मंगलवार, 11 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९१ : ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ का फ़रमान... आबादी पर अब लगाओ लगाम...!!!


ग्लोबलाइजेशन के इस युग में जैसे-जैसे दुनिया सिमट रही हैं लोग नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे समस्याएँ भी अब सबकी साँझा होती जा रही हैं ऐसे इनका हल भी हम सबको मिलकर निकालना होगा क्योंकि हम सब इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे के विचार-जानकारी ही शेयर नहीं कर रहे बल्कि इस पृथ्वी की समस्त संपदा का भी हम सब मिलकर उपभोग कर रहे इसलिये किसी एक की समस्या अब उसकी अपनी न होकर सबकी हैं चाहे फिर वो क़ुदरत की नेमतों में लगातार आ रही कमी की वजह से उसका सरंक्षण करना हो या फिर वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ता हुआ तापमान या फिर धरती पर रहने व जीवन व्यतीत करने के लिये जगह का भी दिनों-दिन घटता जाना ये सब एक दिन विश्व-युद्ध की बड़ी वजह बन सकती तो बेहतर हैं कि उसके लिये जो भी सार्थक कदम उठाये जाना हैं हम सब बेकार की बातों की जगह उन मुद्दों पर अपना ध्यान ही नहीं बल्कि उचित कार्यवाही करने के लिये पर्याप्त समय भी दे तो काफ़ी हद तक इन पर नियंत्रण कर सकते हैं

विश्व के मानचित्र पर नजर डाले तो जनसंख्या के हिसाब से हम पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं तो उसी अनुपात में हमारा भौगोलिक क्षेत्रफल कम हैं अतः इस समस्या का सबसे बड़ा खामियाज़ा हमको ही भुगतना हैं उस पर हम सबका गैर-जिम्मेदार रवैया भी इसमें इजाफा करता रहता हैं तो जरूरी हैं कि अब हम इसे गंभीरता से ले वरना एक दिन संख्या में भले हम आगे निकल भी जाये लेकिन तरक्की या विकास की बात करें तो उतने ही पीछे रहेंगे क्योंकि कोई भी इस पृथ्वी का क्षेत्रफल नहीं बढ़ा सकता लेकिन उसे सही तरीके से इस्तेमाल कर के उतने में ही दूसरों के लिये भी जगह बना सकता हैं । जिस तरह हम एक छोटे-से घर में कई पारिवारिक सदस्यों के साथ भी हंसी-खुशी रह लेते उसी प्रकार इस गोल-मटोल धरा पर भी सबके साथ हिल-मिलकर रह सकते लेकिन जिस तरह से हर पारिवारिक सदस्य खुद के लिये अपना पृथक घर बना रहा तो देर नहीं जब सबको अपना व्यक्तिगत आवास मिले तो फिर गृह-कलह की स्थिति उत्पन्न होगी ही उस पर प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल खजानों को जिस तरह भरपूर उपयोग कर रहे उसके लिये भी संकट खड़ा हो जायेगा तो फिर सोचो जब आदमी आज ही आदमी का दुश्मन बना हुआ हैं तब उस समय वो क्या रुख अख्तियार करेगा जबकि खाने-पीने, रहने को कुछ बाकी ही न रह जायेगा सोचो... सोचो...???

११ जुलाई १९८७ से इस दिवस को मनाने की शुरुआत इस उद्देश्य के साथ की गयी कि व्यक्ति इसके प्रति सचेत होकर दूसरों को भी जागरूक करे लेकिन वो तो गाफ़िल होकर मस्ती में जी रहा उस पर अत्याधुनिक तकनीकों ने उसको अधिक आलसी बना दिया कि अब तो सारे युद्ध, सारी क्रांति, सारे आंदोलन, सारे अभियान आभासी दुनिया की तरह आभासी हो चले जिनमें वास्तविकता ढूंढनी पड़ती लेकिन लोग ये न भूले कि वो सिर्फ़ मोबाइल या लैपटॉप के साथ जीवन नहीं गुज़ार सकते उसके लिये हक़ीकत का सामना करना पड़ेगा भले चाहे देर से ही करे लेकिन बचना मुश्किल क्योंकि वो सच्चाई ख़ुद चलकर हमारे सामने आ जायेगी तो क्या हम उसका इंतजार करे या फिर उसे रोकने का प्रयास करे... ये हमें तय करना हैं... ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ पर यही हम सबको समझना हैं... और कुछ नहीं... :) :) :) !!!
           
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ जुलाई २०१७

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