गुरुवार, 27 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०७ : युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने जिनके विचार... वे थे मिसाईल मेन ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’...!!!


 
“हम सभी के पास एक समान प्रतिभा नहीं होती, लेकिन हम सभी के पास अपनी प्रतिभा को विकसित करने समान अवसर होते हैं”

ऐसे प्रेरक विचारों के धनी देश के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक से लेकर ग्याहरवें राष्ट्रपति के पद तक पहुंचने वाले ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम’ की कहानी किसी रोचक उपन्यास से कम नहीं जिसका नायक तमाम तकलीफों और संघर्षों के बाद भी हालात के आगे झुकता नहीं बल्कि कुछ इस तरह से अपनी बौद्धिक व मानसिक क्षमताओं का उपयोग करता हैं कि एक दिन अपनी विलक्षण योग्यता से ‘अग्नि’ जैसी मिसाईल का निर्माण कर देता वो भी तब जबकि ऐसा सोचना भी संभव नहीं लेकिन इस देश की मिटटी में समय-समय पर ऐसे रत्न रूपी मानव हुये जिन्होंने अपने अभूतपूर्व कर्मों से अपने साधारण व्यक्तित्व को असाधारण में तब्दील कर दिया जिनके जीवन-चरित्र को पढ़कर युवाओं को उनसे प्रेरणा प्राप्त हुई ऐसा की कारनामा कर दिखाया ‘रामेश्वरम’ में एक निर्धन नाविक के घर जन्म लेने वाले बालक ‘कलाम’ ने भी जिन्होंने बेहद विपरीत परिस्थितियों का सामना किया लेकिन किसी भी परिस्थिति में अपने मनोबल को टूटने नहीं दिया और न ही अपने स्वप्नों को बिखरने दिया जो उन्होंने पांचवी क्लास में देखा और ये तय किया कि वे एक दिन उड़ान में हु ओबा कैरियर बनायेंगे तो अपने इस लक्ष्य को पाने के लिये वे लगातार अध्ययन में जुटे रहे जिसमें उनके शिक्षक उनके मार्गदर्शक साबित हुये अपने जीवन के इन विषम हालातों, व्यवहारिक ज्ञान एवं संघर्षों ने ही उनको ये सिखाया कि...

“बारिश की दौरान सारे पक्षी आश्रय की तलाश करते है लेकिन बाज़ बादलों के ऊपर उडकर बारिश को ही अवॉयड कर देते है, समस्याए कॉमन है, लेकिन आपका एटीट्यूड इनमे डिफरेंस पैदा करता है”

कभी बज को भरी बरसात में उपर आसमान में उड़ते देख उनके मन में ये ख्याल आया होगा जिसे उन्होंने यूँ शब्दों में ढालकर हमको बताया कि हमारी सोच व नजरिया ही हमें मुश्किलों को अलग तरह से देखने व उनसे निबटने का हौंसला देता हैं कभी जिन हालातों में कोई दम तोड़ देता हैं वहीं कभी उन्हीं कठिन हालातों में कोई जीवन को यूँ साध लेता हैं कि फिर कोई भी परिस्थिति उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती तो ऐसा ही उनके साथ हुआ उनके जीवन में जितनी कठिनाइयाँ आई वे उतने ही मजबूत होते गये और उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने की मन में दृढ प्रतिज्ञा भी कर ली तब उनके जेहन में ये विचार कुलबुला रहा था...

“शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत चाहिए होती है, चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या कोई दूसरा लक्ष्य”

ये ताकत बाहुबल की नहीं बल्कि मानसिक दृढ़ता की होती जो उनके पास असीमित थी तभी तो वे ऐसा असंभव लगने वाले कार्यों को भी आसानी से अंजाम दे सके जिनके बारे में सोचना भी दुष्कर लगता क्योंकि उनके भीतर आत्मबल की वो ताकत थी जो उन्हें संबल देती थी कि एक दिन वो अपने देश के लिये कुछ कर दिखायेंगे पर, इस तरह कि देश के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त होगा उन्होंने भी नहीं सोचा होगा लेकिन पूर्ण ईमानदारी, लगन व मेहनत से अपने हर काम को अंजाम देना हैं ये तय कर लिया था तो फिर सब कुछ अपने आप आसान होता गया जिसके पीछे कहीं न कहीं ये विचार ही उनका प्रेरणास्त्रोत बना होगा...

“इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं जब हम कठिनाइयों का सामना करते हैं तो हम अपने भीतर छिपे साहस के असीमित भण्डार को खोज पाते हैं जब हम असफल होते हैं, तभी हमें यह अहसास हो पाता हैं कि संसाधन हमारे पास हमेशा होते हैं, हमें केवल उन्हें खोजने और आगे बढ़ने की आवश्यकता होती हैं”   

हर कठिनाई को पार कर के वे उस ऊँचाई पर पहुंचे जहाँ उनका कद आदमकद बन गया और देश का बच्चा-बच्चा उनका मुरीद बन गया और आज हर किसी की जुबान पर उनका नाम सुनाई देता हैं उनके विचारों से लोगों की सुबह होती जिनमें बसी सकारात्मकता उनको भी आगे बढ़ने, कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती हैं वो भी उन हालातों में जबकि देश में ‘धर्म’ के नाम पर भी राजनीति चल रही ऐसे में उनका ये वाक्य हम सबके लिये बहुत बड़ा मार्गदर्शक साबित हो सकता हैं कि वे धर्म के विषय में इस तरह की सोच रखते थे...  

“किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया”

हम सब ये जानते फिर भी करते नहीं ऐसा बल्कि भीड़ में शामिल होकर हमारे अंदर की इंसानियत न जाने किस कोने में दुबक जाती कि हम बेहद मामूली-सी बातों पर भी किसी की जान लेने को अमादा हो जाते यदि वो किसी धर्म विशेष से जुडी हो जबकि किसी की जान लेने से बड़ी अमानवीयता दूसरी नहीं फिर भी हम ऐसा करते तो अब हम सबको उनके प्रति अपनी आदरांजली प्रकट करने के लिये ये संकल्प लेना होगा कि जिन्होंने हर धर्म से परे खुद को जिस तरह केवल एक ‘इंसान’ के रूप में स्थापित किया हमें भी करना होगा और अपने देश को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए उनके इस अनमोल वचन को अपनाना होगा...   

“गर, किसी देश को भ्रष्टाचारमुक्त और सुन्दर-मन वाले लोगों का देश बनाना है तो, मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि समाज के तीन प्रमुख सदस्य ये कर सकते हैं- पिता, माता और गुरु”

मतलब ऐसा पिता, माता या गुरु बनना होगा जो किसी भी रूप में न तो स्वयं भ्रष्टाचार करे न ही इस तरह की शिक्षा दे कि जिससे हम भी वैसे बने तो इस तरह मूल रूप से उस विकराल समस्या का निदान हो सकेगा जो फ़िलहाल असंभव प्रतीत हो रही... इसी शब्दांजलि के साथ कलाम साहब को सलाम... :) :) :) !!!  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२७ जुलाई २०१७

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