २०१७

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