शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२७६ : #मरना_तब_जरूरी_है #जब_जीवन_मरण_सम_हो




चित्तोड़गढ़ की रानी पद्मावती’ के जीवन पर आधारित फिल्म ‘पद्मावत’ के प्रदर्शन के समय खुद को नारीवाद का सशक्त हस्ताक्षर घोषित करने वाली तथाकथित ‘फेमिना’ स्वरा भास्कर ने फिल्म के निर्देशक ‘संजय लीला भंसाली’ के नाम एक खुला खत लिखा था जिसमें उन्होंने लिखा था कि, “फिल्म का अंत देखने के बाद मुझे लगा कि मैं एक योनि हूं, मुझे लगा कि मैं योनि तक सीमित होकर रह गई हूं और वे ‘सेक्स स्लेव’ बनकर भी जीना पड़े तो वो मौत की बजाय जीवन को ही चुनेगी क्योंकि, महिलाओं को रेप का शिकार होने के अलावा जिंदा रहने का भी हक है”

इसके बाद एक बड़ी बहस देश की सशक्त महिलाओं ने शुरू कर दी जिसमें सभी ने यही कहा कि वे हार हाल में जीना चाहेगी और रेप होने से जीवन खत्म नहीं हो जाता पर, किसी ने भी ये नहीं विचार किया कि ‘रानी पद्मावती’ हो या ‘रानी दुर्गावती’ या फिर मुगलों के आतंक से डरकर मरने वाली कोई भी साधारण नारी उसने मरने का फैसला इसलिये नहीं लिया कि उनमें जीने की इच्छा शेष नहीं थी या उनका जीवन के प्रति मोह कम था या फिर वे बलात्कार को जीवन का अंत समझती थी फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया ?

यहाँ तक कि देश के विभाजन के समय होने वाले हिन्दू-मुस्लिम दंगों के समय भी अनगिनत माता-पिताओं ने अपनी फूल-सी कोमल बच्चियों को दिल पर पत्थर रखते हुये स्वयं अपने ही हाथों ज़हर दे दिया ऐसा उन्होंने क्यों किया रेप ही तो होता न उनके साथ पर, जिंदा तो रहती फिर क्या सोचकर उन्होंने ऐसा किया होगा जिस माँ ने जन्म दिया और जिस पिता ने उसे बड़े लाड़-से पाला पोसा उसी ने अपनी प्यारी बिटिया को जहर का प्याला थमा दिया क्यों  ??

इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन एक अनमोल सौगात और एक बार ही मिलता तो जब तक कि वो स्वतः ही खत्म न हो उसे हर हाल में हर तरह से जीना चाहिये चाहे फिर बलात्कार के बाद हो या फिर एसिड अटैक के बाद या फिर किसी भी तरह के हालातों के बाद पर इसके बावजूद भी यहाँ सोचने वाली बात यह है कि एक स्त्री के लिये ये तय करना कि वो जिये या मरे उसका अपना निर्णय है लेकिन, जिंदगी को चुनने के बाद जो माहौल मिले यदि उसमें आप खुद को हर दिन वेजाइना ही महसूस करें और आपको पल-प्रतिपल ये लगे कि इससे अच्छा होता कि आप मर जाती तब मरना जरूरी है   


यही वजह था कि उन स्त्रियों ने ख़ुशी-ख़ुशी मौत का वरण किया क्योंकि, वे जानती थी कि यदि वे मुगलों के हाथ लगी तो उन्हें केवल योनि की तरह ही इस्तेमाल किया जायेगा और प्रतिदिन वे तिल-तिल मरेंगी और उन्हें अपनी कोख से अपने ही दुश्मनों को जन्म देना पड़ेगा तो इस जिल्लत भरी नरक जैसी ज़िन्दगी की जगह उन्होंने शान से मरने को चुना और इसलिये आज भी उनका नाम गर्व से लिया जाता उनकी कहानियां हमको प्रेरणा देती यदि वे किसी हरम में बिस्तर की तरह पड़ी रहती तो वीरांगना की तरह कौन उनका गुणगान करता इतिहास किस तरह सर उठाकर अपनी वीर पुत्रियों की गाथा कहता

चलो माना कि नहीं बनना महान, नहीं चाहिये उनको इतिहास में कोई पन्ना, कोई नाम, कोई कहानी अपनी... उन स्त्रियों को जिनके लिये जीना ही जरूरी है फिर भी जब रोज-रोज उनको मौत के अहसास से गुजरना पड़ेगा तब वे जानेगी कि भले इज्जत के मायने अनेक होते लेकिन, जिसे उन्होंने चुना वो भी न तो वो जीवन हैं और न ही इज्जत का ही कोई पर्याय इसलिये जब भी अपने इतिहास पर ऊँगली उठाये तो उस कालखंड, उन परिस्थिति को भले भूल जाओ लेकिन, ये कभी नहीं भूलना कि जीवन कभी-कभी मौत से भी अधिक कष्टदायक होता ऐसे में उसे त्यागना अच्छा उसी तरह जिस तरह हम कहते कि, ‘दाग अच्छे है’      

आज हमारे देश की एक ऐसी ही बेटी की जयंती हैं जिन्होंने अपनी कटार अपने सीने में मारकर मृत्यु का वरण किया क्योंकि, वे जानती थी कि यदि वे जीवित ही हाथ लगी तो वे ‘अकबर बादशाह’ जिन्हें महान तो बताया जाता पर, जिनके हरम का जिक्र कम किया जाता में उनके साथ इस हद तक की क्रूरता और दुष्कर्म किया जायेगा कि आत्मा भी शेष न बचेगी और हमें गर्व है उनके इस निर्णय पर हम भी जौहर या आत्महत्या को ही चुनेंगे यदि सामने क्रूर जानवर हो क्योंकि, जब ज़िन्दगी ही मौत हो तो मरना जरूरी है

गोंडवाना की महारानी दिलेर वीर बहादुर दुर्गा की अवतार ‘दुर्गावती’ को जयंती पर शत-शत नमन... इनकी वजह से ही तो हमने जाना कि, योनि बनके जीने की जगह अपने हाथों ही अपना गला घोटना अच्छा है... जयति जय दुर्गावती... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०५ अक्टूबर २०१८

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