शुक्रवार, 28 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०८ : जिससे हमारी साँसें चलती... कुछ और नहीं वो तो हैं ‘प्रकृति’...!!!


मेरे सांस लेने से
जी उठती प्रकृति और
उसके सांस छोड़ने से
मुझे जीवन मिलता

प्रकृति और हम एक-दूसरे के पूरक हैं फिर भी जहाँ प्रकृति हमारे बिन जी सकती वहीं हम उसके बिना एक सांस भी नहीं ले सकते क्योंकि हम केवल सांस लेने ही नहीं बल्कि भोजन, पानी, कपड़े, आवास, फर्नीचर, अनाज, फल, वनस्पति आदि समस्त जरूरतों के लिये उस पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं उसके बाद भी हमारा प्रकृति के प्रति रवैया कुछ ऐसा हैं जैसे हमें उसकी नहीं उसे हमारी आवश्यकता हैं हम दोनों का जीवन केवल सह-अस्तित्व में ही संभव जहाँ हम मिलकर एक-दूजे की हिफ़ाज़त ही नहीं सरंक्षण भी करे कि सिर्फ़ हमें ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी वो सब कुछ मिल सके जिसके वो हक़दार क्योंकि जिस तरह से हम उसके अनवरत दोहन में लगे उससे तो यही प्रतीत हो रहा कि आने वाले समय में कुदरत की अनमोल नेमतें दुर्लभ हो जायेगी या केवल तस्वीरों में ही शेष रह जायेंगी यदि हमने अब भी सचेत होकर उनको सुरक्षित करने के विशेष प्रयास नहीं किये वैसे भी अनेक प्रजतियां तो विलुप्त हो ही चुकी लेकिन जो बची-खुची उनके लिये हमें सावधान होकर ऐसे कदम उठाने चाहिये कि जीव, जंतु, पशु-पक्षी, नदी-तालाब, झरने सभी कुछ हम बचा सके अन्यथा एक दिन पछताने पर भी इन्हें दुबारा प्राप्त न कर सकेंगे  

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निहारते थे हम
जल में अपना अक्स
आईना नहीं था
आज भी...
प्रकृति का तो वही दर्पण
जिसमें झलकता
उसका नैसर्गिक प्रतिबिंब
पशु-पक्षी भी तो देखते
झाँककर उसमें अपनी छवि
करते किलोल मिलकर
पर, धीरे-धीरे स्वार्थी मानव ने
कर दिया कुदरत का हनन
न रहे नदी, तालाब, झरने और
न ही बचे जंगली जानवर
कितना गैर-जिम्मेदार कि अब भी
एक पल करता नहीं मनन
कि सह-अस्तित्व में ही रहेगा कायम
उसका अपना भी जीवन
जो नष्ट होती प्राकृतिक संपदा संग
खतरे के निशाने की तरफ
हर पल बढ़ता जा रहा
वो दिन दूर नहीं जब इंसान स्वयं ही
सृष्टि के विनाश की वजह बनेगा
दुनिया की नाव को खुद ही ले डूबेगा
तब न फिर कोई 'नोहा'
ब्रम्हांड की प्रत्येक प्रजाति का सरंक्षण कर
पुनर्निर्माण में सहयोगी बन सकेगा ।।
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हर धर्म में जल-प्रलय ही नहीं उसके बाद पुनः जीवन प्रारंभ होने की कहानी का विस्तृत वर्णन हैं जिसमें अद्भुत समानता हैं कि समस्त पृथ्वी को जलमग्न कर के समाप्त करने के पूर्व ईश्वर ने एक व्यक्ति को चुना और ये आदेश दिया कि वो सभी तरह के प्राणियों व वनस्पति की एक जोड़ी  सुरक्षित रख ले ताकि फिर से नई दुनिया बसाई जा सके लेकिन हमने तो अनगिनत प्रजातियाँ को लगभग खत्म कर दिया ऐसे में ये प्रश्न उठता कि किस तरह से समस्त तरह के जीवों को पुनर्जीवित किया जा सकेगा ? क्या ये पृथ्वी का अंतिम काल हैं जिसके बाद नये सिरे से ही रचना होगी या अभी भी हमारे हाथ में कुछ संभावनायें बाकी हैं जिसके दम पर हम कुछ आशा कर सकते हैं  

जिस तरह से प्रकृति की तरफ से संकेत मिल रहे वो तो यही जता रहे कि हमारे अत्याचारों से तंग आकर अब उसने प्रतिरोध लेना शुरू कर दिया हैं इसलिये आये दिन उसके द्वारा होने वाली आपदाओं के बारे में हम सुन रहे हैं और उसके अलावा जिस तरह से संपूर्ण वायुमंडल में परिवर्तन का प्रभाव दिखाई दे रहा हैं वो भी अपने आप में बहुत कुछ कह रहा हैं कि अब भी वक़्त हैं संभल जाओ अन्यथा एक दिन पछताने के लिये भी कुछ न बचेगा क्योंकि अब तो मौसम भी पहले से न रहे बल्कि अब तो पूर्वानुमान भी गलत साबित हो रहे कि हम ज्ञान-विज्ञान के जिस घमंड में ये समझ रहे थे कि हमने सब कुछ जान लिया, सब कुछ हमारे नियंत्रण में उसकी पोल खुल चुकी कि जब भी कोई प्राकृतिक घटना होती तो हम अवाक रह जाते तब अपनी गलती का अहसास भी होता लेकिन कहीं न कहीं फिर वही कुम्भकर्णी नींद सो जाते और इस तरह ये क्रम चलता ही रहता तो जो भी हम भुगत रहे या आगे देखेंगे सब हमारे अपने ही कर्मों का फल होगा...

˜˜˜.....    
बदलते तो
पहले भी थे
'मौसम'
पर...
.....
अब जिस तरह से
हो गया चलन
कि एक ही दिन में
आ जाते सब एक साथ
ऐसा न ढाया था कभी प्रकृति ने
'सितम'
.....
गर,
समझो हकीकत तो
ये सब  हैं
इंसान के ही अपने
'करम' !!
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आज ‘विश्व प्रकृति सरंक्षण दिवस’ से ही यदि हम सब उसे बचाने के प्रयास में जुट जाये तो भी वो कयामत जो निकट भविष्य में आने वाली होगी उसे लंबे वक़्त के लिये टाल सकते हैं और इसी उद्देश्य के लिये इसे मनाने का निर्णय लिया गया तो इसके पीछे की वजह को समझते हुये हम कुम्भकर्णी निंद्रा से जागे और प्रकृति को नहीं बल्कि खुद को बचाये क्योंकि हम रहे न रहे वो तो रहेगी लेकिन उसके बिना हमारा वजूद न बचेगा तो अपने जीवन के लिये, अपने स्वार्थ के लिये ही सही हम उसके सरंक्षण में लग जाये और साथ ही दूसरों को भी इसके लिये जागरूक करे... इस ‘दिवस’ को एक दिन की बजाय रोज मनाये... :) :) :) !!!     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२९ जुलाई २०१७

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