सोमवार, 3 जुलाई 2017

सुर-२०१७-१८३ : “फ़ासला एक आवाज़ का...!!!”


‘विभा’ अपनी छोटी बहन ‘नीमा’ से किसी बात पर नाराज़ थी लेकिन बीतते समय के साथ उसे संवादहीनता के कारण उत्पन्न होने वाली खीझ का अहसास भी हो चला था जिसकी वजह से कोई कमी भी महसूस हो रही थी जिसका सबसे बड़ा कारण ये था कि कॉलेज से आते ही उसे दिन-भर में हुई हर बात का जिक्र सबसे पहले अपनी प्यारी बहना कम सहेली से ही करने की आदत थी साथ ही अपने गुस्से से भी परेशान थी जिसके कारण अक्सर ही ऐसी स्थिति उत्पन्न होती जब वो किसी भी बात पर ‘नीमा’ से नाराज़ हो जाती पर, उससे दूर भी नहीं रह पाती तब अमूमन वो किसी ऐसे अवसर की ताक में रहती जबकि बीच में आया ये खालीपन उनकी चुलबुली बातों और खिलखिलाती मुस्कुराहटों से भर सके मगर, मुश्किल यही थी कि उसके लिये जिस ‘आवाज़’ की दरकार थी वही उसके हलक में आकर अटक जाती थी ऐसा क्यों ? वो समझ नहीं पाती जबकि रोज तो कहीं से घर वापस आती तो बाहर से ही उसे पुकारने लगती और छोटी-से-छोटी क्यों न हो हर एक बात उसे जब तक बता न लेती पानी तक न पीती पर, न जाने क्यों जब भी उनके बीच अबोला होता तो फिर उसके नाम तक को जुबान पर ला पाना उसके लिये सबसे दुष्कर कार्य होता जिसका कारण शायद, यही था कि रिश्ते में कहीं न कहीं कोई अहम् था जो दोनों को उसी तरह से जोड़ पाने में आड़े आ जाता और ये ‘अहम्’ किस तरह का था ये भी तो समझ नहीं आता लेकिन कुछ तो था कि हमेशा ही ऐसा होता कि बड़ी-से-बड़ी दूरियां तय कर लेने वाले भी इस एक आवाज़ की दूरी को तय कर पाने में असहजता महसूस करते चाहे फिर रिश्ता कितना भी करीबी या आत्मीय क्यों न हो पर, किसी भी वजह से उत्पन्न नाराजगी की कड़वाहट को बातों की मिठास से खत्म कर पाना एकाएक असंभव लगने लगता और कभी-कभी तो अनावश्यक तनाव से दूरी इतनी बढ़ जाती कि रिश्तों की डोर ही टूट जाती

ऐसा ही कुछ ‘रौनक’ को भी लगता जब भी उसकी अपनी पत्नी ‘खुशाली’ से बातचीत अचानक ही किसी भी अप्रिय स्थिति के कारण बंद हो जाती तो उसको दुबारा शुरू होने में लंबा वक़्त लग जाता जबकि केवल एक ‘आवाज़’ से उसे बड़ी आसानी से समाप्त किय जा सकता पर, बात हर बार वही अटक जाती कि दोनों में से पहले कौन बोले ? दोनों यही सोचते आखिर मैं ही क्यों हमेशा बात करूं ? कभी वो भी तो कर सकता हैं या जब गलती मेरी नहीं तो मैं क्यों जाकर उसे सॉरी बोलूं ? या फिर उसकी तो यही आदत चाहे गलती खुद करे लेकिन माफ़ी अगला ही मांगे तो कब तक ऐसा ही चलता रहेगा ? और बस, इसी एकतरफा सोच और मन ही मन में खुद से ही सवाल-जवाब कर निर्णय लेने में दूसरे पक्ष को ईमानदारी से नहीं परखा जाता । सबसे बड़ी बात कि जब केवल एक आवाज़ मात्र से ही हर फासले को मिटाया जा सकता फिर क्यों नहीं उसे मुखरित होने को माहौल दिया जाता क्या झूठा अहं इतना बड़ा कि उसके लिये सच्चे रिश्तों को तोड़ दिया जाये या पुकारना इतना कठिन कि अपने प्रिय को जो बहुत दूर भी नहीं एक आवाज़ देकर पास बुला ले या कहीं दूर जा रहा हो तो पुकार कर रोक ले भले बाद में पछताना ही क्यों न पड़े लेकिन अक्सर ही दिलों के संबंधों को दिमाग से निभाया जाता जिससे कि वो नाता जो कि ताउम्र साथ चल सकता बीच सफ़र में ही साथ छोड़ देता । बाद में अफ़सोस के साथ इंसान एकाकी ही रह जाता लेकिन उसके बावजूद भी उसे सब कुछ समझ आकर भी कुछ समझ नहीं आता या कोई भी ये नहीं बता सकता कि जो भी हुआ वो हुआ क्यों ? फिर जिनकी फ़ितरत ही तुनकमिजाजी की वो अपने हर रिश्तों में इस तरह की दरार आने देते जिसे भरना उन्हें नहीं आता तो अंतत उनको जोड़ने वाली दीवार ही बीच से दरक ही जाती तब बेसहारा होकर वे जब तक अकेले खुद को संभाल सकते उतने ही समय तक ख़ुशगवार रहते फिर जीवन में एक चिडचिडाहट प्रवेश कर जाती जो आगामी दिनों को भी अपने रवैये से नीरस बना देती पर, वो एक ‘आवाज़’ जो वीरान जिंदगी में बहार ला सकती उसे गले में ही घोंटकर मार देते और अंत में पछताते हुये दुनिया से चले जाते पर, अपनी गलती स्वीकारने नहीं करते और न ही ये कुबूल करते कि यदि उन्होंने उस समय एक आवाज़ दे देती होती तो शायद, ऐसा न होता जैसा कि झेलना पड़ा ।       

‘शीना’ की एक छोटी-सी गलती की वजह से ‘आदिल’ उससे रूठ गया पर, अपने घमंडी स्वभाव की वजह से उसने न तो उसे मनाया और न ही ऐसी कोई कोशिश ही की जिससे कि ये लगे कि वो अपनी गलती पर शर्मिंदा हैं बल्कि वो तो जिस तरह से रहती थी उसी तरह से रहती तब ‘आदिल’ ने उसे छोड़ने का मन बना लिया वैसे भी वो इस तरह के असमंजस वाले माहौल में रहने का आदि नहीं था जो कभी-कभी निर्मित हो तो वो गुज़ारा कर भी लेकिन आये दिन ऐसे हालात बन जाते तब उसे ही आगे बढ़कर उसे दोस्ती का हाथ बढ़ाना पड़ता लेकिन ‘शीना’ की तरफ से कभी भी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जाता तो लगातार इन हरकतों की पुनरावृति होने पर उसे उसके साथ रहने में बड़ा अजीब-सा फ़ील हो रहा था क्योंकि एक कमरे ही नहीं बल्कि एक बिस्तर पर भी बिना एक-दूसरे से बात किये किस तरह से रहा जाता हैं ये उसे समझ नहीं आ रहा था पर, ‘शीना’ की तो बचपन से जिस तरह से परवरिश हुई थी उसमें झुकना उसे सिखाया ही नहीं गया चाहे फिर रिश्ता हो या कोई भी चुनौती अपनी जिद पर डटे रहना ही उसने सीखा था इसलिये उनका वो पवित्र रिश्ता जो सात जन्मों का बंधन कहलाता उसी जनम में टूट गया जिसे एक आवाज़ से बचाया जा सकता था लेकिन ‘शीना’ नम आँखों से केवल उसे जाते देखती रहती पर, चाहकर भी उसके गले से वो आवाज नहीं निकली जो उसके बढ़े कदमों से लिपटकर उसे रोक ले तो वो फासला जो कभी एक आवाज़ में ही तय हो सकता था अब वो किसी भी तरह से खत्म किया जान असम्भव हो गया कि ‘आदिल’ ने उससे तलाक लेकर किसी और से शादी कर ली और वो अपने अकडू रवैये की वजह से फिर आजीवन अकेली ही रही

ये सब महज़ काल्पनिक किस्से नहीं आम जीवन में हमारे आस-पास दिखने वाले सामान्य दृश्य हैं जो घर-परिवार को तोड़ रहे जबकि सिर्फ़ एक आवाज़ से उन्हें बचाया जा सकता तो उस ‘आवाज़’ को दबाये नहीं खुलकर बाहर आने दे... ताकि रिश्ते की अहमियत बरकरार रहे... अहम् नहीं... :) :) :) !!!
     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ जुलाई २०१७

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