शनिवार, 22 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०२ : देश को मिली आज पहचान... ‘तिरंगा’ बना हमारी आन-बान-शान...!!!


२२ जुलाई १९४७ देश की आज़ादी के कुछ दिनों पूर्व संपूर्ण राष्ट्र को एक पहचान देने के लिये तीन रंगों से बने ‘तिरंगे’ को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दी गयी और उसके बाद से इस दिन को ‘राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा जो आज के दिन हमें ये याद दिलाता कि हमारा प्यारा तिरंगा आज इतने बरस का हो गया अर्थात यह हमारे परचम का जन्मदिवस हैं जिसे हमें उसी तरह से मनाना चाहिये जैसे कि हम किसी व्यक्ति का मनाते

भले ही कहने को ये जीवंत न हो लेकिन हम सबको जीवन देता कि इसके साये तले हम खुद को बेहद सुरक्षित महसूस करते जिसकी वजह ये हैं कि इसकी आन-बान-शान को बरकरार रखने के लिये देश की सेना मुस्तैदी से सरहद पर तैनात रहती कि दुश्मन हम पर बुरी नजर भी न डाल सके और उसके भीतर जोश भरने का काम तीन रंग केसरिया, श्वेत एवं हरित करते जो तिरंगे में इस तरह से एकाकार हो जाते कि उसको देखने मात्र से देह की रग-रग में लहू का जोश उबाल मारने लगता और देश के वीर रक्षक अपनी जान पर खेलकर भी शत्रु से लड़ते ताकि ध्वज की मर्यादा कायम रहे तो वे उसी तिरंगे को कफ़न की तरह ओढ़ने पड़े तब भी पीछे नहीं हटते

जो ये दर्शाता कि उनके मन में सिर्फ अपनी जन्मभूमि, अपने वतन ही नहीं, अपने तिरंगे झंडे के प्रति अगाध श्रद्धा होती जिसके वशीभूत वो अपने रक्त की अंतिम बूंद को भी बहा देते और हम लोग राष्ट्रीय पर्व ‘गणतंत्र दिवस’ एवं ‘स्वतंत्रता दिवस’ पर उसके प्रतीक को लहराते लेकिन उसकी उस तरह से हिफ़ाज़त नहीं करते जिस तरह से हमारे सिपाही करते इसकी वजह सोचे तो लगता कि हमारे मन में उसके लिये प्रेम तो होता लेकिन उतनी प्रबल निष्ठा नहीं होती कि उसकी दुर्दशा पर उस तरह से अपनी जान निछावर कर दे या फिर हम ये सोचते कि ये केवल फौज की जिम्मेदारी कारण कोई भी हो लेकिन ये तो साफ़ कि हम उसे खरीदते तो बहुत गर्वमिश्रित ख़ुशी से पर, उन मनोभावों में कहीं-न-कहीं कोई कमी होती तभी तो उसकी उस तरह से रक्षा नहीं कर पाते

ऐसे में क्या ये सही नहीं कि हम केवल एक या कम से कम जितनी जरूरत हो उतने ही ले तथा उपयोग के बाद उन्हें फिर से अगले वर्ष के लिये संभालकर रख दे जिससे कि वो सड़को पर या डस्टबिन में पड़े न दिखाई दे तो इस तरह से उसके प्रति अपने सम्मान को प्रकट कर सकते हैं और यदि इतना भी कर पाये तो ये भी एक तरह से हमारी ‘देशभक्ति’ ही कहलायेगी कि हम अपने राष्ट्र ही नहीं बल्कि उसके राष्ट्रीय प्रतीकों को भी वही मान देते जो अपने आप को देते याने कि अपनी जान समझते तो बस, समझिये अपना नैतिक फर्ज़ पूर्ण कर दिया तो इसी संकल्प के साथ सबको ‘राष्ट्रीय झंडा अंगीकरण दिवस’ की बहुत-बहुत शुभकामनायें... :) :) :) !!!     
         
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२२ जुलाई २०१७

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