शनिवार, 30 जून 2018

सुर-२०१८-१८० : #लघुकथा_कैंडल_मार्च




अरे, गीतिका’ तुम तो तैयार ही नहीं मजे से सो रही हो  

तैयार... किस बात के लिये ? उसने आश्चर्य से पूछा

ओफ्फो, क्या तुम्हें पता नहीं कि हमें कैंडल मार्च पर चलना हैं व्हाट्स एप्प पर मैसेज भी किया था देखा नहीं क्या ?

अच्छा तू उसके बारे में कह रही लेकिन, अभी तक उपर से तो कोई निर्देश आये नहीं और न ही कोई फंड ही आया फिर कैसे करेंगे ?

तेरे कहने का मतलब कि. तू इंतजार करेगी और जब तुझे कोई कहे तभी तू निकलेगी मगर, ये कहने वाला कौन हैं पहले ये तो पता चले?

तू तो ऐसे बन रही जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं कि हम कैंडल मार्च कब करते ?

इसमें पता होने वाली कौन-सी बात एकदम सिंपल हैं कि जब हमें ऐसा कोई भी मसला मिले जिसमें किसी पीड़ित के लिये न्याय मांगना हो तब करते

फिर तो तू बड़ी भोली हैं या मुझे बना रही हैं... यदि ऐसा होता तो हम सडकों पर ही रहते यार, ऐसा नहीं हैं तू राजनीति के क्षेत्र में नई-नई आई हैं न धीरे-धीरे सब सीख जायेगी

उसकी बात सुनकर ‘शेफाली’ सोचने लगी वाकई वो भोली हैं जो अब तक यही समझती थी कि, खुद को फेमिनिस्ट कहने वाली ये आधुनिक व स्वतंत्र ख्याल महिलायें जनता के हित में ऐसे कदम उठाती इसलिये तो उसने एक नारी संगठन को ज्वाइन कर लिया था लेकिन, ये सेलेक्टिव होते हैं ये आज पता चला शायद, इसलिये ही इन समस्याओं का कोई हल नहीं निकलता ये जानकर उसने तुरंत उसे छोड़कर स्वतंत्र रूप से आवाज़ उठाने का निश्चय किया जैसा कि वो पहले करती थी भले देर लगेगी लेकिन, सफलता मिलेगी जरुर और अकेले ही कैंडल लेकर वो गाने लगी ‘हम होंगे कामयाब... एक दिन...’         

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० जून २०१८


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