प्रकृति का
आवरण
'पर्यावरण'
छिन्न-भिन्न कर
के जिसे
हम खुद में मगन
भूल गये
इतनी-सी ये बात
उसके बिना नहीं
हम सबका भी
जीवन
ईश्वर का
साक्षात स्वरूप होती
हरी-भरी कुदरत
पेड़, नदियां, पहाड़,
झरने
पंछी, जानवर और कीट-पतंगे
सबको हमने
बर्बाद किया
सबका हमने
घर-बार लूटा
विलुप्त हो गयी
प्रजातियां अनेक
चंद जो रह गयी
शेष
उनका भी नहीं
कर रहे सरंक्षण
किस तरह बचेगा
फिर हमारा अस्तित्व
बीज शायद,
कोई धरती सहेज ले
पुनः प्रकृति
को संवार ले
लेकिन, न होगा संभव हमारा पुनर्निर्माण
अगर, हमने मिटा दिया पर्यावरण
जल, आकाश, वायु,
धरती और अग्नि
इसके बिना नहीं
हमारी हस्ती ॥
‘विश्व
पर्यावरण दिवस’ की शुभकामनायें नहीं देना बल्कि, सरंक्षण हेतु सचेत करना हैं
क्योंकि, अभी नहीं तो कभी नहीं थोड़ी-सी देर में बहुत देर हो सकती हैं प्रकृति का
तुला का पलड़ा एक तरफ इतना झुक गया कि संतुलन न बनाया हमने अभी तो फिर मरने को
तैयार हो जाये या अपनी आने वाली पीढ़ी को तड़फते हुये देखें... क्या हैं मंजूर हमें
खुद ही सोचना हैं और जल्द भी... हम तो
निकल चुके इस अभियान में बहुत पहले से पर, हमारे अकेले से तो ज्यादा फर्क न पड़ेगा
तो सब आये सबको बचाये... ऐसे पर्यावरण दिवस सार्थक तरीके से मनाये... ☺ ☺ ☺
!!!
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
०५ जून २०१८
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