बुधवार, 12 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९२ : फेमिनिज्म की आधुनिक मिसाल : ‘मलाला युसुफजई’


हमारे आज के जमाने की अत्याधुनिक पढ़ी-लिखी महिलायें जो कि सोशल मीडिया से अधिक मुखर होकर अपनी बात रखी रही अक्सर सीता, सावित्री, अनुसुईया, दमयंती, द्रोपदी, वृंदा आदि पतिव्रता सती नारियों का मज़ाक बनाती कि पुरुष उनको इनका उदाहरण देकर इनके जैसा बनाना चाहते और सदा-सद के लिये परिवार की बेड़ियों में जकड़कर रखना चाहते इसलिये वे अपने लिये अपने नियम खुद बना रही जिसमें उनको पहली स्वतंत्रता कपड़ों से चाहिये कि वे जो चाहे पहने या न पहने किसी को हक नहीं कि उनकी इस आज़ादी पर रोक लगाये उसके बाद उनको कुछ भी बोलने यहाँ तक कि गाली देने तक कि स्वतंत्रता चाहिये और इसके अतिरिक्त अब तो खाने-पीने भी उनको किसी तरह की रोक-टोक पसंद नहीं वो चाहे फिर सिगरेट-शराब हो या ड्रग्स लेना वे पुरुषों से होड़ करने की चक्कर में और खुद को फेमिना कहलाने की खातिर हर स्तर पर उतरने को तैयार क्योंकि उन्हें लगता कि नारीवादको लिबास में कैद कर के रखा गया जिसे उतारकर वो इसे पा लेगी पर, ये भूल जाती कि अब तो वे आदमियों के लिये अधिक सहज-सुलभ हो गयी कि पहले तो उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पडती थी लेकिन अब तो वे खुद ही चलकर उनके पास आ रही जो यही साबित करता कि वे नये-नये पंख पाकर अपनी सीमायें भूल रही और सोच रही कि यही स्त्रीवादहैं ।

जबकि एक १५ साल की बच्ची ने जो वाकई में कैदखाने जैसे माहौल में थी तकनीक का ही सहारा लेकर वो कारनामा कर दिखाया कि पूरी दुनिया ने उसको स्त्रीवादका चेहरा माना शांति के नोबल पुरस्कार से भी नवाजा कि उसने माथे पर गोली खाकर भी अपनी पहचान को खोने नहीं दिया, अपने सर से पल्लू को गिरने नहीं दिया फिर भी खुद को उन परम्पराओं, उन रवायतों से मुक्त किया जो उसे उसका मौलिक अधिकार तक उसे नहीं दे रही थी जबकि आज जिसे देखो वो खुद को फेमिनाघोषित कर रही फिर भी कहीं नकहीं महसूस हो रही कि ये आभासी दुनिया की तरह छद्म नारीवाद जिसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं लेकिन मलालाने जो किया उसे कोई नकार नहीं सकता कि उसने केवल अपना ही नहीं दूसरी लड़कियों का जीवन भी सुधारा और आगे भी उसकी जंग जारी रहेगी अपनी मौलिक पहचान के साथ न कि विदेशियों की सोहबत में रहकर, उनके रंग में रंगकर जो दर्शाता कि सर पर आंचल, पूरे कपड़े पहनने से कोई आदिम युग का नमूना नहीं बन जाता बल्कि ये तो आपके मुल्क, आपके मजहब और आपकी सभ्यता के प्रतीक जिनसे आपकी गहरी जड़ों और अपनी संस्कृति के प्रति गर्व का पता चलता लेकिन आज वही न जाने कैसे इन अति-शिक्षित लड़कियों के लिये शर्म की बात हो गयी उनको तो मलालासे जरुर प्रेरणा लेना चाहिये कि अपने हक की लड़ाई के लिये नग्न होने की जरूरत नहीं और न ही लिख-लिखकर सबको बताने की केवल उसके लिये सही दिशा में प्रयास करने मात्र से आप उसे पा लोगे अन्यथा पोस्ट के जरिये मांगते रहो अपनी आज़ादी... कभी सोशल मीडिया के मंच से ही कोई नतीजा निकला तो शायद, आपको भी खुश होने का मौका मिल जाये नहीं तो मलालाकी तरह अपनी मान, मर्यादा को बरकरार रखते हुये आगे बढकर खुद छीन लो उसे तय आपको ही करना आखिर, लड़ाई आपकी हैं ।

आज मलालाके बीसवें जन्मदिन पर उस पर लिखी कुछ पंक्तियाँ...

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मैं भी...
तितली की तरह
मुक्त हर जगह उड़ना
खुलकर सांस लेना चाहती थी
वो पढ़ाई-लिखाई और
तमाम चीजें जो हर किसी को
बड़ी सहज ही उपलब्ध थी
उन सबको पा जाना चाहती थी
इतनी-सी मामूली इच्छा
मन में रखना भी तो
हमारे यहाँ मुमकिन न था
फिर भी मैंने ठान लिया था तो
खुद भी जाती और साथ अपने
दूसरी लड़कियों को भी
स्कूल ले जाती
पर, जिनको नापसंद था
लड़कियों का बाहर निकलना
दुनिया से रूबरू होना
उनको तो ये बिल्कुल भी
बर्दाश्त न हुआ
जिसका प्रतिकार भी
मुझे झेलना पड़ा
सर के ठीक बीचों-बीच
गोली मारी थी
उन दरिंदों ने मगर,
मेरी ख्वाहिश मौत से
बहुत बड़ी निकली
तो मैं लीक से हटकर
चलती ही रही
शांति का 'नोबल पुरस्कार' पा
विश्व में मुझे पहचान मिली
मेरी हिम्मत से सदियों की
जंजीरें भी टूटी
मैं 'मलाला यूसुफजई'
अपने मुल्क की बच्चियों की
बेख़ौफ़ आवाज़ बनी ।।
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इसी के साथ उसे अग्रिम जीवन की अनंत शुभकामनायें कि वो आगे भी इसी तरह अपने व अपने जैसी लडकियों की शिक्षा के लिये पनी जंग जारी रखे क्योंकि शिक्षा ही एकमात्र हथियार जिससे सब कुछ पाया जा सकता बशर्तें उसका इस्तेमाल सकारात्मक ही वरना, जरा-सी नकारात्मकता आतंकवादीबना देती... गोया कि पढाई ही काफी नहीं उसे सीखकर, उससे ज्ञान प्राप्त करके फिर उससे जागरूकता की अलख जागना भी आना चाहिये... :) :) :) !!!             

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ जुलाई २०१७

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