गुरुवार, 7 जून 2018

सुर-२०१८-१५७ : #प्रीत_का_रंग



यूं सोचो तो
प्रीत का कोई रंग नहीं
मगर, करो महसूस तो फिर
प्रीत के रंग अनेक
लेती ये जनम
गुलाबी अहसास के संग
पर, धीरे-धीरे सुर्ख़ चुनरी ओढ़
बन जाती सजीली दुल्हन
मटमैली धरती सी होकर उर्वर
खिला देती कलियाँ रंगीन
बिखेरती हरियाली हर तरफ
दुलारती ओढ़ा ममता का नीला आसमां
बचाती उनको गम की
काली अंधियारी रातों से बनकर
इंद्रधनुषी प्रखर उजियारा
धीरे-धीरे होकर सफेद
समय के साथ पक
पीली रंगत में ढ़ल जाती
तो पहन भगवा चोला
हो जग से विरत बीते दिनों की
माला फेरने लगती
और होकर अदृश्य ओ बेरंग
खुली हुई फ़िज़ाओं में ही घुल जाती
फिर से जन्मने के लिये ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०७ जून २०१८

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