सोमवार, 10 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९० : सावन का पहला सोमवार... पार्थिव पूजन और अभिषेक की हुई शुरुआत...!!!


चातुर्मास का प्रथम मास ‘श्रावण’ और उसका प्रथम सोमवार दोनों का ही धार्मिक व सामाजिक ही नहीं नैतिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्व हैं क्योंकि जो भी विधि-विधान शास्त्रों में वर्णित किये गये वे महज ढोंग-ढ़कोसला या कर्मकांड नहीं बल्कि अब तो उनका वैज्ञानिक रूप से भी महत्व सिद्ध ही चुका हैं जो ये बताता कि हमारे पूर्वज जो कि जमीन ही नहीं प्रकृति से भी नजदीक से जुड़े हुये थे उन्होंने अपने अनुभवों से जो भी सहज ज्ञान प्राप्त किया उसी के आधार पर सुनिश्चित स्वस्थ जीवन शैली के लिये एक ऐसी नियमावली निर्धारित की जिसमें ऋतू परिवर्तन के साथ ही खान-पान में होने वाले बदलाव के अलावा अपनी इंद्रियों को किस तरह से नियंत्रित किया जाये जो कि जलवायु की तरह ही मचलती रहती के लिये बड़े ही आसान उपाय निकाले और उनके साथ कुछ आध्यात्मिक तथ्यों को भी सम्मिलित कर दिया कि सहज मानवीय प्रवृति की वजह से यदि व्यक्ति के जेहन में आलस्य या दुर्बलता की वजह से उनके प्रति उदासीनता का भाव उत्पन्न हो तो भी उसे ईश्वरीय कार्य समझकर ही सही वो उन कृत्यों का अनुशरण करे जिससे कि न केवल उसका अपना बल्कि उसके परिजनों व समाज का भी हित हो तो इस तरह बड़ी दूरदर्शिता के साथ हमारे उन शुभचिंतकों ने हमारे भावी जीवन को सुरक्षित रखने के लिये बड़े-बड़े ग्रंथों की रचना की जिनमें ऐसी भाषा का उपयोग किया गया कि समझना आसान हो इसके अतिरिक्त उन्हें लयात्मक बनाते हुये गेयता का पुट भी शामिल किया कि दोहे या चौपाइयों का वचन करते-करते वो उनको इस तरह से आत्मसात कर ले कि जब जहाँ जिस तरह का विषय हो तब वहां वही बात याद आ जाये तभी तो पुराने लोगों से मिले तो देखते कि वे बड़ी आसानी से उन्हें दोहरा देते

जबकि हम सब अपनी आधुनिक पढ़ाई के गुमान में उनको पुरातन समझ उनसे दूरी बनाते लेकिन अंततः ये मानने पर मजबूर होते कि ऐसा कुछ भी नहीं जो उन धर्मग्रंथों में वर्णित नहीं या ऐसा कुछ भी वैज्ञानिक भी नहीं खोज सके जिसका उल्लेख पहले किसी भी शास्त्र में न किया गया हो ये तो हमारी ही अज्ञानता की जब हम विदेश से प्राप्त किसी खोज के बारे में सुनते तो पाते कि ऐसा कुछ तो हमने अपने यहाँ भी पढ़ा या सुना लेकिन तब तक इतनी देर हो चुकी होती कि फिर अपनी ही चीज़ को पराये लेबल के साथ हमें खरीदना पड़ता पर, आदत ही कुछ ऐसी बन चुकी कि उसके पूर्व कुछ समझ में आता भी नहीं हमें जब तक कि अपनी ही चीज़ विदेशी मोहर लगकर वापस न मिल जाये तभी तो आज ‘योग’ हो या ‘आयुर्वेद’ हमने तब ही अपनाया जब दूसरों ने उसको वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया अन्यथा घर की मुर्गी दाल बराबर मानकर हम उसे अनदेखा कर रहे थे अभी भी सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी ही आंधी चल रही जो हमारी इस चातुर्मास की परिकल्पना और उससे जुड़े विधि-विधानों का मज़ाक उड़ा रही मगर, वो दिन दूर नहीं जब कोई फिरंगी इनका पालन करता नजर आयेगा तब यही कहेंगे कि वाह, हमें तो पता नहीं था कि इन दिनों इस तरह की जीवनशैली को इसलिये फालों किया जाता हैं पर, जिन्हें इस बात का अहसास वे जब इन लोगों की इस तरह की पोस्ट पढ़ते तो उसी तरह से मुस्कुराते जिस तरह से बुजुर्ग लोग बच्चों की नासमझी का आनंद लेते तो इंटरनेट के इस दौर में नादानियों का वही सिलसिला बड़े जोर-शोर से ज़ारी हैं जिसके सैलाब में सभी अज्ञानी उसी तरह से बहे चले जा रहे जैसे लहरों के संग तिनके बहते जाते पर, जिनकी जड़ें गहरी जमी वो किसी आंधी-तूफान से नहीं डिगते भले लोगों को ये प्रतीत हो कि वे उसे हिला पाने में कामयाब हो सके पर ये सिवाय उनकी गलतफहमी के कुछ भी नहीं कि भारत देश व उसकी संस्कृति एक दिन में बनी ईमारत नहीं जिसे कोई भी उखाड़ कर फेंक दे बल्कि ये तो सदियों से निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही सुदृढ़ विरासत हैं जिसे बर्बाद करने के लिये कई कौमों ने प्रयास किये पर, कर नहीं पाये इसलिये अब अपनों ने ही उस डाल पर कुल्हाड़ी के प्रहार आरंभ कर दिये ये भूलकर कि उसके साथ ही उनका अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा

ये धरती जो टिकी हैं वो सिर्फ उनके दम पर जो धर्म के पथ पर चलते न कि विधर्मियों के अनैतिक कर्मों से तभी तो नित उनके जहर उगलते शब्दों के वार से भी ये अपनी जगह पर कायम कि वो चंद लोग जिनकी आस्था अपने मजहब पर दृढ़ वही तो कलयुग में भी पृथ्वी को थामे हुये हैं और जब-जब धर्म की हानि होती वे परमपिता से प्रार्थना करते कि वे अपना यहाँ आने का वचन भूले न तो आज सावन के इस पहले सोमवार से भक्तगण उनके पूजन-अभिषेक में जुट जाते कि कि सृष्टि के संहारक शिव अपने तीसरे नेत्र को खोल इसे मिटा न दे क्योंकि अभी इस दुनिया में संभावनायें शेष और शायद परमेश्वर की उम्मीद भी कि उसने संतति निर्माण का कार्य बंद नहीं किया जो दर्शाता कि वे तो अपना फर्ज़ बखूबी निभा रहे कमी कहीं हमीं से हो रही जिसे हम एकांतवास की साधना-उपासना से जानकर उसके अनुरूप कर्म कर सकते और यही तो ‘सावन’ महीने की महत्ता... तो इसी संदेश के साथ सबको ‘सावन सोमवार’ की शुभकामनायें... :) :) :) !!!             

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१० जुलाई २०१७

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