शुक्रवार, 22 जून 2018

सुर-२०१८-१७२ : #परिंदों_बिन_नीड़_उदास



कर गये पलायन
बहुत दूर सात समंदर पार
परदेश जाकर बस गये
छोड़ गये पीछे
अपना घर और परिवार
वो नन्हे चूजे
जिन्हें ऊँगली पकड़
चलना सिखाया था कभी
निकल आये पर तो
उन्ही हाथों को छुड़ाकर
उड़ गये इतना ऊंचे
कि अब हाथ बढ़ाने पर भी
हाथ नहीं आते वो
प्रवासी पंछियों की तरह
यदा-कदा चले आते
काटने प्रतिकूल हालात
फिर लौट जाते जड़ों से दूर
कि सीख गये हैं जीना
होकर विलग उस पेड़ से
जन्मे थे जिससे कभी
नन्हीं शाखा जैसे
शायद, जहाज के पंछी सम
लौट आये फिर कभी
हो जब अहसास उनको कि
परिंदों बिन नीड़ उदास
या बुलाये वो नाल
जिसे गाड़ा था जन्मते ही
कि नहीं आसां किसी के भी लिये
जो कर सके मिट्टी की पुकार अनसुनी ।।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२२ जून २०१८

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