न मिली उसे
न देखा उसे
न कभी बात ही की
फिर भी जो वो
महसूसती
उसकी वजह न समझ
पाती
खुद पर गुस्सा
होती
झल्लाती और
चिल्लाती
हहारकर फिर खुद
को ही समझाती
पर, जब देखती उसकी सूरत
सब कुछ भूल
जाती
वो जो उसका हुआ
नहीं
न हो सकता कभी
बस, इक रिश्ता ही तो आया था
साथ एक तस्वीर भी
पर, झंकृत कर गयी थी वो सूरत
मन का अनछुआ
सितार
तो अनजाने ही
जुड़ गया था
अंजाने से इक
अनजाना अहसास
डोर जब बंधी
नहीं तो
और वो तो हो भी
चुका किसी दूसरे का
फिर, जुड़ाव बना
क्यों अब तक ?
दिल भूलता नहीं
क्यों उसे ??
क्या रिश्ता
हैं उसके मेरे-बीच में ???
हर सवाल बनकर
प्रतिध्वनि
आ जाता टकराकर
वापस मन की
सूनी कंदरा में
जवाब की
प्रतीक्षा में
बन चुकी थी वो 'अहिल्या'
बिना किसी
गुनाह के
और, 'राम' उनको
तो खबर ही नहीं ।।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१० जून २०१८
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