शनिवार, 29 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०९ : काव्यकथा : मैं ‘चाँद’ तुम ‘बादल’... होते अगर...!!!


हल्की-हल्की बूंदाबांदी हो रही थी जिसने ‘शायना’ के अंतर में ‘आरुष’ की सोई हुई याद को एक बार फिर से जगा दिया उफ़, ये बारिश भी न ठूंठ को भी हरिया देती और ये तो फिर भी प्रिय की मुरझाई छवि हैं जिसे खिलने के लिये महज़ अनुराग के छिड़काव की जरूरत कि दोनों के बीच अलग-अलग शहरों में रहने की वजह से एकाएक जो दूरी आ गयी थी उसने कहीं न कहीं दिलों में भी फ़ासला पैदा कर दिया था कि अपने-अपने जॉब में उनकी व्यस्तता इतनी अधिक थी जिससे वे एक-दुसरे के लिये वक़्त केवल वीकेंड में ही निकाल पाते थे तो उनको आपस में जोड़ने वाले स्नेह का रसायन वो असर नहीं कर पा रहा जो करीब होकर उन्होंने महसूस किया था ऐसे में जब उसने ‘चाँद’ और ‘बादल’ को अठखेलियाँ करते देखा तो मन के किसी कोने एक ख्याल तैरने लगा...
              
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काश,

चाँद और बादल
सदा साथ रहते जिस तरह
संग हो मेरा-तुम्हारा भी
कभी तुम लो आगोश में इस तरह
कि अस्तित्व मेरा घुल जाये
अंतर में तुम्हारे कुछ यूँ
कि भेद न रह जाये हमारे बीच
तो कभी पूर्णाकार हो जाऊं ऐसे कि
कुछ भी न नजर आये मेरे सिवा
और देखकर मेरी पूर्णता
मुस्कुरा दो तुम कुछ इस तरह
अपनी प्रेयसी के नूरानी चेहरे के पीछे
छिपे राज को जानकर गदगद होता
प्रियतम का अंतस जिस तरह
कभी हम दोनों खेले आँख मिचौली
तुम मुझे और मैं तुमको
तारों के झुरमुट में ढूंढते रहे रात भर
और थककर तुम्हारे साये तले
सो जाऊं भूलकर सारी थकन ऐसे
पालक की गोद में सर रख
बेफिक्र सोता कोई बालक जैसे
जब हो तेज बारिश तो
गरज कर डांटना तुम काले बादल को
जब चमके तेज बिजली और
मैं डर कर लगूं तुम्हारे सीने से तो
प्यार से लगा गले देना सांत्वना
यूँ दिन-रात पल-पल हम
बांटे एक दूसरे की ख़ुशी हो या ग़म ।।
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उसने तुरंत ‘आरुष’ के पास जाने के लिये ऑनलाइन बुकिंग की और ये निश्चय किया कि अब वो वहीँ जॉब सर्च कर लेगी लेकिन, यूँ दूर रहकर समय और जीवन के इन अनमोल पलों को यूँ केवल आजीविका की खातिर होम नहीं करेंगे माना, रोटी, कपड़ा, मकान जीवन की सबसे बड़ी जरूरत लेकिन इनको कमाने के चक्कर में जो खो रहे वो अधिक कीमती तो क्यों न जो ज्यादा मूल्यवान उसे बचाया जाये बस, इस सोच ने उसके इरादों को पुख्ता किया और उसने विडियो कॉल करके उसे अपना फ़ैसला सुनाया कि तस्वीर से दिल मानता नहीं, बातों से काम चलता नहीं... जब मिलन की तमन्ना अंगडाई ले तो आगोश के अहसास को कल्पना से बहलाना आसान नहीं इसलिये अब नो इमेजिनेशन, ओनली मीटिंग इज़ सोल्यूशन... और इस बात ने ‘आरुष’ के चेहरे पर ख़ुशी की जो रंगत बिखेरी उसका रिफ्लेक्शन उसने अपने मुख पर भी महसूस किया और आँख बंद कर उस ट्रेन का इंतजार करने लगी जो उसके शहर की पटरियों को ले जाकर ‘आरुष’ के शहर की पटरियों से जोड़ देगी... J !!!       

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ जुलाई २०१७


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