शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१८७ : शोक सागर में डूबा गये 'अशोक जी' !!!


'छंदमुक्त पाठशाला' संभवतः व्हाट्स एप्प का प्रथम साहित्यिक समूह जिसकी स्थापना हुई ७ अगस्त २०१४ को जिसके आधार स्तंभ में शामिल एक नाम... 'अशोक अरोरा' जिससे मेरा प्रथम परिचय इसी रूप में हुआ और जब 'व्हाट्स एप्प' के इतिहास की पहली किताब 'भावों की हाला' 'उत्कर्ष प्रकाशन' से आई तब उसका 'विमोचन समारोह' १४ सितंबर २०१५ मौन तीर्थ आश्रम, उज्जैन में हुआ तो उनसे रूबरू प्रथम साक्षात्कार हुआ और तब जाना कि तस्वीरों में नजर आने वाली मुस्कान महज़ दिखावा नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग और उनके सहज-सरल स्वभाव की पहचान भी हैं...

उन्होंने वास्तविक ही नहीं आभासी दुनिया में भी सबको बड़ी सहजता से अपने शख्सियत का मुरीद बना लिया और उनकी खुशमिजाजी व अपनेपन से प्रभावित होकर वे किसी के दोस्त, किसी के यार, किसी के दादा, किसी के पापा तो किसी के बड़े भाई बन गये और यही वजह कि जब दो दिन पूर्व अचानक ही उनकी तबियत बिगड़ने की खबर आई तो 'फेसबुक' 'व्हाट्स एप्प' दोनों जगह ही उनकी जान की सलामती की दुआओं का सिलसिला शुरू हो गया जो स्वयमेव ही उनकी लोकप्रियता को दर्शाता हैं कि उन्होंने किस तरह से सभी लोगों से रिश्ते बना लिए थे कि वे उनके लिये पोस्ट लिखकर सबको न केवल इत्तला दे रहे थे बल्कि सबसे ये गुज़ारिश भी कर रहे थे कि वे उनके लिये ईश्वर से प्रार्थना करें...

फिर भी होनी की आगे किसी की न चली और आज वे हम सबको रोता-बिलखता छोडकर उस दुनिया में चले गये जहाँ से उनसे मित्रता ही नहीं कोई भी रिश्ता शेष नहीं रह जाता लेकिन आत्मीयता का एक अनजाना नाता जुड़ जाता कि हम सभी को एक न एक दिन अपने इस स्थूल देह के बंधन को तोड़कर सूक्ष्म रूप में उस अदृश्य जगत में वापस जाना ही हैं तब टूटे हुये रिश्तों का जोड़ फिर से मिल जायेगा लेकिन तब तक सिर्फ यादें ही हैं जो हमें उस शख्स से जोड़े रखती तो बस, उन्हीं यादों की जुगाली आज सभी करते नजर आ रहे जिसने ये भी सिद्ध कर दिया कि भले हम सोशल मीडिया को 'वर्चुअल वर्ल्ड' कहते लेकिन यहाँ जो संबंध बनते वो कसी भी तरह छद्म नहीं होते बल्कि उनमें अहसास रियल ही होता तभी तो लोग आज उनके स्मृति में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहे हैं...

हम भी 'अशोक अरोरा जी' के इस तरह अचानक से हम सबको छोडकर जाने को अब तक एक भयावह स्वप्न ही समझ उस विश्वास नहीं कर रहे थे लेकिन जब सबकी बातों से ये मानने को मजबूर होना ही पड़ा कि अब वो हमारे बीच नहीं रहे तो भरे मन से ये लिख रहे हैं... प्रभु उनके परिजनों, मित्रों और सभी आत्मीयजनों को इस असहनीय दर्द को सहन करने की शक्ति और उनकी आत्मा को शांति दे... ॐ शांति ॐ ... :( :( :( !!!

_______________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ जुलाई २०१७

कोई टिप्पणी नहीं: