गुरुवार, 28 जून 2018

सुर-२०१८-१७८ : #अनपढ़_होकर_भी_लिख_गये_ग्रंथ #बिना_सन्यास_के_कबीर_कहलाये_संत




‘कबीर’ सिर्फ एक नाम नहीं जीवन दर्शन हैं जिसकी प्रासंगिकता सदियों तक बनी रहेगी क्योंकि, धरती पर जीवन सतत चलता रहता भले ही उसमें बाहरी रूप से परिवर्तन आ जाता लेकिन, आंतरिक भावनाएं यथावत रहती ऐसे में कदम-कदम पर ही नहीं हर एक बात में कबीर की याद आती उनकी कोई पंक्ति अपने आप ही जुबान पर चली आती कि उन्होंने तो एक आम आदमी की तरह सारा जीवन भांति-भांति के लोगों के बीच व्यतीत किया ऐसे में उनके पास अनुभवों का वृहद खजाना एकत्रित हो गया जिसे उन्होंने बड़ी सरलता से गेयता में व्यक्त कर दिया जिससे कि उसे दोहराना या उसका स्मरण करना आसान रहे तो ये उनकी आदत बन गयी कि वे अपने आस-पास जो भी देखते उसे शब्दों में बाँध देते जिससे सुनने वाला अपने भीतर उतार लेता और लोगों ने तो उनके इन पदों को इस तरह से आत्मसात किया कि बिना किसी संकलन या किताब में दर्ज हुये बिना भी केवल मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा और आज भी गाँव में आपको ऐसे अनेक लोग मिल जायेंगे जिन्हें अक्षर ज्ञान नहीं अनपढ़ हैं पर, उन्हें कबीर की सखियाँ शब्दशः याद हैं जिसकी वजह इनकी सहजता-सरलता और आम बोलचाल की भाषा में कहा जाना हैं

‘कबीर’ व्यक्तिगत तौर पर जुलाहे का काम करते थे और उनकी इस खूबी की वजह से उन्होंने अपने इस काम में ही अनगिनत जीवन रहस्यों को सुलझा लिया और सतत कर्मरत रहते हुये उन गूढ़ सूत्रों को खड़ी बोली में ही व्यक्त करना शुरू कर दिया जिसने न जाने कितने इंसानों का जीवन बदल दिया और उन्होंने अपनी इस खूबी से हर एक कुरीति और कुव्यवस्था पर शाब्दिक प्रहार किया जिसने उस दौर की सामन्तवादी सामाजिक व्यवस्था को बदलने पर मजबूर कर दिया एक साधारण इंसान ने अपनी हृदयस्पर्शी शैली से आमजन के मर्म को छुआ उसके दुःख, उसकी तकलीफ, उसकी पीड़ा को शब्द व अपनी आवाज़ दी जिसके लिये उन्होंने कोई विशेष प्रयास नहीं किये बल्कि, अपनी दृष्टि को इतना सूक्ष्म बना लिया कि किसी एक्सरे मशीन की तरह वो सामने वाले के अंतर को बेध उसमें छिपी व्यथा को समझ सके तो उनके इस अलहदा दृष्टिकोण ने ही उनको जुलाहा होते हुये भी अन्य मानवों से अलग-थलग खड़ा कर एक ऐसा विशिष्ट स्थान दे दिया जहाँ तक पहुंचना सबके वश की बात नहीं उस पर कर्मयोगी की तरह कपड़ा बुनते-बुनते संत के समान ऐसी उच्चतम अवस्था पा लेना विलक्षणता का प्रतीक हैं जो आत्मबोध के बिना संभव नहीं हैं
     
वे निरक्षर थे पर, लोगों के चेहरे पढ़ने में उनको महारत हासिल थी यही नहीं उनको लेखन नहीं आता था पर, उनके कहे शब्दों से बन गयी मोटी-मोटी पोथीयां और न ही कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ा या सन्यास ही ग्रहण किया पर जीवन का गूढ़ ज्ञान उन्हें संत का दर्जा दिला गया आज ‘कबीर जयंती’ पर महान दार्शनिक और समाज सुधारक को शत-शत नमन... ☺ ☺ ☺ !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२८ जून २०१८

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