शुक्रवार, 29 जून 2018

सुर-२०१८-१७९ : #तिलिस्म_की_रहस्मयी_दुनिया_जिसने_गढ़ी #वो_हैं_अद्भुत_प्रतिभाशाली_बाबू_देवकीनंदन_खत्री



‘चंद्रकांता’ और ‘भूतनाथ’ हिंदी साहित्य के दो ऐसे प्रभावशाली किरदार और ऐसे दो उल्लेखनीय उपन्यास जिनके बिना साहित्य जगत सूना हैं क्योंकि, इसने तो वो कीर्तिमान गढ़े  और वो मिसाल कायम की जिसे उसके बाद फिर कोई दोहरा न सका यहाँ तक कि इनके सृजन के बाद से तो उपन्यास की दुनिया में रहस्यमयी व तिलस्मी जैसी एक नवीनतम श्रेणी का आरंभ हुआ वो भी उस दौर में जबकि, ऐसा सोच पाना भी नामुमकिन था एक लेखक ने कल्पना के उस अद्भुत संसार को शब्दों के माध्यम से पन्नों पर उतार दिया जिसे हम स्वपन में देखा करते या जिसके बारे में किस्से या कहानियों में सुना करते थे लेखन भी ऐसा कि उसने पाठकों को इस तरह दीवाना बना दिया कि रचनाकार अगला अंक लिख भी नहीं पाता और प्रेस के बाहर पढ़ने वालों की लाइन लग जाया करती थी

इसने हिंदी भाषा का इतना विशाल पाठक वर्ग तैयार किया कि एक इतिहास ही रच दिया और उनके इस योगदान के लिये हिंदी साहित्य सदैव उनका ऋणी रहेगा जिन्होंने शब्दों से ऐसा मायाजाल बुना कि जैसे-जैसे उनका पठन किया जाता दृश्य आँखों के सामने साकार हो जाता और वो पात्र हमारे सामने जीवंत होकर चलते-फिरते दिखाई देता किसी रहस्यमयी कहानी का ऐसा सजीव शब्द चित्रण आसान नहीं होता लेकिन जिस पर माँ सरस्वती की कृपा हो उसके लिये कुछ भी नामुमकिन नहीं होता ऐसे थे अपरिमित प्रतिभा के धनी लेखक ‘देवकीनंदन खत्री’ जिनका रचनाकर्म इस कदर प्रभावी था कि उसने महज एक कालखंड या एक पीढ़ी नहीं बल्कि, आने वाली सदियों और पीढ़ियों को अपना मुरीद बना लिया तभी तो हर जनरेशन के पास अपनी अलग ‘चंद्रकांता’ हैं आगे भी जब-जब पीढ़ी का परिवर्तन होगा तो उनके अनुसार इसका कोई अलग वर्शन तैयार किया जायेगा जो केवल किताब को नहीं बल्कि, कलमकार को भी हर युग में उसकी रचना के साथ जीवित रखेगा

उन्होंने तिलिस्म का ऐसा मायावी जगत खड़ा किया कि उससे बाहर निकल पाना किसी भी किताब प्रेमी के लिये संभव नहीं वो तो जब भी इस पुस्तक को उठाता इसके भूलभुलैया जैसे कल्पनालोक में खो जाता जहाँ कब कौन-सा पात्र किस रूप में उसके सामने आकर खड़ा होगा पढ़े होने के बाद भी उसे आभास तक नहीं होता इसलिये हर बार उसे नयेपन का अहसास होता यही वजह कि ‘देवकी बाबू’ और उनकी कृति ‘चंद्रकांता’ आज तलक भी बिक्री का रिकॉर्ड कायम रखे हुये हैं उनके द्वारा उसके सातों भागों में दिलचस्पी का ऐसा माहौल बनाया गया हैं कि जितने हम पृष्ठ पलटते जाते उतनी ही रोचकता बढ़ती जाती और कभी-कभी तो रोमांच चरम पर पहुँच जाता सांस गले में अटक जाती कि जाने आगे क्या हो और ऐसे ही जाने कितने ही सस्पेंस उसमें समाये हुये जिसने पाठकों की उसके प्रति रूचि को आज तक भी बनाये रखा हैं यहाँ तक कि अनेक लेखकों ने तो उनका अनुकरण करने का प्रयास किया पर, कोई भी उनके कद और उनके सोच के उस उच्च स्तर को न पा सका

उनका तो जन्म ही शायद, इस असंभव कार्य को अंजाम देने के लिये हुआ था तो उन्होंने अपनी इस अविस्मरणीय नॉवेल के जरिये वो कारनामा कर दिखाया और फंतासी की एक अलहदा कैटेगरी की शुरुआत की जिसमें नये-नये शब्दों का प्रयोग भी जमकर किया और जासूसी जिसे ‘अय्यारी’ का नाम दिया जैसे एक विलक्षण व रोमांचकारी कृत्य से हम सबको परिचित करवाया जिसने साहित्य के क्षेत्र में तूफान मचा दिया यहीं नहीं ‘सिनेमा’ जैसी विधा जिसे हमने बहुत बाद में जाना उसके बारे में उन्होंने पहले ही अपनी किताब में वर्णन कर दिया और ये साबित कर दिया कि जो कुछ भी सोचा जाता उसको हक़ीकत में भी बदला जा सकता हैं अपनी कहानियों व उपन्यासों के जरिये उन्होंने इसी तरह की न जाने कितनी खोजों और कितने अविष्कारों के लिये ठोस आधारिशिला तैयार की जो लेखक की दूरदर्शिता के साथ-साथ उसके अन्वेषक दृष्टिकोण को भी दर्शाता हैं            

रहस्य और रोमांच के ऐसे बहुमुखी प्रतिभाशाली साहित्यकार का आज उनके जन्मदिवस पर पुण्य स्मरण और ये शब्दांजलि... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ जून २०१८

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