शनिवार, 16 जून 2018

सुर-२०१८-१६६ : #चाँद_तो_एक #मगर_अहसास_अनेक



अहसास – ०१ : तीस दिन के रोजे के बॉस रोजेदारों की नजर आसमान पर टिकी थी कि दूज का चाँद नजर आये तो वो ख़ुशी से झूमकर रमदान का जश्न मनाये मीठ-मीठी सिवई बनाये अपने सभी रिश्तेदारों व दोस्तों को बुलाये फिर सब मिल-बाँटकर ख़ुशी-ख़ुशी खाये नाचे-गाये आखिर, इतने दिनों तक नियम से रोजे रखे तो उसका समापन भी तो जोरदार होना चाहिए इसलिए सब ईद का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे जिसके लिये चाँद की मंजूरी जरूरी थी जब तक उसकी मुहर न लगे तब तक त्यौहार का आगाज़ तो हो ही नहीं सकता न तो बस, फ़लक को बड़ी आशा भरी नजरों से सब निहार रहे थे

अहसास – ०२ :सादिया’ को भी इंतजार था ‘चाँद’ का पर आसमान वाले नहीं उसका जो सरहद पार बैठा हैं देश की रक्षा के लिये ताकि, वो और उसके जैसे सब लोग चैन की नींद सो सके तो अपने उस देशभक्त शोहर और उसकी देशभक्ति पर नाज़ करती ‘सादिया’ बहुत खुश थी कि ईद का चाँद केवल रोजे वालों के लिये ही खुशियों की सौगात बनकर नहीं आयेगा बल्कि, उसके लिये तो सबसे बड़ी खुशखबरी लायेगा क्योंकि, ये दिन ही ऐसा कि ‘जोहेब’ को ऐसे भले छुट्टियाँ न मिले पर इस पर्व पर तो जरुर मिलती हैं और ये ईद तो वैसे भी ख़ास कि इस दिन उनकी शादी की पहली सालगिरह जो पड़ने वाली हैं

अहसास-०३ : उधर सरहद पर बैठा ‘ज़ोहेब’ तो दिन-रात की भी खबर न रखता बस, एक ही फ़िक्र कि उसके वतन पर कोई गद्दार नजर न डाले और यदि डाले भी तो उसकी गोलियों से बचकर न जा सके तो बड़ी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी अदा करता और जब भी थोड़ा-बहुत समय मिलता अपनी ‘सादिया’ को याद कर मन ही मन तरगों के माध्यम से अपना संदेश भेज देता तो कभी मोबाइल पर भी देख और सुन लेता पर, रूबरू मिलने का मौका तो बस ईद पर ही मिलता तो उसके लिये भी ये ‘चांद’ बेहद ख़ास था हो भी क्यों न वो दो बिछड़ों के मिलन का साक्षी जो बनने वाला था

अहसास – ०४ : छोटे-छोटे बच्चों को चाँद से ज्यादा ईद का इंतजार था लेकिन, बिना चाँद के दीदार के उसका आना मुमकिन नहीं तो वो सब भी हाथ उठाकर यही दुआ मना रहे थे कि चाँद जल्दी-से-जल्दी निकल आये और ईद मनाये जाने की मुनादी हो तो उनको भी खाने-पीने और नये-नये कपड़ों के अलावा ईदी का भी नजराना मिल जाये तो उनकी भी निकल पड़ेफिर हो उन्होंने सोचा हुआ हैं वो खरीद कर वे भी दोस्तों को दिखाये उनके साथ खेलें याने कि ईद पर सबको ही कुछ न कुछ मिलना था तो जिसे देखो वही बस, ‘चाँद’ इंतजार में पलक पांवड़े बिछाये बैठा था आखिर, वो कौन हैं जिसको ‘बोनस’ से प्यार नहीं होता वैसे भी कुछ एक्स्ट्रा मिले तो अच्छा ही लगता हैं न तो यही सबके अपने-अपने इंतजार की वजह थी

अहसास – ०५ : इससे इतर भी कुछ लोग थे जो देश-दुनिया या मानवीयता से परे होकर खुद को आतंकी कहलाना पसंद करते और कहीं भी चैनों-अमन या ख़ुशी का वातावरण हो तो उन्हें रास नहीं आता कि शैतान की औलाद का तो एक ही काम सबको परेशान करना तो वे भी इस इंतजार में थे कि इस बार चाँद निकलने से पहले ही उनको अपना टारगेट पूरा कर ईद से पहले ईद मनाना हैं जिसके लिये उनका निशाना ‘ज़ोहेब’ था जो इस छुट्टी पर घर जाने वाला था तो उसे अगवा कर के अपने मतलब की जानकारी निकाल बेदर्दी से मारना हैं ताकि, उनके संगठन का खौफ़ बरकरार रहे तो अपने मंसूबों को पूरा करने वे उस राह पर जाकर बैठ गये जहाँ से ‘ज़ोहेब’ और ‘सादिया’ के दिली अरमानों की डगर गुजरती थी जो खून से लालम-लाल होकर ईद के ‘चाँद’ के धब्बे को गहरा कर गयी थी ।

उसके बाद चाँद भी निकला ईद भी आई मगर, मीठी सिवई में कसैला स्वाद घुल चुका था चूँकि देश का बेटा मरा था तो सबके लिये ये मातम का वक़्त था ऐसे में ‘ज़ोहेब’ का परिवार अपना फर्ज़ निभाने सामने आया और बोला कि... ‘बेशक, चाँद हमारे घर का चला गया जरुर लेकिन, देश के चाँद को ग्रहण नहीं लगने दिया हमने सबको ईद मुबारकबाद हो’ ☺ ☺ ☺ !!!


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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ जून २०१८

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