कोमल थी कमजोर
नहीं
सबला की
परिभाषा नई गढ़ी
अदम्य शौर्य और
पराक्रम से अपने
नारी की
पारंपरिक छवि तोड़ी
माँ होकर भी
खतरों से बिल्कुल न डरी
रण में एकदम
कूद पड़ी
मृत्यु बनकर
शत्रुओं की टूट पड़ी
अंतिम सांस तक
लडती रही
भारी सेना
देखकर भी न पीछे हटी
तलवार, बरछी, कटार
सहेलियाँ थी उसकी
इशारे पर उसके
नाचती रही
दे दिये प्राण
मगर, न किसी के आगे झुकी
त्याग कर प्राण
अपने रानी की झाँसी लक्ष्मी बाई
सदा-सदा के
इतिहास में अमर हुई
वीरता-साहस से
अपनी नारियों की प्रेरणा बनी
आज 'बलिदान दिवस' पर उनके
नम आँखों से से
फिर उनकी कहानी पढ़ी ॥
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
१८ जून २०१८
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