मंगलवार, 12 जून 2018

सुर-२०१८-१६२ : #बालश्रम_गैर_क़ानूनी_होता #क़ानूनी_दायरे_में_क्या_ज़ायज_होता



एक अदद सहायिका चाहिये कम उम्र की हो तो अच्छा रहेगा
बच्ची को संभाल लेगी और काम में भी हाथ बंटा देगी

कह रही वो जो स्वयं बालकों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती हैं
बाल आश्रमों में जाकर उनको तोहफ़े देकर फोटो खिंचवाती हैं
खुद को चाइल्ड वेलफेयर की सर्वेसर्वा बताती हैं
बच्चों के पुनर्वास के लिये कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं

ये अकेली नहीं जिनकी कथनी-करनी में अंतर है
बहुत लंबी फेहरिश्त इन बाल प्रेमियों और हितैषियों की
सबसे बड़ी बात कि लगभग सब ही ऐसे हैं
वो जो बच्चों के केस लड़ते वकील साहब उनके घर भी एक छोटू काम करता हैं
गरीब बच्चों को पढ़ाने खोलकर बैठे जो विद्यालय वो भी अपने घरों में इनसे ही काम करवाते हैं
एक वो भी हैं जो एन. जी.ओ. चलाते कि बच्चों का शोषण न हो खुद ही उनका अपने निजी कामों में उपयोग करते हैं
और, वो जिन्होंने खोला अनाथ आश्रम कोई शुभचिंतक नहीं इनके नाम पर सरकारी योजनाओं का लाभ लेते फिर उनसे पैर दबबा तान कर सोते हैं

ऐसे में ये सोचना कि कानून बनाने या इस तरह के दिवस मनाने से बालक-बालिकाओं को उनका हक मिलेगा या वे पढ़-लिखकर अपने स्वप्न पूर्ण करेंगे उतना ही बड़ा धोखा हैं जितना ये सोचना कि एक दिन काला धन वापस आयेगा

इस तरह के दिवस पर आयोजनों की खाना-पूर्ति व कागजी कार्यवाही कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती और जिनके नाम पर ये दिन बना वो आज भी अपने कामों में मशगूल किसी आम दिन की तरह इसे व्यतीत कर देते हैं

माना कि सब ऐसे नहीं इनमें कुछ सच्चे लोग भी हैं परंतु, वो तिनके के माफिक जो अपने दायित्व का पूरी ईमानदारी से पालन कर रहे पर, बेईमानों की संख्या अधिक होने से लाभ कम दिखाई दे रहा हैं

ऐसी स्थिति में हम सबका भी ये कर्तव्य बनता कि अपनी आंख और कान खुले रखकर सब तरफ दृष्टि डाले और जहां भी कोई कमउम्र बच्चा श्रम करता दिखाई दे उसकी मदद करें न कि ये सोचे कि हमें क्या?

इस सोच ने ही देश का बेड़ा गर्क किया हुआ और जिसे देखो वही अपने सामने अपराध या कानून का उल्लंघन होते देखकर भी खामोश गुज़र जाता कि कौन पचड़े में पड़े पर, जब खुद पर गुजरती तो सबको नियम-कायदे और इंसानियत का सबक याद करवाता जबकि यदि हम सब एकमात्र मानवता का ही पाठ पढ़े, उसे ही अपना मज़हब समझे तो हमारा देश अनेकता में एकता का वास्तविक स्वरूप नजर आयेगा

आज बालश्रम निषेध दिवस मनाया जा रहा पर, ये सिर्फ कागजों पर नहीं जमीनी रूप में अमल में लाया जाये तो एक दिन इसकी आवश्यकता ही खत्म हो जायेगी क्योंकि, तब कोई नन्हा-नादान मजदूर बनने को मजबूर नहीं होगा और तब हम इन भविष्य निर्माताओं को उनकी नन्ही-मुन्नी अँखियों में दिखने वाले सपनों को सच कर दिखाने के लिए ठोस धरातल दे पायेंगे जो अगली पीढ़ी को अपनी विकासशील विरासत हस्तांतरित करने जैसा हैं ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१२ जून २०१८

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