सोमवार, 25 जून 2018

सुर-२०१८-१७५ : #मुश्किलों_से_न_कभी_हारी #दृढ_निश्चय_की_धनी_सुचेता_कृपलानी




बात बहुत ज्यादा पुरानी नहीं हैं केवल १०८ वर्ष पहले की हैं जब आज ही के दिन २५ जून १९०८ को इस देश की हरियाणा की भूमि में अम्बाला शहर में भारत देश की पहली महिला मुख्यमंत्री का गौरव हासिल करने वाली ‘सुचेता मजूमदार’ का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ और बचपन से ही अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता के कारण ही उनको दिल्ली के इंद्रप्रस्थ और सेंत स्टीफन जैसी उल्लेखनीय संस्थाओं में पढ़ने का मौका मिला जिसे उन्होंने हाथ से न जाने दिया वो भी उस कालखंड में जबकि महिलाओं के लिये शिक्षा आसमान के चाँद की तरह दुर्लभ थी लेकिन, वो तो जन्मी ही मिसाल कायम करने के लिये तो फिर ऐसी बातों से उन्हें क्या फर्क पड़ता कि उस वक़्त समाज व उनकी मातृभूमि में स्त्रियों के लिये किस तरह की विशेष रवायतों का प्रचलन हैं

उन्होंने तो जो ठान लिया वो कर के ही रही जिसमें उनके डॉक्टर पिता एस.एन. मजूमदार की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता जिन्होंने अपनी बिटिया को उस दौर में इस तरह की उच्च शिक्षा के लिये शारीरिक व् मानसिक संबल प्रदान किया जिसका नतीजा कि उनके भीतर की छिपी प्रतिभाओं को उभरने का पूर्ण अवसर प्राप्त हुआ और वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास की प्राध्यापिका बनी जहाँ उनका परिचय अपने ही जैसे आदर्शवादी, प्रभावशाली व बुद्धिमान ‘जे. बी, कृपलानी’ से हुआ जो कालांतर में उनके पति भी बने और उनका ये मिलन भारतीय राजनीती का स्वर्णिम अध्याय हैं जहाँ ये दोनों आत्मिक रूप से एक होकर भी शारीरिक रूप से दो भिन्न राजनैतिक दलों के समर्थक के रूप में एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी भी रहे मगर, इसका प्रभाव इनके व्यक्तिगत जीवन पर नहीं पड़ा क्योंकि, दोनों ही जेहनी तौर पर इस कदर परिपक्व थे कि इन बातों को आपसी रिश्तों में खटास की वजह बनाकर अनमोल समय व्यर्थ गंवाने के पक्ष में न थे

इसलिये तमाम बाहरी दलगत विरोधों के बावजूद भी भीतरी तौर पर वे एक ही छत के नीचे आजीवन रहे और अपने रिश्ते को प्रेरणा की तरह प्रस्तुत किया जबकि, उनके बीच उम्र का एक लंबा अंतराल भी था और उनके विवाह को महात्मा गाँधी जैसी महानतम हस्ती व अपने परिजनों का भी विरोध झेलना पड़ा था पर, दोनों के इस्पात जैसे मजबूत इरादों को कोई भी प्रतिरोध कभी तोड़ न सका वो खुद अपने आप में एक मिसाल हैं और ये दर्शाता हैं कि यदि दो सही व सशक्त शख्सियत यदि रेखाओं की तरह एक-दूसरे को काटे नहीं वरन रेल की पटरियों की भांति सामानांतर साथ-साथ चलती रहे तो उनकी सकारात्मक ऊर्जा का लाभ परस्पर दोनों को ही प्राप्त होता हैं और वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर उदाहरण बनते हैं

अपने मजबूत इरादों व इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी जबर्दस्त भूमिका निभाई और ‘भारत छोडो आंदोलन’ में सक्रियता के साथ अपनी जिम्मेदारी का पालन किया और सभी पुरुषों के जेल जाने पर उन्होंने खुद को भूमिगत कर १९४० में कांग्रेस की महिला शाखा ‘आल इंडिया महिला कांग्रेस’ की नींव रखी और महिलाओं की फ़ौज बनाकर उन्हें आत्मरक्षा के गुर भी सिखाये जो उनकी बहादुरी को दर्शाता हैं और जब देश आज़ाद हुआ तो संसद में वंदे मातरम गाने का कीर्तिमान भी उन्हीं के नाम दर्ज हैं उनकी इन सब उपलब्धियों ने ही उन्हें भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव दिया और हमें अपनी इस पुत्री पर गर्व करने का उनका प्रेरणादायी जीवन सदैव हम सबके लिये पथ प्रदर्शक रहेगा... आज उनके जन्मदिवस पर उनको शत-शत नमन... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ जून २०१८

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