बुधवार, 20 जून 2018

सुर-२०१८-१७० : #शरणार्थी_बनकर_जीना #घूंट_घूंट_पलायन_होने_का_जहर_पीना



ये भी एक सत्य हैं कि ‘शरणार्थी’ बनकर हम सब इस दुनिया में आये लेकिन, जहाँ हमने जन्म लिया, जहाँ पले-बढ़े, पढ़े-लिखे, बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हुये उसे अपना समझने लगते, उससे प्यार करने लगते और उससे दूर होने के ख़्वाब से भी डरने लगते क्योंकि, वो धरती, वो घर, वो जगह, शहर, पास-पड़ोस सब अपने हो जाते उनसे एक नाता जुड़ जाता और वो पता हमारी पहचान बन जाता ऐसे में यदि किसी भी कारणवश उससे दूर जाना पड़ता या उसे छोड़ने को मजबूर होना पड़ता या फिर उससे बिछड़ना पड़ता तो ऐसी स्थिति को सहन करना या उससे सामंजस्य बिठाना हमारे लिये बेहद कठिन होता

ऐसे में ये ख्याल आना स्वाभाविक कि हमने तो कभी स्वप्न या कल्पना में भी ऐसा विचार नहीं किया कि हमें अपने घर या वतन से विलग होना पड़ेगा तो इस आपातकालीन स्थिति को स्वीकार करना तन-मन दोनों के लिये ही कष्टदायी होता उस पर ये तो और भी चिंताजनक कि हमे कहाँ जाये, क्या करें, कौन हमें अपनायेगा और सबसे बड़ी दुखदायी बात कि ‘शरणार्थी’ के ठप्पे के साथ जीना मतलब घूंट-घूंट अपमान का ज़हर पीना जो मृत्यु सम पीड़ादायक होगा फिर भी कभी-कभी कुछ लोगों को ऐसे ही अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता हैं जिसे समझना या महसूस कर पाना हमारे वश की बात नहीं कि हमने इसे जिया नहीं

उन्हीं को समर्पित हैं आज का दिन जिसे कि ‘विश्व शरणार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का उद्देश्य केवल इतना कि हम उनकी वेदना को समझ पाये, उनके दर्द को बाँट पाये जो इस तकलीफ़ से रात-दिन गुजर रहे हैं परंतु, हमें अहसास भी नहीं कि हम तो अपनी दिनचर्या में व्यस्त लेकिन एक दिन तो हम उनकी इस पीड़ा को महसूस कर सकते उनके दुखों को साँझा कर सकते और उनको अपनेपण का अहसास देकर उनके भीतर ये विश्वास जगा सकते कि वे भले पराये हैं लेकिन, अब जबकि उन्होंने इस जगह को अपना ही लिया तो फिर हमने भी उन्हें अपना मान लिया हैं और संविधान ने भी उनके लिये व्यवस्था बनाई हैं तो उनको इस परिस्थिति को न चाहते हुये भी स्वीकार कर उसके अनुरुप अपने आपको ढाल लेना चाहिये

आखिर, जीवन तो अंतिम सांस तक चलना हैं तो फिर उसे समय से पहले क्या गंवाना या उदास होकर बिताना बेहतर कि उससे समझौता कर उसमें ही मुस्कुराना सीख ले फिर मजबूरी या दूरी हमें उतना त्रास न दे सकेगी तो इस दिवस के महत्व को समझते हुये ही इसके प्रति दूसरों को जागरूक करें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० जून २०१८

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