शुक्रवार, 1 जून 2018

सुर-२०१८-१५१ : #ख्वाजा_अहमद_अब्बास_और_नर्गिस #फ़िल्मी_दुनिया_की_धरोहर_जिनकी_जुगलबंदी



दो अद्भुत प्रतिभायें जब मिलती हैं तो फिर कला की दुनिया में कैसा चमत्कार होता हैं ये लिखने की नहीं देखने की बात हैं जिसे साकार कर दिखाया ‘ख्वाजा अहमद अब्बास’ और ‘नर्गिस’ ने जिनका मिलन फ़िल्मी दर्शकों के लिये किसी सौगात से कम नहीं था क्योंकि, वे तो उन दोनों की ही कलाकारी के दीवाने थे ऐसे में उनका मिलकर काम करना माना उनके मनोरंजन का दुगुना होना तो फिर भला ऐसी जोड़ियों के एकाकार से बनी फ़िल्में किस तरह न हिंदी सिनेमा के इतिहास की धरोहर बनती इन फिल्मों ने तो बाल्यावस्था की हिंदी फ़िल्मी दुनिया को अपनी मेहनत व लगन से ऐसी कृतियाँ उपहार में दी जिसने अपने देश में ही नहीं विदेशों तक में परचम फहराया और उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया जिस तरह से एक की कलम से निकले चरित्र को दूसरे ने हूबहू सिल्वर स्क्रीन पर उतार दिया वो भी ऐसा कि उसके अभिनय में में कहीं कोई नकलीपन या दिखावट का आभास नहीं हुआ कि उसने तो भीतरी अहसासों को ही अपने चेहरे पर दर्शाया जिससे देखनेवाले ने अपना नाता जोड़ लिया

जहाँ कोई बात या पात्र दिल को छू जाता या अपना-सा लगता तो फिर उसे अपनाने में कोई पीछे नहीं रहता यही वजह कि ‘अब्बास साहब’ ने जो भी कहानियां गढ़ी उनके लिये प्रेरणा अपने आस-पास के वातावरण या समाज से ली तो फिर जो किरदार उभरे उनमें खुद का अक्स देख पाना किसी के भी लिये नामुमकिन नहीं था और इसलिये तो ‘आवारा’, ‘श्री 420’, ‘अनहोनी’, ‘परदेसी’ और ‘जागते रहो’ जिस भी फिल्म में ‘ख्वाजा’ ने नायिका का चित्रण ‘नर्गिस’ को ध्यान में रखकर किया उसे उन्होंने भी उसी तरह निभा पाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी इन दोनों की जोड़ी ने कमाल कर दिया इनका मिलना भी एक इत्तेफाक था और फ़िल्मी क्षेत्र में आना भी किस्मत का संयोग क्योंकि, दोनों ने ही इसे अलग-अलग परिस्थितियों में अपनाया जहाँ ‘नर्गिस’ ने अपनी माँ को कमजोर आर्थिक स्थिति से उबारने के लिये तो ‘ख्वाजा अहमद अब्बास’ ने ये दिखाने के लिये कि वे केवल आलोचक ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन कहानीकार व निर्देशक भी हैं तो इस तरह इनका इस अलग कार्यक्षेत्र में सफर शुरू हुआ

जिसमें ‘राज कपूर’ भी जुड़ गये जो इन दोनों के हुनर से न केवल वाकिफ़ थे बल्कि उनके प्रशंसक भी थे तो ये एक सफल टीम बन गये जिन्होंने साथ में कई हैरतअंगेज कारनामे किये और अपने चाहनेवालों को मनोरंजन ही नहीं संदेशप्रद फिल्मों के उपहार दिये ‘अब्बास साहब’ की लेखनी से ‘नर्गिस’ इस कदर प्रभावित थी कि उन्होंने इसरार करके अपने लिये डबल रोल वाली कथा ‘अनहोनी’ लिखवाई जो एक तरह से ‘आवारा’ को उलटकर बनाया गया फिमेल वर्शन था और  इस तरह इन्होने साथ में जितना भी काम किया वो उल्लेखनीय रहा सबसे बड़ी बात कि अब्बास साहब की 'शहर और सपना' के अलावा दो फ़िल्मों, 'सात हिंदुस्तानी' (1969) और 'दो बूंद पानी' (1972), ने राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए ‘नरगिस दत्त पुरस्कार’ जीते इस तरह इन दोनों का आपसी रिश्ता सिर्फ पर्दे तक ही कायम नहीं रहा कुदरत ने भी उन्हें एक करने में कोई कमी न रखी

१ जून जहाँ ‘नर्गिस’ का जन्मदिवस तो वही ‘ख्वाजा अहमद अब्बास’ की पुण्यतिथि बन गयी इस तरह प्रकृति ने उनका सम्मान किया यूँ तो दोनों का अपना व्यक्तिगत जीवन भी अनेकानेक उपलब्धियों से भरा पड़ा लेकिन, आज दोनों का स्मृति दिवस तो बात सिर्फ उन फिल्मों या कहानियों की जिनमें उन दोनों के नाम जुड़े... हमें ये यादगार फ़िल्में देने दोनों का आभार और ढेर सारा प्यार... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०१ जून २०१८

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