बुधवार, 13 जून 2018

सुर-२०१८-१६३ : #पुरुषोत्तम_मास_समाप्त_हुआ #प्रिय_के_वियोग_से_मन_उदास_हुआ



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छोड़ रहे हो न...
ब्रज की आँकी-बाँकी गलियाँ
ये यमुना का किनारा
ये कदंब की डालियाँ
.....
तोड़ रहे हो न...
किया था जो कभी वादा
ये साथ हमारा
ये हाथ हमारा
.....
जोड़ रहे हो न...
नये साथियों संग नया रिश्ता
प्रीत का बंधन
दोस्ती का नाता
.....
मोड़ रहे हो न...
दिल से दिल तक की राह
मन की मधुर बयार
जज्बातों की उड़ान
.....
सुनो...
चाहे तुम जाओ
सृष्टि में किसी भी छोर
पर, न टूटेगी हमारी प्रेम डोर
चाहे मिल जाये तुम्हें
कितनी भी नई-नई गोपियाँ
फिर भी तुम मुझे यूँ न भूला पाओगे
.....
देकर मीठा उलाहना
प्रेम से बोली उदास राधा
सुनकर उसकी बात
मनमोहन ने दिया जवाब,
.....
प्रिये...
मैं न छोड़ सकता
जन्मों-जन्मों का ये नाता
न ही तोड़ सकता
तुम संग बंधा नेह का धागा
.....
कैसे जोड़ सकता
हमारे गठबंधन में कोई गाँठ
कभी न मोड़ सकता
जिस पथ चले हम साथ-साथ ।।
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१३ जून २०१८


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