बुधवार, 27 जून 2018

सुर-२०१८-१७७ : #बारिश_तो_बस_बहाना_हैं #दुखों_का_नहीं_कहीं_ठिकाना_हैं




टिप... टिप...
आसमां से टपक रही बूंदें
भींग रही धरती
भींग रही सारी कायनात
तन भी सराबोर हो गया मगर,
मन सूखा ही रहा
कोई भी बूंद न तर कर सकी
न भीतर उतर सकी
छतरी में छिपाकर गीली ऑंखें
अंतर को गीला कर लिया
यूँ हमने बारिश में खुद को पिया
बिन पिया...
यूँ जल रहा एकाकी जिया
जैसे मंदिर में टिमटिमाता कोई दिया
अपनी ही आग में जलता
बरसाती हवा से और ज्यादा भड़कता
जब तक जां लड़ता और फिर
भभककर बुझ जाता  
सावन-भादो का नहीं ये तो हैं
इक अंतहीन सिलसिला
जन्मों-जन्मों तक न मिटा
इक इंतजार अनंत
सदियों से भटकती अतृप्त आत्मा का
जिसका परमात्मा खो चुका

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२७ जून २०१८

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