मंगलवार, 25 जुलाई 2017

सुर-२०१७-२०५ : अनामंत्रित मेहमान...!!!


किया न था निमंत्रित
फिर भी आ गये ज़िंदगी में
कई ग़म, कई तकलीफें
और बहुत सी मुश्किलें भी
एक ही साथ...

पर, सोचो बुलाता इन्हें कौन ?

ये तो चले आते यूँ ही
बिन बुलाये मेहमां की तरह
न चाहते हुये भी करना पड़ता
बेदिली से स्वागत उनका
निभाने सामाजिक रवायत...

गर, न भी खोले
हम इनके लिये द्वार
तब भी ये तो धमक आते
अनचाहे आतंकियों की तरह
और कर देते हमला
परेशानियों की बुलेट से
चैनों-सुकून पर हमारे बेतरह

पर, क्या सचमुच...
आगमन होता इनका बेवजह ?

किया मनन तो
आया समझ कि... 'नहीं'

भले न डाले हम पीले चावल
मगर, कहीं न कहीं
दोषी होते हम ही इसके लिये
कि ख़ुशी की आड़ में छिपे
उस अदृश्य शत्रु को देख नहीं पाते
जो सिक्के की दूसरे पहलू की तरह
जुड़े होते आपस में इस कदर कि
नामुमकिन होता बुलाये हम
सिर्फ़, किसी एक को...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२५ जुलाई २०१७

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