शनिवार, 15 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९५ : और..., मैं डूब जाती हूँ...!!!


जिंदगी की
आपाधापी और
एकरसता से जब कभी
बेहद उब जाती हूँ
अपने आपको
तब ले जाकर तन्हाई के
घुप्प अंधेरों में छूप जाती हूँ ।
.....
फेंक कर
दिल के सागर में
यादों के कंकर अनवरत
देखती रहती हूँ उसको
उठती हैं लहरें
बनते हैं अतीत के चित्र
और... मैं डूब जाती हूँ ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१५ जुलाई २०१७

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