शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८३ : #498_बनाम_497




आज ‘निमेष’ बहुत खुश था क्योंकि, उसका लोन पास हो गया था तो अब वो नौकरी छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू कर सकता था जिसका ख्वाब वो न जाने कब से देख रहा था ये सब सोचकर ख़ुशी से कार को जेट विमान की रफ्तार से चलाता वो घर जल्दी-से-जल्दी घर पहुंचकर अपनी पत्नी ‘त्रीक्षा’ को ये खुशखबरी सुनाना चाहता था इसलिये उसे सरप्राइज देने के इरादे से वो ऑफिस से जल्दी घर आ गया पर, लगातार बेल बजाने पर भी डोर ओपन न हुआ तो उसने मोबाइल पर काल किया फिर भी कोई जवाब न आया तो उसने चाबी निकाली और इमरजेंसी डोर से घर के भीतर घुसा तो लगा सब कुछ शांत है कोई हलचल नहीं मगर, बेडरूम बंद था

इसका मतलब ‘त्रीक्षा’ रोज की तरह बेल, मोबाइल सब ऑफ कर के ए.सी. चलाकर सो रही है तो यहीं छिपकर इंतजार करता हूँ उसके दरवाजे खोलने का थोड़ी देर में डोर खुला तो वो अपनी ही जगह पर फ्रिज होकर रह गया हाथ का बुके छूटकर नीचे गिर गया ‘त्रीक्षा’ नाईटी पहने उसके दोस्त ‘आकाश’ की बाहों में थी उसे लगा उसकी गृहस्थी जिसे ईट-ईट जोडकर उसने बनाई थी भरभराकर गिर पड़ी जिसके मलबे के नीचे वो असहाय-सा पड़ा है दिखाई सब दे रहा है पर, वो कुछ बोल नहीं पा रहा है

उस पर नजर पड़ी तो ‘त्रीक्षा’ घबरा गयी पर, जल्द-ही खुद को सँभालते हुये बोली, “इसमें इतने आश्चर्य की बात क्या है मैं तुमसे सेटिस्फाय नहीं थी इसलिये अपनी सेक्सुअल डिजायर पूरा करने मुझे ये कदम उठाना पड़ा अगर, मैं उसे दबाती रहती तो एक दिन पागल हो सकती थी ऐसे में ‘आकाश’ के रूप में मुझे वो साथी मिल गया जो मेरी इच्छाओं को समझ सका जबकि, तुम्हें तो बस, सारा दिन अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की ही फ़िक्र लगी रहती थी वैसे, भी अब ये सब अपराध नहीं तो मैं खुद को गिल्ट महसूस क्यों करूं” ?

वो स्टेच्यु बना क्रोध में मुट्ठी भींचे उसे देखता रहा तो उसके हाथों की तरफ देखते हुये बोली, “हाथ उठाने की तो भूल भी मत करना, होम वायलेंस और देहज प्रताड़ना का केस कर दूंगी तो कहीं के न रहोगे फिर जेल में बैठकर देखना सपने” विद्रूप हंसी के साथ उसने कहा जिसे सुनकर वो बोला, “मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम्हारे अंदर इतनी गंदगी छिपी है हमारी शादी हमारे घरवालों की मर्जी से हुई पर, मुझे कोइ शिकायत नहीं थी और तुमसे भी मैंने पूछा था तुम्हें तो कोई ऐतराज नहीं तो तुमने भी नहीं में सर हिलाया था तब मुझे लगा कि मेरी लाइफ का एक पड़ाव पूरा हुआ अब मुझे अपने पिता की तरह अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करनी चाहिये तो मैं अपनी इनकम बढ़ाने की कोशिशों में लग गया इस बीच न तो तुमने कभी ज़ाहिर किया और न ही मुझे लगा कि तुम संतुष्ट नहीं हो अन्यथा मैं उसके लिये कोई प्रयास करता पर, अब तो सब खत्म मेरी तो नींव ही हिल गयी सपनों का आशियाना कहाँ बनाऊंगा मैं और सुख के केवल इसी अर्थ से परिचित हो तुम तो फिर तुम्हें क्या समझाऊं कि सहचर्य के वास्तविक मायने क्या होते है कहीं मैं भी असंतुष्ट था पर, यही मानता था कि शादी का संबंध केवल बिस्तर पर दो देहों का साथ-साथ सोना ही नहीं दिलों का करीब होना भी है तो उसी के प्रयास में लगा रहता था आज जाना कि दिल ही नहीं बिस्तर पर भी तुम मेरे नजदीक नहीं थी ऐसे में कानून सिर्फ तुम्हें ही 498 में झूठा केस दायर करने का नहीं मुझे भी 497 के तहत ये हक देता है कि मैं सच के आधार पर तुमसे तलाक ले सकूं” और उसने तुरंत अपने वकील को कॉल कर बुला लिया उधर ‘आकाश’, ‘त्रीक्षा’ का हाथ और साथ छोड़कर जा चुका था    

‘त्रीक्षा’ को अब समझ में आया कि क्षणिक दैहिक सुख की खातिर उसने जीवन भर का स्वर्गीय सुख गंवा दिया था 498 उसे स्त्रीधन तो दिलवा सकता हैं पर, पति नहीं जिसके बिना धन-वैभव सब व्यर्थ है और क्षणिक दैहिक सुख के लिये उसने जीवन भर की खुशियों में खुद ही आग लगा दी है   

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१२ अक्टूबर २०१८

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