बुधवार, 5 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१८५ : ख़ामोशी गुनाह हैं... जब मचा कोहराम हैं... !!!


लूट रही
अस्मत नारी की
चुप हैं सब ।

मिट रही
प्रकृति की नेमतें
चुप हैं सब ।

छीन रही
आज़ादी जीने की
चुप हैं सब ।

लील रही
धरती को तस्करी
चुप हैं सब ।

फ़ैल रही
बेईमानी की चादर
चुप हैं सब ।

मर रही
इंसानियत संवेदना
चुप हैं सब ।

बढ़ रही
हैवानियत क्रूरता
चुप हैं सब ।

दब रही
अवाम की अंतरात्मा
चुप हैं सब ।

घुट रही
सच्चाई की आवाज़
चुप हैं सब ।

चुभ रही
बढती हुई ख़ामोशी
क्यों चुप हैं सब ???

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०५ जुलाई २०१७

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