लूट
रही
अस्मत
नारी की
चुप
हैं सब ।
मिट
रही
प्रकृति
की नेमतें
चुप
हैं सब ।
छीन
रही
आज़ादी
जीने की
चुप
हैं सब ।
लील
रही
धरती
को तस्करी
चुप
हैं सब ।
फ़ैल
रही
बेईमानी
की चादर
चुप
हैं सब ।
मर
रही
इंसानियत
संवेदना
चुप
हैं सब ।
बढ़
रही
हैवानियत
क्रूरता
चुप
हैं सब ।
दब
रही
अवाम
की अंतरात्मा
चुप
हैं सब ।
घुट
रही
सच्चाई
की आवाज़
चुप
हैं सब ।
चुभ
रही
बढती
हुई ख़ामोशी
क्यों
चुप हैं सब ???
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०५ जुलाई २०१७
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