बुधवार, 19 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९९ : विद्रोह की प्रथम चिंगारी... ‘मंगल पांडे’ क्रांतिकारी...!!!


आज के समय में भारतीय इतिहास के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम क्रांतिकारी ‘मंगल पांडे’ का स्मरण इसलिये भी आवश्यक हो जाता हैं कि फ़िलहाल देश में ‘बीफ़’ की लेकर हंगामा मचा हुआ हैं और जिसे देखो वही उसके पक्ष में तरह-तरह की दलील देकर उसे उचित सिद्ध करने में लगा हुआ हैं ताकि उसके मुंह का जायका बना रहे तो इसके लिये वो किसी भी हद तक जाने को भी तैयार हैं तभी तो कभी सड़क पर गाय काटकर तो कभी ‘बीफ़ फेस्ट’ मनाकर सरकार के ‘गौ-रक्षा’ के फ़ैसले के प्रति अपना विरोध प्रकट कर रहा हैं जबकि आज से लगभग १५० सौ वर्ष पूर्व इसी भारत भूमि के एक सच्चे देशभक्त सिपाही ने महज़ इस आशंका मात्र से कि अंग्रेज सरकार द्वारा उनको दी जा रही कारतूस में गाय की चर्बी मिलाई गयी हैं सरेआम पूरी सरकार के खिलाफ़ विरोध का बिगुल बजा दिया ये जानते हुये भी कि इसके बाद उसको अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है जब उस तक ये खबर आई कि ब्रिटिश सरकार भारतीय सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से इस तरह की नापाक हरकत करने जा रही हैं तो फिर भले अपने शरीर के रक्त की अंतिम बूंद तक बहानी पड़े लेकिन उसने एक पल की भी देर न लगाई और सरकार का मुलाज़िम होते हुये भी इस बात की जरा-सी भी परवाह नहीं की उसका ये कदम उसकी मौत की वजह बन सकता है  

उसी भारत देश में भटके हुये नौजवान जिस गौ-माता का दूध पीकर पलते-बढ़ते हैं उसी को अपना आहार बनाने की खातिर हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं ये देखकर न सिर्फ़ शर्म से सर झुक जाता हैं बल्कि उनकी सोच पर क्रोध भी आता हैं कि ये किस दिशा में हमारी युवा पीढ़ी जा रही हैं जो अपने ही देश की परम्पराओं, रीति-रिवाजों और धर्म का न केवल मज़ाक बना रही हैं बल्कि संपूर्ण विश्व के समक्ष हमें छोटा भी साबित कर रही हैं कि जिस देश में ‘गौ’ को माता का दर्जा दिया जाता हैं, उसकी पूजा की जाती हैं और उसका दूध, दही, घी खाकर नन्हे-नन्हे बालक बलिष्ठ शरीर पाकर युवा बनते हैं वहीं फिर उसे भोजन बनाकर खा जाना चाहते हैं जबकि कभी उसी देश में ‘कृष्ण’ रूप में आकर भगवान् ने भी गौ-माता को सरंक्षण का सन्देश दिया और ‘मंगल पांडे’ ने तो उस कारतूस को भी मुंह से लगाने से इंकार कर दिया जिसमें गाय की चर्बी मिली होने की जानकारी मात्र प्राप्त हुई थी पर, अब तो समय ने ऐसा चक्कर चलाया कि कभी जिस देश को गुलाम बनाने में अंग्रजों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी अब खुद ही उसकी नकल में वहां का नौजवान पागल हुआ जा रहा हैं याने कि पहले जो काम चालाकी, मक्कारीम षड्यंत्र और बहुत मुश्किलों के बाद हो सका अब बड़ी आसानी से अपने आप हो गया कि लोग स्वयं ही अपने आचरण, व्यवहार, खान-पान, रहन-सहन, पहनना-ओढ़ना  आदि में उसकी संस्कृति को अपना रहे हैं और इस तरह पूर्णरुपेण उसके गुलाम बनते जा रहे हैं
              
आज यदि वे सभी शहीद अपने देश की ये हालत देखते होंगे तो सोचते होंगे कि जिसे आज़ाद करने की खातिर हमें अपनी जान गंवा दी और जिस पीढ़ी को हमने अपनी विरासत सौंपी थी इस विश्वास के साथ कि वो उसे आगे लेकर जायेगा एक बार फिर ईस्ट इंडिया कंपनी के झांसे में फंस गया क्योंकि इस बार वो रूप व नाम बदलकर आई और जंजीरों की जगह अपने देश में बने जहरीले उत्पाद अपने संग लाई जिन्हें खरीदने के लिये व्यक्ति देशी मुद्रा में भुगतान कर अपने देश की धनराशी विदेश में भेज देता हैं तो ये देखकर उनके हृदय में क्या गुजरती होगी वही जाने... :( :( :( !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१९ जुलाई २०१७

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