सोमवार, 4 जून 2018

सुर-२०१८-१५४ : #नित_नूतन_होता_अभिनय #जब_किरदार_निभाये_अभिनेत्री_नूतन

 

'शोभना समर्थ' ने बेटियों की मां होने के बावजूद भी कभी इस बात को उस तरह से नहीं लिया जैसा कि उस दौर में समझा जाता था कि बेटियां होना मतलब चिंता में घिर जाना परंतु, कुछ लोग होते हैं तो समय के सांचे में नहीं ढलते बल्कि, सांचे को अपने अनुकूल बना लेते हैं ऐसा ही दृढ़ और आत्मनिर्भर व्यक्तित्व था ‘शोभना समर्थ’ का और आधुनिक विचारधारा भरी हुई थी मन में तो उन्होंने इस बात को बड़ी सहजता से लेते हुए अपनी पुत्रियों को बड़ी बेबाकी के साथ एक खुले माहौल में न केवल पाला बल्कि, उनकी शख़्सियत को भी स्वतंत्र रूप से विकसित होने के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान किये जिसका नतीजा कि 'नूतन' 'तनुजा' दोनों एक दूसरे से एकदम अलग मगर, साहसिक चरित्र की प्रगतिवादी अभिनेत्रियां रही जिनमें 'नूतन' ने तो अपनी मां और बहन दोनों से कई कदम आगे बढ़कर अभिनय किया जिसने शुरुआती दौर में ही उनकी एक सशक्त अभिनेत्री की छवि निर्मित कर दी थी

ये मां का ही निर्भीक पालन-पोषण था जिसने उनके भीतर इतना साहस भर दिया था कि सफलतम नायिका बनने के बाद उन्हें जब ये लगा कि उनके खातों में गड़बड़ हैं तो उन्होंने इसके लिए अपनी मां को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके ऊपर मुकदमा दर्ज कर उन्हें कटघरे तक लाकर खड़ा कर दिया जिसकी वजह से रिश्तों में खाई भी बन गयी लेकिन, ये मां की ही शिक्षा थी जिसने उनके भीतर इतनी उन्मुक्त सोच विकसित कर दी कि उसने उन पर ही उंगली उठा दी ऐसा ही एक वाकया और हुआ जब उनके सह-कलाकार ‘संजीव कुमार’ के साथ उनका नाम जोड़ा जाने लगा जिसके बारे में पत्रकार द्वारा सवाल किए जाने पर संजीव जी ने स्वीकार किया कि वे नूतन को पसंद करते हैं और उनको उनसे प्यार हैं जिसे सुनकर नूतन ने उन्हें थप्पड़ जड़ दिया ये बेबाकी और ये बिंदासपन उन्हें विरासत में मिला था तो इन बातों से घबराने या सकुचाने की जगह स्वविवेक से निर्णय लेने में वे पीछे न हटती थी

अभिनय के मामले में भी अपने किरदार को लेकर उनके मन मे स्पष्ट इमेज होती थी जिसकी वजह से पर्दे पर उनके द्वारा अभिनीत कोई भी भूमिका महज़ नौटंकी नहीं प्रतीत होती थी बल्कि, जो भी रोल उनको दिया जाता वे वही नजर आती थी उनके भीतर अपने आपको लेकर किसी भी तरह का संशय या कमतरी का भाव नहीं था इसलिए जब भी उन्हें कोई भूमिका दी जाती वो आत्मा की तरह उसकी देह में प्रवेश कर उसे हूबहू उतार देती यही वजह कि शुरुआती दौर में ही उन्हें जो फिल्में या जो भी पात्र निभाने को दिये गये उन्होंने पूरे मन से उन्हें अभिनीत किया और दर्शकों को हर बार अचंभित कर दिया तो बार-बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब भी अपने नाम किया और इस तरह वे सफलता का चेहरा बन गयी और सौंदर्य प्रतियोगिता की विजेता लड़की नूतन एक दमदार अभिनेत्री बनकर उभरी जो हर एक भूमिका में फिट थी जिसका होना ही सक्सेस की गारंटी माना जाता था और हर एक कलाकार उनके साथ काम करना अपना सौभाग्य समझता था

इसलिये अपने दौर के सभी बड़े कलाकारों अशोक कुमार, बलराज साहनी, दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद के साथ उन्होंने काम किया वे सभी फिल्में मील का पत्थर साबित हुई और आज भी अभिनय संस्थानों में उनको पाठ्यक्रम की तरह पढ़ाया जाता हैं कि इतनी कम उम्र में इतना गंभीर अभिनय करना आसान बात नही  थी । उनकी सीमा, सुजाता, बंदिनीं तो मानो हिंदी सिनेमा के तीन ऐसे ग्रथ हैं जिनका गहराई से अध्ययन कर कोई भी हीरोइन संवेदनशील अभिनेत्री बन सकती हैं और हम धन्य कि वे धरोहर की तरह सुरक्षित हैं जिन्हें हम जब चाहे तब देख सकते और हर बार ही कुछ नया अनुभव कर सकते कि पहले की फिल्मों में एक भी दृश्य, एक भी संवाद या गीत या कलाकार निरर्थक नहीं होता बहुत सोच-समझकर ही कहानी व किरदार के मुताबिक ही उनका चयन किया जाता था

जब हम बार-बार ऐसे मास्टर पीस देखते तो हमेशा कुछ नूतन पाते जिसे देखने से पिछली बार हमारी आंखें चूक गयी थी और ‘नूतन’ तो अभिनय की वो किताब जिसे कितनी भी बार पढ़ा जाये मन नहीं भरता आज उनके जन्मदिवस पर उनको यही भावांजलि… ☺ ☺ ☺ !!!

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०४ जून २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: