रविवार, 16 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१९६ : काव्यकथा : शापमुक्त !!!


वो दरवाजे
जब भी खुलते तो
साथ अपने
किसी के दिल में भी
अरमानों के पट खोल देते थे

उन्हें खोलने वाले
वो हाथ उसको हमेशा
अपने कंधों पर महसूस होते
जिनकी आश्वस्ति उसे
दिन भर जीने का हौंसला दे जाती

फिर अगले दिन
उनके खुलने का इंतज़ार
शुरू हो जाता था
कि वो दिन में बस,
दो बार ही खुलते बंद होते थे
पर, उतने समय में ही किसी की
दिन भर की तपस्या को
उसका इच्छित वरदान दे देते थे

लेकिन,
एक दिन वो ऐसे बंद हुये कि
कई साल गुज़रे वो
अहिल्या की तरह शिला बन गयी
मगर, वो दर फिर न खुले
किसी ने जब उनको तोड़ा तो
वो चरमरा के गिरे और
साथ अपने उसकी साँसों की डोर भी
तोड़ उसे शापमुक्त कर गये ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१६ जुलाई २०१७

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